
दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने सिख दंगों के दोषी पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को मंडोली जेल भेजा है. जहां वो बैरक नंबर 14 में रहेंगे. उनके लिए वहां सुरक्षा के चाक-चौबंद इतंजाम किए गए हैं. हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने सज्जन कुमार को दंगे का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
इसलिए सज्जन को भेजा मंडोली जेल
सोमवार को सज्जन कुमार ने कोर्ट जाकर आत्मसमर्पण किया. इसके बाद उन्हें जेल भेजे जाने की कार्रवाई शुरू हुई. सभी को लग रहा था कि उन्हें तिहाड़ जेल भेजा जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कोर्ट ने सज्जन कुमार को दिल्ली की मंडोली जेल भेजने का फरमान सुना दिया. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी सज्जन कुमार की सुरक्षा. दरअसल, तिहाड़ जेल में देश के कई कुख्यात अपराधी बंद हैं. वैसे भी वहां क्षमता से कई ज्यादा कैदी हैं. ऐसे में सज्जन कुमार को वहां रखने पर उनकी सुरक्षा एक बड़ी चुनौती हो सकती थी. लिहाजा उन्हें मंडोली जेल भेजने का आदेश जारी हुआ.
इतनी सुरक्षित है मंडोली जेल
मंडोली जेल सुरक्षा के लिहाज से बहुत खास है. पूरा जेल परिसर आधुनिक सुरक्षा उपकरणों से लैस है. यहां चौकसी ऐसी है कि परिंदा भी पर ना मार सके. दरअसल, तिहाड़ और रोहिणी जेल में अधिकतम सीमा से ज्यादा कैदी हो जाने पर 1981 में मंडोली सेंट्रल जेल का प्रस्ताव आया था. लेकिन 2008 में इस जेल का निर्माण शुरू हुआ. अक्टूबर 2016 में यह जेल बनकर तैयार हुई. इसके निर्माण पर 340 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. 25 दिसंबर 2016 को इस जेल को विधिवत शुरू किया गया. कैदियों का यहां लाया गया. 68 एकड़ में बनी इस जेल में 3776 कैदी रखे जा सकते हैं.
आपको बताते चलें कि वर्ष 2016 में तिहाड़ जेल की क्षमता 5200 की थी, लेकिन उस वक्त वहां 12302 कैदी बंद थे. इसी प्रकार से रोहिणी जेल की क्षमता उस वक्त 1050 की थी, लेकिन वहां 1881 की संख्या में कैदी बंद थे.
कोर्ट ने कहा- मानवता के खिलाफ अपराध
गौरतलब है कि बीते 17 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को सिख दंगे का दोषी ठहराते हुए ताउम्र कारावास की सजा सुनाई थी. अपने फैसले में अदालत ने कहा था कि '1984 दंगे में राष्ट्रीय राजधानी में 2700 सिखों की हत्या की गई और यह घटना अविश्वसनीय नरसंहार थी.' कोर्ट ने इस घटना को 'मानवता के खिलाफ अपराध' बताया और कहा कि इसके पीछे वैसे लोग थे जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था और कानून का पालन करने वाली एजेंसियों ने भी इनका साथ दिया.
कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात का जिक्र किया कि देश के बंटवारे के समय से ही मुंबई में 1993 में, गुजरात में 2002 और मुजफ्फरनगर में 2013 जैसी घटनाओं में नरसंहार का यही तरीका रहा है और प्रभावशाली राजनीतिक लोगों के नेतृत्व में ऐसे हमलों में 'अल्पसंख्यकों' को निशाना बनाया गया और कानून लागू करने वाली एजेंसियों ने उनकी मदद की.
हाईकोर्ट ने बीती 21 दिसंबर को सज्जन कुमार के उस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था, जिसमें उन्होंने अदालत में समर्पण की मियाद 30 जनवरी तक बढ़ाने का अनुरोध किया था. सज्जन कुमार ने यह अवधि बढ़ाने का अनुरोध करते हुए कहा था कि उन्हें अपने बच्चों और जायदाद से जुड़े कुछ पारिवारिक मसले निबटाने हैं और शीर्ष अदालत में इस फैसले को चुनौती देने के लिए भी वक्त की जरूरत है.