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दिल्लीः अस्पताल की लापरवाही ने छीन ली एक दिन के मासूम की जिंदगी

बच्चे के शव को लेकर वह लोग बदरपुर स्थित अपने घर आ गए. जैसे ही उन्होंने बच्चे के शव पर लपेटा हुआ कपड़ा हटाया तो बच्चे के शरीर में हरकत देख वह दंग रह गए.

जिंदा बच्चे को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया जिंदा बच्चे को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया
पुनीत शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 20 जून 2017,
  • अपडेटेड 12:03 PM IST

दिल्ली के जाने-माने सफदरजंग अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही की एक घटना सामने आई है. लापरवाही भी ऐसी कि उसने एक दिन के मासूम की जिंदगी छीन ली. दरअसल एक जिंदा बच्चे को अस्पताल प्रशासन ने मृत घोषित कर दिया लेकिन वह बच्चा जिंदा था. समय पर इलाज न मिलने के चलते उसकी मौत हो गई.

पीड़ित मां के मुताबिक, रविवार सुबह उसने सफदरजंग अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दिया था. कुछ देर बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बच्चे के शव को लेकर वह लोग बदरपुर स्थित अपने घर आ गए. जैसे ही उन्होंने बच्चे के शव पर लपेटा हुआ कपड़ा हटाया तो बच्चे के शरीर में हरकत देख वह दंग रह गए.

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अस्पताल ने बताया 40 हजार रोज का खर्च
आनन-फानन में मां-बाप बच्चे को लेकर नजदीकी अपोलो अस्पताल पहुंचे. वहां इलाज का खर्चा रोजाना करीब 40 हजार रुपये बताया गया. मजबूर मां-बाप यह खर्च वहन नहीं कर सकते थे, लिहाजा वह लोग एक बार फिर सफदरजंग अस्पताल पहुंचे, जहां मासूम का जन्म हुआ था. बच्चे की सांसें चलती देख डॉक्टरों ने उसे फौरन ऑक्सीजन देना शुरू किया.

36 घंटे बाद हार गई जिंदगी
वो मासूम इस दुनिया में आने के करीब 36 घंटे तक मौत से जंग लड़ता रहा. आखिरकार वह जिंदगी की जंग हार गया. सोमवार शाम करीब सवा चार बजे बच्चे ने अस्पताल में दम तोड़ दिया. दो अस्पतालों के बीच फंसी पांच घंटे की लापरवाही ने एक मासूम की जिंदगी महज 36 घंटे में समेट दी. अपोलो अस्पताल को महंगे बिल के सामने मासूम की जिंदगी सस्ती लगी.

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अस्पताल प्रशासन ने मानी गलती
वहीं सफदरजंग अस्पताल ने एक नन्हीं जान को मौत की चादर में लपेट दिया. अस्पताल प्रशासन अपनी गलती मान रहा है. पुलिस केस का संज्ञान लेते हुए जांच कर रही है. वहीं मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को भी इस बारे में सूचित किया गया है. जाहिर है, सफदरजंग अस्पताल ने अगर मासूम की जिंदगी को संजीदगी से लिया होता तो शायद वह मासूम आज जिंदा होता.

मासूम छोड़ गया एक सवाल
वो मासूम इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा तो कह गया लेकिन अपने पीछे एक सवाल जरूर छोड़ गया. सवाल यह कि आखिर सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों को जिंदा और मुर्दा का फर्क क्यों नहीं पता चला.

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