
प्रदेश में विधानसभा चुनावों में कानून और न्याय व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा है. प्रदेश की योगी सरकार लगातार इसे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में शुमार कर रही है. क्राइम कंट्रोल के उसके दावे में आंकड़ों की भी भरमार है. हालांकि इंडिया जस्टिस रिपोर्ट यूपी की कानून और न्याय व्यवस्था को लेकर एक बिल्कुल अलग तस्वीर दिखाती है. रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 18 बड़े राज्यों में यूपी इस मामले में 18वें नंबर पर है. ये रैंकिंग 2020 की है. 2019 में भी यूपी 18वें नंबर पर ही था.
ये रैंकिंग चार प्रमुख मानकों पर तय होती है. इसमें पुलिस, जेल, अदालत और कानूनी मदद शामिल है. इन पैमानों पर राज्यों के प्रदर्शन के आधार पर ओवरऑल रैंकिंग तय होती है. साथ ही चारों प्रमुख अंगों की रैंकिंग अलग से भी दी जाती है.
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस के मामले में यूपी की रैंकिंग 15वीं, जेल के मामले में 17वीं, अदालत के मामले में भी 17वीं और कानूनी मदद के मामले में 18वीं है. इस लिहाज से देखा जाए तो चारों मामलों में यूपी फिसड्डी ही रहा है. हालांकि, पुलिस के मामले में यूपी की रैंकिंग 2019 की तुलना में 2020 में सुधरी है. 2019 में यूपी की रैंकिंग 18 थी.
1. पुलिस
- 2016 से 2020 तक यूपी में पुलिस में 50,526 भर्तियां हुईं. इनमें से 84% भर्तियां कॉन्स्टेबल के पद पर हुईं. जनवरी 2016 में यूपी पुलिस में एससी-एसटी वर्ग के 55% पद खाली थे जो 2020 में कम होकर 44% हो गए. इसी तरह 2016 में अनारक्षित वर्ग के लिए 48% पद खाली थे, जो 2020 में घटकर 26% हो गए. यानी, 5 साल में आरक्षित वर्ग की तुलना में अनारक्षित वर्ग के लोगों की भर्तियां ज्यादा हुईं.
- नेशनल पुलिस कमीशन ने ग्रामीण इलाकों में हर 150 वर्ग किलोमीटर के दायरे में एक पुलिस स्टेशन होने की सिफारिश की है. लेकिन उत्तर प्रदेश में हर 234.5 वर्ग किलोमीटर इलाके में एक पुलिस थाना है. वहीं, शहरी इलाकों में हर 15 वर्ग किमी इलाके में एक पुलिस थाना बना है. ये सारे आंकड़े 2020 तक के हैं.
- उत्तर प्रदेश पुलिस में महिलाओं की संख्या भी काफी कम है. 2020 तक यूपी में कुल पुलिसकर्मियों में सिर्फ 9.6% महिलाएं थीं. यूपी पुलिस में सिर्फ 3.8% ही महिला अफसर हैं.
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2. जेल
- यूपी में जेल के स्टाफ में हर 2 में से एक पद खाली है. यूपी की जेलों में अफसरों के 54% पद ही भरे हैं, जबकि 18 बड़े राज्यों का औसत 69% का है.
- हर 200 कैदी पर एक करेक्शनल स्टाफ का होना अच्छा माना जाता है, लेकिन यूपी में हर 53,698 कैदी पर एक स्टाफ है.
- साल 2020 तक यूपी की जेलों में 1,07,395 कैदी थे, जिनमें से 75% यानी 80,557 कैदी अंडरट्रायल थे. यानी, इनका मुकदमा अदालतों में चल रहा था.
3. अदालत
- यूपी की अदालतों में जजों के भी ज्यादातर पद खाली हैं. 2021 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों के 41% पद खाली थे. वहीं सबऑर्डिनेट कोर्ट में 29% पद खाली पड़े थे.
- एक जज के लिए एक कोर्ट हॉल होना अच्छा माना जाता है, लेकिन यूपी में जजों की तुलना में कोर्ट हॉल 29% कम हैं. यहां 3,695 जजों के लिए 2,591 कोर्ट हॉल हैं.
- इसके अलावा यूपी की निचली अदालत में अगर कोई केस गया है तो वो औसतन 6 साल तक लंबित रहता है. यूपी की अदालतों में 36% केस ऐसे हैं जो 5 साल से ज्यादा लंबित रहते हैं. 16% केस का ट्रायल 10 साल से भी ज्यादा चलता है.
- अदालतों में महिला जजों की संख्या काफी कम है. 2022 तक हाईकोर्ट में जजों में सिर्फ 5.4% ही महिलाएं हैं. निचली अदालतों के आंकड़े 2019 तक के मौजूद हैं. यहां 25% महिला जज हैं.
4. कानूनी मदद
- संविधान में हर व्यक्ति को कानूनी मदद पाने का अधिकार मिला है. अगर कोई व्यक्ति किसी वजह से कानूनी खर्च नहीं उठा सकता तो ऐसे में राज्य सरकार उसकी मदद करती है.
- नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (NALSA) की सिफारिश है कि हर 6 गांव पर एक लीगल ऐड क्लीनिक होनी चाहिए, जहां लोगों को कानूनी मदद मिल सके. लेकिन यूपी में 2020 तक हर 520 गांव पर एक क्लीनिक है.
- आंकड़ों के मुताबिक, 2019-20 में यूपी में 6,619 लोगों को कानूनी मदद मिली थी, जबकि 2020-21 में ये संख्या घटकर 1,019 लोगों पर आ गई. हालांकि, ये कोरोनाकाल था और हो सकता है कि महामारी ने इसे प्रभावित किया हो.