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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में कथित रूप से देश विरोधी नारे लगाने के मामले में दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को पटियाला हाउस कोर्ट में कहा कि 2016 जेएनयू राजद्रोह मामले में पुलिस ने गोपनीय तरीके से और जल्दबाजी में आरोपपत्र दाखिल किया है. कन्हैया कुमार समेत अन्य के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने के संबंध में फैसला लेने के लिए सरकार को एक महीने से ज्यादा वक्त लगेगा.
दिल्ली सरकार ने मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट दीपक शहरावत की कोर्ट में आरोप लगाया कि पुलिस ने सक्षम अधिकारी से अनुमति लिए बगैर बेहद जल्दबाजी में और गुपचुप तरीके से चार्जशीट दाखिल की है.
कोर्ट ने पहले राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मुकदमा चलाने की अनुमति देने के संबंध में स्पष्ट समय सीमा के साथ उचित जवाब दाखिल करे. इस मामले की अगली सुनवाई 8 अप्रैल को होनी तय हुई है.
दिल्ली सरकार ने पटियाला हाउस कोर्ट में कहा, 'चार्जशीट पर फैसला स्टैंडिंग काउंसिल की सलाह मिलने के एक महीने के भीतर लिया जाएगा. इस मामले पर अभी दिल्ली सरकार की सीनियर स्टैंडिंग काउंसिल की सलाह नहीं ली गई है जिसका इंतजार है.'
इससे पिछली सुनवाई में दिल्ली सरकार के वकीलों ने कोर्ट से वक्त मांगा था कि उन्हें 2 महीने का वक्त यह तय करने के लिए चाहिए कि दिल्ली पुलिस की चार्जशीट पर अपना अप्रूवल दें या रिजेक्ट करें.
दिल्ली पुलिस ने कथित नारेबाजी के इस मामले में 3 साल बाद जनवरी महीने में चार्जशीट दाखिल की थी. दिल्ली सरकार ने इस मामले पर अपना पक्ष फिलहाल रखा ही नहीं है. दिल्ली पुलिस की ओर से पटियाला हाउस कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में कन्हैया कुमार, उमर खालिद, अनिर्बान के अलावा 7 कश्मीरी छात्रों को आरोपी बनाया गया है.
पुलिस ने चार्जशीट में कहा है कि या तो इन लोगों ने जेएनयू में देशद्रोही नारे लगाए या जिन लोगों ने नारे लगाए, ये उनका सहयोग कर रहे थे. पुलिस ने कोर्ट को 56 ऐसे छात्रों की सूची भी दी थी जिनके खिलाफ सीधे आरोप तो नहीं हैं लेकिन पुलिस को शक है कि वह देश विरोधी नारे लगाने में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल रहे थे.
हालांकि सुनवाई में देरी पर दिल्ली पुलिस का आरोप है कि दिल्ली सरकार लगातार मामले को और लंबा खींचने के लिए समय ले रही है. अब इस मामले पर कोई निर्णय तभी आ सकता है जब दिल्ली सरकार की सीनियर स्टैंडिंग काउंसिल भी अपना पक्ष रखे.
(पीटीआई और एएनआई इनपुट के साथ)