
एल्गार परिषद मामले की चार्जशीट में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने आरोपियों पर देश के खिलाफ साजिश रचने के बेहद गंभीर और संवेदनशील आरोप लगाए हैं. एनआई ने अपने ड्राफ्ट चार्ज में कहा है कि देश में आतंकी साजिश को अंजाम देने के लिए आरोपियों ने देश की दो प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली (JNU) और टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस, मुम्बई (TISS) के छात्रों को भर्ती किया था.
एनआईए ने इस मामले में मुंबई की विशेष अदालत में इसी महीने मसौदा पेश किया था. इसकी कॉपी सोमवार को सार्वजनिक की गई है.
NIA ने अपनी ड्राफ्ट की गई चार्जशीट में 16 गिरफ्तार और 6 फरार लोगों को आरोपी बनाया गया है. इनमें मानवाधिकार कार्यकर्ता और नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता शामिल हैं. इनके तहत UAPA और IPC की धाराएं लगाई गई हैं.
'देश की सरकार को हथियारों के दम पर हटाना चाहते थे'
इस ड्राफ्ट के अनुसार आरोपियों का मुख्य उद्देश्य सशस्त्र हथियारों के दम पर सत्ता हथियाना और सत्ता छीनकर देश में जनता सरकार स्थापित करना था. एनआईए ने आरोप लगाया है कि आरोपी प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) के सक्रिय सदस्य थे.
भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच अब NIA करेगी, महाराष्ट्र सरकार ने जताई नाराजगी
NIA ने इस केस में सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंजालविस, वरवरा राव, हनी बाबू, आनंद तेलतुम्बड़े, शोमा सेन, गौतम नवलखा समेत अन्य लोगों को गिरफ्तार किया है. इस ड्राफ्ट के अनुसार आरोपी भारत सरकार और महाराष्ट्र की सरकार के युद्ध छेड़ने की कोशिश कर रहे थे.
JNU-TISS के छात्रों को किया गया भर्ती
इस ड्राफ्ट में कहा गया है कि आरोपी विस्फोटकों का इस्तेमाल कर लोगों के दिमाग में आतंक पैदा करना चाहते थे. ड्राफ्ट में कहा गया है, "आरोपियों ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों को आतंकवादी गतिविधियों के लिए भर्ती किया था.
आतंकी संगठनों को पहुंचानी थीं 4 लाख गोलियां
NIA के अनुसार इस मामले में गिरफ्तार आरोपी मणिपुर में आतंकी संगठनों को M4 हथियार और 4 लाख राउंड (कारतूस) पहुंचाने के लिए 8 करोड़ रुपये का इंतजाम करने में लगे थे. इनका मकसद महाराष्ट्र और केंद्र सरकार को टारगेट करना था.
क्या है एलगार परिषद केस
बता दें कि एलगार परिषद केस 31 दिसंबर 2017 को आयोजित किए गए एक संगोष्ठी से जुड़ा है. इस संगोष्ठी में भड़काऊ भाषण दिए गए थे. इसके अगले दिन भीमा-कोरेगांव में हिंसा हुई थी. अभियोजन पक्ष का दावा है कि इस संगोष्ठी का आयोजन कथित रूप से माओवादियों से जुड़े लोगों द्वारा किया गया था.