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सहारनपुर हिंसा: ये है दलितों के आक्रोश के पीछे का चेहरा

दिल्ली से करीब 180 किलोमीटर की दूरी यूपी का सहारनपुर जिला इनदिनों जातिय हिंसा की आग में जल रहा है. सहारनपुर की सनसनी से पूरा यूपी सहमा हुआ है. राजपूत और दलित समुदाय के लोग एक-दूसरे के सामने हैं. इस पूरे बवाल में एक संगठन का नाम सबसे आगे आ रहा है, वो है भीम आर्मी. इसकी स्थापना दलित समुदाय के सम्मान और अधिकार को लेकर की गई है. एडवोकेट चंद्रशेखर आजाद ने जुलाई 2015 में इसका गठन किया था.

भीम आर्मी का संस्थापक एडवोकेट चंद्रशेखर आजाद भीम आर्मी का संस्थापक एडवोकेट चंद्रशेखर आजाद
मुकेश कुमार
  • ,
  • 11 मई 2017,
  • अपडेटेड 1:50 PM IST

दिल्ली से करीब 180 किलोमीटर की दूरी यूपी का सहारनपुर जिला इनदिनों जातिय हिंसा की आग में जल रहा है. सहारनपुर की सनसनी से पूरा यूपी सहमा हुआ है. राजपूत और दलित समुदाय के लोग एक-दूसरे के सामने हैं. इस पूरे बवाल में एक संगठन का नाम सबसे आगे आ रहा है, वो है भीम आर्मी. इसकी स्थापना दलित समुदाय के सम्मान और अधिकार को लेकर की गई है. एडवोकेट चंद्रशेखर आजाद ने जुलाई 2015 में इसका गठन किया था.

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इस संगठन का पूरा नाम 'भीम आर्मी भारत एकता मिशन' है. भीम आर्मी पहली बार अप्रैल 2016 में हुई जातीय हिंसा के बाद सुर्खियों में आई थी. दलितों के लिए लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले चंद्रशेखर की भीम आर्मी से आसपास के कई दलित युवा जुड़ गए हैं. चंद्रशेखर का कहना है कि भीम आर्मी का मकसद दलितों की सुरक्षा और उनका हक दिलवाना है, लेकिन इसके लिए वह हर तरीके को आजमाने का दावा भी करते हैं, जो कानून के खिलाफ भी है.

पिछले 5 मई को सहारनपुर के थाना बडगांव के शब्बीरपुर गांव में दलित और राजपूत समुदाय के बीच हिंसा हो गई. इस जाति आधारित हिंसा के दौरान पुलिस चौकी को जलाने और 20 वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया. कई स्थानों पर बीते बुधवार को भी पथराव और झड़प की घटनाएं हुई. इस घटना के एक दिन बाद दो पुलिस अधिकारियों का तबादला कर दिया गया. एसपी सिटी और एसपी रूरल का सहारनपुर से तबादला कर दिया गया.

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द ग्रेट चमार पर गर्व करते हैं गांववाले
दलित समुदाय का नेतृत्व कर रहे 30 वर्षीय चंद्रशेखर दावा करते हैं कि भीम आर्मी यूपी सहित देश के सात राज्यों में फैली हुई है. इसमें करीब 40 हजार सदस्य जुड़े हुए हैं. इस संगठन का केंद्र सहारनपुर का घडकौली गांव है. गांव के बाहर एक साइन बोर्ड लगा है. इस पर लिखा- 'द ग्रेट चमार डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ग्राम घडकौली आपका स्वागत करता है.' दलितों के लिए 'चमार' शब्द का इस्तेमाल जातिसूचक अपराध माना जाता है. इस पर सजा भी हो सकती है.

यहां 2016 में भी हुआ था जातीय संघर्ष
वहीं, घडकौली गांव के दलित इस शब्द पर एतराज नहीं बल्कि गर्व महसूस करते हैं. अपनी पहचान और अपनी जाति पर इस गांव के दलित शर्मिंदा नहीं है. एक हजार से ज्यादा आबादी वाले घडकौली गांव में 800 से ज्यादा दलित परिवार रहते हैं. दलितों की एकजुटता का नतीजा ही है कि गांव वालों ने इस गांव को 'द ग्रेट चमार' नाम दे दिया, लेकिन इस नाम के लिए उन्हें साल 2016 में जातीय संघर्ष के रूप में कीमत भी चुकानी पड़ी थी.

बवाल के बाद एकजुट होते गए दलित
23 साल के टिंकू बौद्ध डिटर्जेंट पाउडर का व्यापार करते हैं. घडकौली गांव में भीम आर्मी के ग्राम प्रमुख हैं. दलितों की लड़ाई लड़ने के लिए टिंकू फरवरी 2016 में भीम आर्मी का हिस्सा बन गए. अप्रैल 2016 में इस गांव में काफी बवाल हुआ था, जब दो जातियों के बीच गांव के इसी बोर्ड पर विवाद उठ गया. मामला जातीय हिंसा तक पहुंच गया, जिसके बाद पुलिस द्वारा लाठी चार्ज भी किया गया. इस गांव के दलित एकजुट होते चले गए.

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आज भी नहीं भूल पाते घडकौली कांड
घडकौली कांड आज भी गांव वाले भूल नहीं पाते. आरोप है कि दूसरी जाति के लोगों ने पहले गांव के नाम वाले इस बोर्ड को काली स्याही से रंग दिया और उसके बाद गांव में लगी अंबेडकर की प्रतिमा पर भी स्याही पोती. गांव वालों का आरोप है कि यह सब दबंगों द्वारा किया गया और शिकायत पर पुलिस ने भी गांव वालों की नहीं सुनी. हालात सुधरे और गांव में फिर से 'द ग्रेट चमार ग्राम' का बोर्ड हर आने-जाने वाले का स्वागत करता है.

 

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