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45 रातें, 35 गांव और जंगल से घर तक भेड़ियों का शोर... बहराइच में हंटिंग पर प्रशासन, पहरेदारी पर लोग

यूपी के दो जिलों में इन दिनों इंसान और जंगली जानवरों के बीच का संघर्ष चल रहा है. और वो संघर्ष कुछ इस मुकाम पर है कि पिछले 45 दिनों में जहां एक ही जिले में 8 बच्चों समेत कुल 9 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं दूसरे जिले में एक शख्स अपनी जान से जा चुका और एक बुरी तरह से ज़ख्मी होकर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है.

आदमखोर भेड़िए अभी तक 9 लोगों की जान ले चुके हैं (फोटो- Meta AI) आदमखोर भेड़िए अभी तक 9 लोगों की जान ले चुके हैं (फोटो- Meta AI)
aajtak.in
  • बहराइच/लखीमपुर खीरी,
  • 29 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 5:30 PM IST

Wolves terror in Bahraich: कहीं गांवों में घुस आए खूंखार शयों की ड्रोन के ज़रिए ट्रैकिंग. कहीं रात-रात भर जाकर लाठियों और बंदूकों का पहरा और कहीं तमाम जतन के बावजूद एक-एक कर खूंखार जानवरों का निवाला बनता इंसान. ऐसे ही दूसरी जगह खेतों के बीच पिंजरे लगाए जा रहे हैं. असल में यूपी के दो जिलों में इन दिनों इंसान और जंगली जानवरों के बीच का संघर्ष चल रहा है. और वो संघर्ष कुछ इस मुकाम पर है कि पिछले 45 दिनों में जहां एक ही जिले में 8 बच्चों समेत कुल 9 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं दूसरे जिले में एक शख्स अपनी जान से जा चुका और एक बुरी तरह से ज़ख्मी होकर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है.

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यूपी के दो जिलों में कोहराम
इनमें से एक जिला है बहराइच, जबकि दूसरा है लखीमपुर खीरी. वैसे तो इन दोनों जिलों के बीच फासला करीब 130 किलोमीटर से भी ज्यादा का है. लेकिन ये दोनों ही जिले इस वक्त एक ही जैसी तकलीफ से जूझ रहे हैं. बहराइच के लोग जहां जंगली भेड़ियों के आतंक से घबराए हुए हैं, वहीं लखीमपुर खीरी के लोग तो टाइगर यानी बाघ का निवाला बन रहे हैं. और हक़ीकत यही है कि पिछले कई महीनों से चल रहे ख़ौफ के इस सिलसिले का फिलहाल किसी के पास कोई इलाज नहीं. प्रशासन के पास भी नहीं और वन विभाग के पास भी नहीं.

बहराइच में भेड़ियों का आतंक
सबसे पहले बात बहराइच की. नेपाल से सटे यूपी के इस जिले में टाइगर यानी बाघों का आतंक तो पुरानी बात है, लेकिन अब नई बात भेड़ियों की शक्ल में सामने आई है. भेड़िये कभी रात के अंधेरे में तो दिन के उजाले के बीच ही गांवों में घुस आते हैं और अक्सर बच्चों को दबोच कर भाग निकलते हैं. हालत कितनी खराब है, इसका अंदाजा बस इसी बात से लगा सकते हैं कि पिछले 45 दिनों में इन भेड़ियों की आहट से जिले के 35 गांवों के लोगों की नींद हराम हो चुकी है और इन भेड़ियों ने 8 बच्चों और एक महिला की जान ले ली है.

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शासन-प्रशासन से नहीं कोई उम्मीद
भेड़िये बड़े चालाक हैं. आसानी से पकड़ में नहीं आते. वैसे भी वो अकेले नहीं होते, बल्कि झुंड में शिकार करते हैं. ऐसे में अगर वन विभाग बड़ी मशक्कत से किसी भेड़िये को काबू कर भी ले, तो बाकी का झूंड छुट्टा ही रह जाता है और खतरा कम नहीं होता. हार कर अब लोगों ने शासन-प्रशासन से उम्मीद छोड़ कर खुद ही दिन-रात जागकर अपने नौनिहालों की रखवाली शुरू कर दी है. अब वन विभाग के ड्रोन कैमरे में कैद हुए भेड़ियों की तस्वीरें भी सामने आई हैं. जिनमें देखा जा सकता है कि कैसे दिन के उजाले में भी भेड़िये बिल्कुल बेख़ौफ़ जंगल से निकल कर गांवों की ओर बढ़ते जा रहे हैं. 

