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बिहार कोरोना घोटाला: भ्रष्ट बाबुओं और पंचायत प्रमुखों के गठजोड़ ने राहत सामग्री में लगाया चूना

जांच में खुलासा हुआ है कि किस तरह ग्रामीणों को मुफ्त दी जाने वाली राहत सामग्री में कुछ शातिरों ने सेंध लगाकर अपनी जेबें भरीं.

सुपौल जिले के लौध गांव के मुखिया जय प्रकाश कुमार सुपौल जिले के लौध गांव के मुखिया जय प्रकाश कुमार
मो. हिज्बुल्लाह
  • मुजफ्फरपुर /पूर्वी चंपारण/सुपौल,
  • 20 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 11:09 PM IST

  • कोरोना काल में मास्क-साबुन के फंड में सेंध लगा कर भरीं अपनी जेबें
  • राज्य सरकार ने पंचायतों को सामग्री खरीदने के लिए अधिकृत किया

बिहार को महामारी और बाढ़ का सामना ही कम नहीं था कि इसके कुछ हिस्सों में कोरोना राहत के लुटेरों ने अपना जाल बिछा दिया. आजतक/इंडिया टुडे की जांच में खुलासा हुआ है कि किस तरह ग्रामीणों को मुफ्त दी जाने वाली राहत सामग्री में कुछ शातिरों ने सेंध लगाकर अपनी जेबें भरीं. ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए सरकार की ओर से लोगों को मास्क और साबुन की टिकिया देने की योजना बनाई गई थी.

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मई में, नीतीश कुमार सरकार ने कोविड-19 राहत के लिए 170 करोड़ रुपये की घोषणा की, इसमें मास्क की खरीद के लिए 136 करोड़ रुपये और साबुन की टिकियों के लिए बाकी राशि शामिल थी. बिहार का प्रत्येक ग्रामीण परिवार 80 रुपये के चार मास्क और 20 रुपये मूल्य का एक बड़ा साबुन पाने का हकदार है.

राज्य सरकार ने पंचायतों को ये सामग्री खरीदने के लिए अधिकृत किया. इसके साथ ही पंचायतों को निर्देश दिया गया कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए ये सामान सिर्फ सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स, जीविका कार्यक्रम, राज्य खादी बोर्ड या स्थानीय कारीगरों से ही खरीदा जाए. खुले बाजार से सीधे खरीद की इजाजत नहीं है.

लेकिन आजतक/इंडिया टुडे की जांच से सामने आया कि गांव स्तर के कई नेता कमीशन के बदले प्राइवेट संस्थाओं से खरीदारी करने में लगे हैं.

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कम लागत, मोटे बिल

मुजफ्फरपुर में जलालाबाद पंचायत के मुखिया रविंद्र पासवान ने खुले बाजार से मास्क और साबुन खरीदने की बात कबूल की है.

रिपोर्टर- "क्या आपको स्थानीय रूप से सिले हुए मास्क मिलते हैं?”

पासवान- "नहीं, हमने उन्हें बाजार से खरीदा है. इसकी (मास्क) कीमत हमें 4 रुपये प्रति पीस पड़ी है. और एक साबुन की टिकिया 8 रुपये में. बिजली के साथ-साथ कुछ खर्च भी हैं, हम उन्हें लागत में जोड़ देंगे.” ग्राम प्रधान के मुताबिक, स्थानीय ब्लॉक विकास अधिकारी को महंगी ड्रिंक्स और मांसाहारी खाने की रिश्वत भी दी गई.

रविंद्र पासवान

पासवान- "हमें बीडीओ को मांसाहारी खाना, ड्रिंक्स और धूम्रपान भी मुहैया कराना था."

रिपोर्टर- "तो, कोरोना फंड का इस्तेमाल ड्रिंक्स, खाने और धूम्रपान के लिए किया जा रहा था, ठीक?"

ग्राम प्रधान ने "हां" में जवाब दिया.

रिपोर्टर- "क्या आपने चेक दिया और फिर विक्रेता से नकदी वापस ले ली?"

पासवान- "ऐसे ही सिस्टम काम करता है."

पंचायत- बाबू गठजोड़

मुन्ना कुमार

पूर्वी चंपारण के बलुआ गांव में, इंडिया टुडे के इंवेस्टिगेटिव रिपोर्टर ने पंचायत नेताओं और स्थानीय बीडीओ के बीच ऐसी ही सांठगांठ पाई. पंचायत के मुखिया मुन्ना कुमार ने कबूल किया कि खुले बाजार से कम दाम पर थोक खरीद की गई और राज्य सरकार को मंजूरी के लिए भेजे गए बिलों को बढ़ा-चढ़ा कर भेजा गया.

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कुमार ने कहा, '' हमें उन्हें खरीदना था लेकिन (आधिकारिक) पत्र में शर्त थी कि मास्क को बाजार से नहीं उठाया जा सकता है. उन्हें जीविका (ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम) के तहत खरीदा जाना था या उन्हें स्थानीय स्तर पर सिलाया जाना था.”

रिपोर्टर- "फंड (खरीद के लिए) आपके खाते में जमा किया गया होगा, है ना?"

कुमार- "हां, अब यह समझें कि पैसा बीडीओ को दिया गया था, जिसने तब खरीदारी की. बस समझ लें कि उसका (बीडीओ) मतलब कारोबार था. उसने बाहर से मास्क खरीदे और हमें बेच दिए. उसने हमें खरीदने के लिए (नियमों के अनुसार) अनुमति नहीं दी. इसके बजाय खुद खरीदारी की. हम नहीं जानते कि किसने और किसके साथ भागीदारी की, लेकिन मास्क हमें 15 रुपये प्रति पीस में बेचा गया."

रिपोर्टर- "अगर आपने खुद से खरीदारी की होती तो कितना पैसा कमा लेते?"

कुमार- "कम से कम 30 प्रतिशत निश्चित रूप से. लेकिन अगर हम बाजार के बिल का इस्तेमाल करते तो हमें परेशानी होती. उचित बिल की व्यवस्था बीडीओ की ओर से ही की जानी थी.”

सुपौल जिले के लौध गांव में, इसके मुखिया जय प्रकाश कुमार ने बताया कि कैसे स्थानीय बीडीओ के साथ मिलकर बाजार से मास्क खरीदे और सरकारी धन को निकालने के लिए नकली बिल तैयार किए.

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जय प्रकाश- "हमने बाहर से खरीदारी की और कुछ ऑर्डर पर सिलाई भी कराई, जब जीविका को अन्य जगहों के लिए मांग को पूरा करने में असमर्थ पाया.”

रिपोर्टर- "तो क्या आपने बीडीओ को बिल पास करवाने के लिए कमीशन दी?"

जय प्रकाश- "बेशक, हमने ऐसा किया. हमने 10 रुपए कीमत वाले मास्क के लिए 20 रुपए प्रति मास्क का बिल जमा किया.”

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