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दूसरी बेटी का जन्म, 33 बार चाकू से वार और पत्नी का मर्डर... अब अदालत ने सुनाई ये खौफनाक सजा

अभियोजन पक्ष के अनुसार, 9 जून, 2022 को दोषी 46 वर्षीय संजीत दाश ने उस वक्त अपनी पत्नी सरस्वती को भुवनेश्वर के घाटिकिया इलाके में उनके घर पर 33 बार चाकू घोंप कर मार डाला था, जब उसने अपनी दूसरी बेटी को जन्म दिया था.

आरोपी पति को अदालत ने सजा-ए-मौत सुनाई है आरोपी पति को अदालत ने सजा-ए-मौत सुनाई है
aajtak.in
  • भुवनेश्वर,
  • 02 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 9:09 PM IST

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में एक अदालत ने दो साल पहले अपनी पत्नी को चाकू घोंपकर मारने और अपनी छह साल की बेटी का गला काटकर हत्या करने की कोशिश करने वाले दरिंदे को आखिरकार सजा-ए-मौत सुनाई है. आरोपी ने अपनी पत्नी को मारने के लिए उस पर 33 बार चाकू से वार किए थे.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, 9 जून, 2022 को दोषी 46 वर्षीय संजीत दाश ने उस वक्त अपनी पत्नी सरस्वती को भुवनेश्वर के घाटिकिया इलाके में उनके घर पर 33 बार चाकू घोंप कर मार डाला था, जब उसने अपनी दूसरी बेटी को जन्म दिया था. सरस्वती एक निजी अस्पताल में हेड नर्स थी. आरोपी ने उस दिन अपनी पहली बेटी का भी गला घोंट दिया था, लेकिन वह 6 साल की बच्ची किसी तरह से बच गई थी.

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इस संगीन वारदात के अगले दिन आरोपी संजीत को गिरफ्तार कर लिया गया था और अक्टूबर, 2022 में उसके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया गया था. भुवनेश्वर के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बंदना कर की अदालत ने गुरुवार को इस मामले में फैसला सुनाते हुए अपराध को "दुर्लभतम" की श्रेणी में रखा और कहा कि इस प्रकार दोषी के प्रति कोई नरमी नहीं बरती जानी चाहिए.

इसलिए, यह अदालत दोषी को मौत की सजा सुनाती है. उड़ीसा उच्च न्यायालय, कटक से पुष्टि के अधीन उसे तब तक फांसी पर लटकाया जाना है, जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो जाती.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि उसकी पत्नी की हत्या के पीछे का मकसद दूसरी लड़की का जन्म है और यही कारण था कि आरोपी ने अपनी पहली बेटी की हत्या करने का भी प्रयास किया. इसलिए, ऐसे "दुर्लभतम अपराध" के लिए मौत की सजा देना दूसरों के लिए एक निवारक के रूप में काम करेगा, जो इसी तरह के जघन्य कृत्यों पर विचार कर सकते हैं. 

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अदालत ने संजीत को आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई है. दोनों सजाएं दोषी को दिए गए संशोधन, परिवर्तन, छूट या क्षमा के अधीन एक साथ चलेंगी. छह साल की बच्ची के साथ हुए इस दर्दनाक हादसे पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि वह बच्ची, जिसे भारतीय कानून की व्यवस्था फिल्मों में ऐसी भयावहता देखने की भी अनुमति नहीं देती, उसे अपनी आंखों से यह सब देखना पड़ा. 

अदालत ने कहा कि छह साल की वह बच्ची, जो गर्व से 'वंदे मातरम' गाती, उसका गला उसके ही पिता ने बेरहमी से काट दिया, वह बच्ची जो शायद 'छोटा भीम' और 'डोरेमोन' देखने का आनंद लेती, उसे अपने पिता द्वारा अपनी मां की जघन्य हत्या देखनी पड़ी. अदालत ने कहा कि पीड़ित बच्ची की गहरी पीड़ा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिसे अपने पिता द्वारा अपनी मां की हत्या देखनी पड़ी. 

अदालत ने कहा कि उसका घर, जो उसका सुरक्षित ठिकाना था, अब अकल्पनीय भयावहता का दृश्य बन गया है, जिसने उसकी सुरक्षा और विश्वास की भावना को चकनाचूर कर दिया है. अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि मृतक की नाबालिग बेटियों के लिए मुआवजे पर विचार करने के लिए फैसले की एक प्रति जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएसएलए), खुर्दा को उपलब्ध कराई जाए.

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