Advertisement

आरुषि-हेमराज मर्डर केस: पूछ रहा है डासना जेल...जाने वाले गए, आने वाले कब आएंगे?

तारीख 16 अक्तूबर. दिन सोमवार. वक्त शाम के चार बज कर पचपन मिनट. गाजियाबाद की डासना जेल का गेट खुलता है और डॉक्टर राजेश तलवार और नुपुर तलवार गेट के बाहर कदम रखते हैं. आठ कदम चलने के बाद दोनों रुक जाते हैं. कुछ सेकेंड के बाद फिर कदम बढ़ाते हैं. इस बार 11 कदम चलने के बाद फिर से रुक जाते हैं. मीडिया के कैमरों के लिए.

डॉक्टर राजेश तलवार और नूपुर तलवार डॉक्टर राजेश तलवार और नूपुर तलवार
मुकेश कुमार/शम्स ताहिर खान
  • गाजियाबाद,
  • 17 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 3:47 PM IST

तारीख 16 अक्तूबर. दिन सोमवार. वक्त शाम के चार बज कर पचपन मिनट. गाजियाबाद की डासना जेल का गेट खुलता है और डॉक्टर राजेश तलवार और नूपुर तलवार गेट के बाहर कदम रखते हैं. आठ कदम चलने के बाद दोनों रुक जाते हैं. कुछ सेकेंड के बाद फिर कदम बढ़ाते हैं. इस बार 11 कदम चलने के बाद फिर से रुक जाते हैं. मीडिया के कैमरों के लिए.

Advertisement

फिर करीब दो मिनट बाद आखिरी बार दोनों कदम बढ़ाते हैं और गाड़ी में बैठ कर जेल से रवाना हो जाते हैं. दोनों को जाता देख डासना जेल खुद से सवाल पूछती है कि जाने वाले तो गए अब आरुषि के कातिल के तौर पर कौन यहां आएगा? कभी कोई आएगा भी या नहीं? क्या मर्डर मिस्ट्री बनकर यह सनसनीखेज केस यूं हमेशा कहीं दब तो नहीं जाएगा?

डासना जेल के गेट से जैसे ही तलवार दंपत्ति ने कदम बाहर रखा वो आज़ाद हो गए. कैद से. सज़ा से. कानून से. इलज़ाम से. तोहमतों से. सबसे. तलवार दंपत्ति और उनकी रिहाई को लेकर कुछ हद तक कानूनी पेचीदगियों की मेहरबानी से पिछले चार दिनों से ये जेल गुलजार थी. गहमागहमी थी. मीडिया का जमावड़ा था. तमाशबीन थे. हैरान-परेशान पुलिसवाले थे.

अब डासना जेल एक बार फिर से खामोश है. जेल का गेट फिर से बंद है. जेल की चारदीवारी फिर से उसी सन्नाटे में डूब चुकी है. मडिया, भीड़, तमाशबीन, पुलिसवाले. सभी आहिस्ता-आहिस्ता रुख्सत हो लिए. मगर डासना जेल अब भी ये सवाल पूछ रही है कि जिसे चार साल उसने अपनी चारदीवारी में कैद रखा अगर वो बेकसूर थे तो फिर चार साल तक यहां क्यों थे?

Advertisement

अगर बेकसूर नहीं थे तो फिर इतनी जल्दी क्यों चले गए? और अगर कातिल कोई तीसरा है तो फिर वो यहां अब तक क्यों नहीं आया? कभी आएगा भी या नहीं? या फिर आकर चला गया? दलीलों, वकीलों और कहानियों में उलझी हिंदुस्तान की ये वो मर्ड़र मिस्ट्री है जिसने पिछले नौ सालों में ना जाने कितने ही पेंचोखम देखे हैं.

मगर दावे से आजतक कोई ये दावा नहीं कर पाया कि आरुषि-हमराज के मर्डर की जो कहानी उसके पास है उसके बारे में पुख्ता सबूत भी वो रखता है. ना यूपी पुलिस, ना सीबीआई ना धुरंधर वकील ना मीडिया कोई भी 15-16 मई की उस रात की पहेली को नहीं सुलझा पाय. हर किसी की अपनी कहानी थी. अपनी-अपनी थ्योरी. अपनी-अपनी दलील.

पर सबूत और गवाह से हरेक के हाथ तब भी खाली थे और आज नौ साल बाद भी खाली ही हैं. डॉक्टर राजेश और नुपुर तलवार की रिहाई के बाद फिलहाल आज का सबसे बड़ा सच यही है कि आरुषि और हेमराज का कत्ल तो हुआ...पर उन्हें किसी ने मारा नहीं. यदि मारा होता तो उनका कातिल आज इसी डासना जेल में होता.

फिलहाल अब ना इस जेल में आरुषि-हेमराज का कातिल कैद है और ना ही कानून के किसी पन्ने पर अब आरुषि और हेमराज के कातिल के तौर पर किसी का नाम दर्ज है. वैसे ज्यादा हैरान होने की जरूरत नहीं है. ना आरुषि अकेली ऐसी मिसाल है और ना हेमराज कोई पहला केस. इस देश में ना जाने कितने ही कातिल आज़ाद हैं. कितने केस अधूरे हैं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement