
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में आईटीआई पास दो नौजवानों को जब नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने एक ऐसी योजना पर काम किया, जिससे वो मालामाल हो गए. लेकिन कहते हैं कि लालच बुरी बला है, ये दोनों नौजवान अपने गोरखधंधे को चमकाने के चक्कर में पुलिस के हत्थे चढ़ गए.
रातोंरात लाखपति बनने के लिए उन्होंने जो तरकीब निकाली वो रास्ता सीधे जेल की सलाखों के भीतर ही जाता था. पुलिस ने उन दोनों को लाखों की नकदी और नकली नोट छापने की मशीन के साथ पकड़ लिया. उनके पास लाखों की नकदी भी बरामद हुई.
पुलिस ने दुर्ग के एक पॉश इलाके में छापामारी कर दो नौजवानों को धर दबोचा है. इनमे से एक का नाम विशाल असवानी है, तो दूसरे का चूड़ामणि साहू, दोनों पढ़े-लिखे बेरोजगार थे. काफी समय तक उन्होंने रोजगार के लिए यहां-वहां हाथ मारा लेकिन रोजगार नहीं मिल पाया. इसी बीच आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी ने उनके अरमान जगा दिए.
कुछ दिनों तक दोनों दोस्तों ने मुफलिसी की जिंदगी गुजारी. उन दोनों के शैतानी दिमाग ने रातोरात लखपति बनने का प्लान तैयार किया. उन्होंने उसे फ़ौरन अमलीजामा भी पहना दिया. चूंकि लोग दो हजार के नए नोट से पूरी तरह वाकिफ नहीं हो पाए थे और ना ही उन्हें असली नकली की पहचान थी. लिहाजा विशाल असवानी और चूड़ामणि साहू का गोरखधंधा चल पड़ा.
दोनों ही आरोपियों ने कलर प्रिंटर के जरिए दो हजार के कई नोट बाजार में खपा दिए. इसके बाद उन्होंने सौ रुपए के खूब नोट छापे, उनके मुताबिक बड़े नोट में पकड़े जाने की संभावना ज्यादा रहती है. क्योंकि यह नोट जिसके भी हाथों में भी जाता है वो उसकी बारीकी से पड़ताल करता है इसलिए यह जोखिम भरा होता है. लिहाजा दोनों ने सौ के नोट छापने में ज्यादा जोर दिया.
पुलिस ने इनके पास से चार लाख रुपए के नकली नोट बरामद किए हैं, जबकि जहां इनका ठिकाना था वहां प्रिंटर के करीब तीन लाख साठ हजार के नकली नोट मिले हैं. इसके अलावा कटर, स्केल, नोट छापने का गुणवत्ता वाला पांच पैकेट पेपर भी बरामद हुआ. बताया जाता है कि यह पेपर बंगलादेश से कोलकाता और फिर वहां से कुरियर के जरिए रायपुर लाया जाता था.
विशाल और चूड़ामणि को पकड़ने के लिए पुलिस टीम को पूरे चार माह लग गए. दरअसल, कुछ लोगों ने पुलिस को इनके गोरखधंधों की जानकारी दी थी. लेकिन दोनों ही आरोपी इतने सतर्क थे कि उन्होंने अपने इस कार्य में किसी भी स्थानीय व्यक्ति को शामिल नहीं किया था, यही नहीं, जहां वे रहते थे और ज्यादा वक्त व्यतीत करते थे, वहां उन्होंने प्रिंटर नहीं रखा था. बल्कि एक पॉश कॉलोनी में अन्य घर ले रखा था, एक तय वक्त में दोनों वहां होते फिर मनमर्जी के साथ रकम छाप लिया करते थे.
कुछ ही पलों में यह रकम पॉइंटर के जरिए बाजार में खप जाती थी. पुलिस ने इन तक पहुंचने के लिए कई संदेहियों से इनपुट लिए और नकली नोटों के खपाने की तरकीब की पड़ताल की. फिर पुलिस कर्मियों ने खुद ग्राहक और पॉइंटर बनकर इनका विश्वास अर्जित किया. जिसके बाद पुलिस इनके पते तक पहुंचने में कामयाब रही. फ़िलहाल पुलिस मामले की तफ्तीश में जुटी है. उसकी कोशिश है कि इस गोरखधंधे को चमकाने वाले कई और आरोपी उसके हत्थे चढ़ेंगे.