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मिडिल ईस्ट में ईरान की किस रेड लाइन की हो रही है चर्चा? क्या है Zangezur Corridor जिसके जरिए आगे बढ़ा रहा अपना प्लान

Iran अपनी हद पार करके इस्लामिक महाशक्ति बनना चाहता है. इसके लिए वह कई जगहों पर मोर्चा खोल चुका है. अपनी नई 'रेड लाइन' बना चुका है. यानी नई हद. अब इस हद के दोनों तरफ क्या होगा, क्या ईरान को फायदा मिलेगा या उसकी पहचान खत्म हो जाएगी.

ये है जंगेजूर कॉरीडोर का एक हिस्सा, जिसपर सड़क और रेलवे ट्रैक एकसाथ बनाए जा रहे हैं.  (फोटोः गेटी) ये है जंगेजूर कॉरीडोर का एक हिस्सा, जिसपर सड़क और रेलवे ट्रैक एकसाथ बनाए जा रहे हैं. (फोटोः गेटी)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST

ईरान मिडिल-ईस्ट में अपनी पकड़ कमजोर कर रहा है. वह हिज्बुल्लाह, हमास, इस्लामिक जिहाद और हूतियों के साथ इतना ज्यादा उलझ गया है कि वह 'रेड लाइन' पार नहीं कर पा रहा है. रेड लाइन की चर्चा इस समय मिडल ईस्ट में हो रही है. यह कोई जमीनी रेखा या सीमा नहीं है. 

'रेड लाइन' ये ईरान की उस हद की बात है, जिसके जरिए वह मिडिल-ईस्ट में डेवलपमेंट और शांति स्थापित कर सकता है. इस हद के एक तरफ विकास और शांति है. दूसरी तरफ जंग, जिहाद और बर्बादी. एक एंगल और है. ईरान सिर्फ एक देश के रूप में अपनी पहचान नहीं रखना चाहता. वह इस्लामिक महाशक्ति बनना चाहता है. 

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इसलिए उसने नई 'रेड लाइन' बना दी. जिसके लिए वह सऊदी को चुनौती दे रहा है. हूतियों की मदद कर रहा है. हमास के सपोर्ट में है. सीरिया में उसकी फौज मौजूद है. लेबनान में लगातार अपने प्रॉक्सी संगठन हिज्बुल्लाह से जंग करवा रहा है. यानी ईरान कई तरह से अपनी हद को पार कर भी रहा है और नहीं भी. 

 जंगेजूर कॉरीडोर... ईरान की हद के आगे शांति का नया प्लेटफॉर्म

जंगेजूर कॉरीडोर एक यातायात के लिए प्रस्तावित और बनाया जा रहा है रास्ता है. अगर यह पूरा हो जाता है तो इससे अजरबैजान को नाकशिवन ऑटोनॉमस रिपब्लिक तक आसानी से आने-जाने का रास्ता मिल जाएगा. जिसमें वह अपने कट्टर दुश्मन आर्मेनिया के प्रांत स्यूनिक के पास से गुजरेगा. लेकिन आर्मेनिया के चेक-प्वाइंट्स का यहां कोई अधिकार नहीं होगा. रूस भी इस इस कॉरीडोर की तारीफ करता है. 

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इस कॉरीडोर की मदद से आर्मेनिया और अजरबैजान में शांति स्थापित हो सकती है. ईरान इस कॉरीडोर का विरोध कर रहा है. क्योंकि उसे लगता है कि अगर यह कॉरीडोर बन गया तो पश्चिमी ताकतें मिडिल ईस्ट में मजबूत हो जाएंगी. ईरान कमजोर पड़ जाएगा. जमीनी सीमाओं से घिरे आर्मेनिया को व्यापार करने का ज्यादा मौका मिलेगा. इस्लामिक देशों में आर्मेनिया को आतंकवाद का अंतरराष्ट्रीय स्पॉन्सर माना जाता है. 

रूस की मदद से अजरबैजान बना पहलवान, ईरान का नहीं चल रहा जलवा

जंगेजूर कॉरीडोर पर अजरबैजान का कब्जा है. इसमें रूस उसकी मदद कर रहा है. ईरान इसे चुनौती नहीं दे पा रहा है. अगर आर्मेनियन सरकार चाहे तो जल्द ही फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका के साथ व्यापार कर सकता है. इसके लिए उसे तुर्की और अजरबैजान की सीमा की मदद लेनी होगी. अगर जंगेजूर कॉरीडोर आर्मेनिया के लिए खलुता है तो मुसीबत ईरान के लिए होगी. ईरान फिर से कॉकेकस इलाके में अपनी पकड़ नहीं बना पाएगा. 

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