भेड़ियों ने बदला हमले का वक्त
कभी ड्रोन के नीचे आने से वो थोड़ा ठिठकते हैं, लेकिन अगले ही पल डायरेक्शन चेंज कर आगे बढ़ने लगते हैं. ये भेड़िये इतने शातिर हैं कि ज्यादातर बच्चों की ही निशाना बनाते हैं, क्योंकि 3 फीट तक लंबे इन भेड़ियों के लिए बच्चों को उठा कर ले जाना आसान होता है. अब चूंकि हाल के दिनों में लोगों ने रात-रात भर जाग कर भेड़ियों को भगाना शुरू कर दिया है, भेड़ियों ने हमले का टाइम चेंज कर दिया है. अब कभी भी कहीं भी धावा बोल देते हैं. बस हमला तभी करते हैं, जब लोग सो रहे हों या फिर बच्चे अकेले हों. और तो और हमले के लिए ये घरों में भी घुस आते हैं.

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महसी तहसील में आठ घटनाएं
और अब इसी के चलते रात में पहरेदारी की जा रही है. आम लोगों के साथ-साथ हाथ में बंदूक लिए बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह भी भेड़ियों का पीछा कर रहे हैं. जब से इलाके में भेड़ियों का आतंक बढ़ा है, नेताजी ने भी अपनी लाइसेंसी राइफल थाम कर आदमखोरों की तलाश बिल्कुल एक्टिव हो चुके हैं. लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद ना तो भेड़ियों का हमला थम रहा है और ना ही मासूमों की मौत रुक रही है. अकेले जिले के महसी तहसील में आठ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें भेड़ियों ने बच्चों को अपना निवाला बनाया है. 

एक बाद एक वारदात
26 अगस्त की रात को खैरीघाट इलाके के दीवानपुरवा से महज 5 साल के एक बच्चे अयांश को भेड़िया उठा ले गया. बच्चा अपनी मां के साथ सो रहा था, नींद खुलने पर महिला ने शोर मचाना शुरू किया. लोग बच्चे की तलाश में निकले लेकिन उसका कोई पता नहीं चला. और बदनसीबी देखिए कि अगले दिन सुबह गांव से कुछ दूरी पर बच्चे की लाश पड़ी हुई मिली. इसी तरह कुम्हारनपुरा में भेड़ियों ने एक बुजुर्ग महिला को रात को घर से ही खींच लिया. भेड़ियों की पकड़ इतनी खतरनाक थी कि महिला चीख तक न सकी.

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बच्चों को मुंह में दबाकर ले जाते हैं भेड़िए
इससे पहले 21 तारीख को गांव भटौली में ऐसे ही अपनी दादी के साथ घर में सो रही एक बच्ची को एक भेड़िया उठा ले गया. भेड़िये ने बच्ची को मुंह से दबोच रखा था. दादी के शोर मचाने पर घरवाले बाहर निकले, तलाश शुरू की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. आखिरकार कई घंटे बाद बच्ची के अवशेष बरामद हुए. हालांकि ऐसा नहीं है कि बहराइच में लोगों की जिंदगी पर बन आए इन भेड़ियों से निपटने के लिए शासन प्रशासन कोई कोशिश नहीं कर रहा है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात है.

चार भेड़ियों को पकड़ने का दावा
यूपी के पांच वन प्रभागों यानी बहराइच, करतनियाघाट वाइल्ड लाइफ, श्रावस्ती, गोंडा और बाराबंकी में वन विभाग की 25 टीमें इन भेड़ियों को पकड़ने की कोशिश कर रही है, मगर भेड़ियों हैं कि लगातार वनकर्मियों को छकाते जा रहे हैं. भेड़ियों की सही-सही तादाद को लेकर भी असमंजस के हालात हैं. बहराइच वन विभाग जहां इन भेड़ियों की तादाद कुल छह बता रहा है, वहीं तो ग्रामीण इस संख्या दो दर्जन यानी 24-25 के आस-पास बताते हैं. हालांकि वन विभाग ने अब चार भेड़ियों को पकड़ने का दावा भी किया है.

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भेड़ियों को भगाने का अजब तरीका
वैसे भेड़ियों को भगाने का अब वन विभाग ने नायाब तरीका भी ढूंढ निकाला है. इसके लिए खास तौर पर हाथियों की लीद और मूत्र मंगवाए जा रहे हैं. असल में वन विभाग का कहना है कि हाथियों की लीद और मूत्र में आग लगा कर धुआं पैदा करने से भेड़ियों को अपने आस-पास हाथियों की मौजूदगी का अहसास होने लगेगा और वो इलाका छोड़ कर भाग जाएंगे. वन अधिकारियों की मानें तो भेड़िये हाथियों से डरते हैं और उनसे दूर रहना चाहते हैं. वैसे वन विभाग की इन कोशिशों का नतीजा कब निकलेगा और कब बहराइच का ये इलाका भेड़ियों के आतंक से मुक्त होगा, ये फिलहाल कोई नहीं जानता.

लखीमपुर खीरी में बाघ का आतंक
बहराइच से 130 किलोमीटर दूर यूपी के लखीमपुर खीरी में अलग ही आतंक पसरा है. बहराइच में लोग भेड़ियों के हमले से परेशान हैं और लखीमपुर खीरी के लोग बाघों से जूझ रहे हैं. जिले के 50 गांवों में लोगों का जीना हराम हो चुका है. गरज ये कि कब कहां किस गांव में गन्ने की खड़ी फसल के बीच से कोई रॉयल बंगाल टाइगर निकल आए और खेतों में काम कर रहे किसी किसान को निवाला बना कर फरार हो जाए ये कोई नहीं जानता. यही वजह है कि अब गांव के गांव लोग पहेरादारी में जुटे हैं, अकेले खेतों में काम करने जाने से डरने लगे हैं.

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एक शख्स को बाघ ने बनाया शिकार
जिले के इमलिया गांव में 45 साल के अमरीश कुमार को एक बाघ ने तब हमला कर मार डाला, जब वो गन्ने के खेत में काम कर रहे थे. अमरीश कुमार जब देर तक घर नहीं लौटे तो लोगों ने उनकी तलाश शुरू की, लेकिन गांव वाले तब सकते में आ गए, जब उन्होंने अमरीश कुमार खून से सनी क्षत-विक्षत लाश देखी. लाश को देखते ही साफ था कि वो बाघ के हमले का शिकार बने हैं. 

टाइगर रिजर्व की वजह से खतरा
वैसे ये पहला मौका नहीं है, जब लखीमपुर खीरी में लोग बाघों के हमले से जान गंवा रहे हैं. दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व से घिरे लखीमपुर खीरी में पहले भी बाघ ऐसे रिहायशी इलाकों में आते रहे हैं और लोगों की जान लेते रहे हैं. लखीमपुरी खीरी के नजदीक अकेले दुधवा टाइगर रिजर्व में ही 140 से ज्यादा बाघों की आबादी है, लेकिन जिस तरह से ये बाघ ग्रामीण इलाकों में घुस रहे हैं, वो एक बड़ा खतरा बन चुका है.

खेतों में काम करने वाले इंसान बने शिकार
लखीमपुरी के बाघ प्रभावित गावों में रहने वाले लोग बताते हैं कि वैसे तो बाघ हर बार गन्ने की फसल के ऊंची होने के साथ ही जंगल से रिहायशी इलाकों और खेतों की तरफ चले आते हैं, क्योंकि इन फसलों के बीच उन्हें अक्सर मवेशियों, सियार और जंगली सूअर की सूरत में आसान शिकार मिल जाते हैं. लेकिन असली दिक्कत तब होती है, जब बाघ गन्ने के खेतों में काम कर रहे इंसानों को भी अपना निवाला बना लेते हैं. एक खास बात है कि अब तक जितने भी लोगों को बाघ ने मारा है, वो सभी के सभी लोग खेतों में बैठ कर काम कर रहे थे और बाघ ने पीछे से ही हमला किया. लेकिन खड़े लोगों को और खास कर सामने से बाघ ने कभी किसी को टार्गेट नहीं किया. इससे लगता है कि शायद बाघ इंसानों को भी धोखे से ही मारते हैं, जानबूझ कर नहीं.

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बाघों को काबू करने की कोशिश जारी
वैसे तो लखीमपुरी खीरी में बाघों के आतंक की कहानी पुरानी है, लेकिन इस बार ये सिलसिला पिछले करीब छह महीनों से चल रहा है. हाल के दिनों में जहां एक शख्स बाघ के हमले में अपनी जान गंवा चुका है, वहीं दसरा शख्स बुरी तरह से जख्मी हो कर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है. यही वजह है कि अब वन विभाग इन बाघों को काबू करने की कोशिश में जुटा है. कहीं पिंजरा लगा कर अंदर चारे के तौर पर बकरी बांधी जा रही है, कहीं जाल लगाने की तैयारी है तो कहीं ड्रोन से ट्रैकिंग की जा रही है. हालत ये है कि गांव वालों ने अपने-अपने इलाकों में बाघों से बचने के लिए पहरा देना शुरू कर दिया है और वन विभाग के अधिकारी अकेले सुनसान जगहों और गन्ने के खेतों में काम के लिए जाने से किसानों को बचने की सलाह दे रहे हैं. लोगों को जागरुक करने के लिए इलाके में मुनादी भी की जा रही है.

(लखीमपुर खीरी से अभिषेक वर्मा और बहराइच से रामबरन चौधरी के साथ अभिषेक मिश्र की रिपोर्ट)

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