
पहले बीप... बीप की लंबी आवाज, फिर एक-एक कर फटने लगे पेजर. धमाकों का सिलसिला देर तक चलता रहा और जब ब्लास्ट बंद हुए तबतक लेबनान में लगभग 3000 पेजर फट चुके थे. लेटेस्ट जानकारी के अनुसार अबतक 11 लोगों की मौत हो चुकी है और 4000 लोग घायल हो चुके हैं. इन धमाकों ने न सिर्फ लेबनान और उसके पड़ोसी सीरिया में थरथरी पैदा कर दी है बल्कि दुनिया भी इस हमले से सन्न है.
साजिश की सुई एक बार फिर दुनिया के सबसे शक्तिशाली जासूस संगठन मोसाद (Mossad) की ओर गई है. रॉयटर्स, अल-जजीरा और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसी मीडिया एजेंसियों का दावा है कि मोसाद ने ताइवान से लेबनान आ रहे 5000 पेजर की खेप को ही हैक कर डाला. रॉयटर्स ने लेबनान के सीनियर सुरक्षा एजेंसियों के हवाले से कहा है कि इस पेजर को "प्रोडक्शन लेवल" पर ही मोडिफाई कर दिया गया था.
रॉयटर्स ने लेबनानी अधिकारियों के हवाले से कहा है कि "मोसाद ने डिवाइस के अंदर एक बोर्ड लगाया है जिसमें विस्फोटक सामग्री है जो एक कोड सिग्नल प्राप्त कर सकता है. किसी भी माध्यम से इसका पता लगाना बहुत कठिन है. यहां तक कि डिवाइस या स्कैनर का प्रयोग करने के बावजूद ये बोर्ड डिटेक्ट नहीं हो पाता है."
इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद अपनी सस्पेंस, थ्रिलर और अति गुप्त ऑपरेशन के लिए दुनिया में अपना अलग रिकॉर्ड रखती है. हम आपको बताते हैं कि इजरायल की इंटेलिजेंस ऑपरेशन की वो कहानियां जिसने वर्ल्ड पॉलिटिक्स की डायनामिक ही बदल कर रख दी है. अन्यथा ईरान आज परमाणु क्षमता से संपन्न राष्ट्र होता. सीरिया ने भी अपना रिएक्टर बना लिया था. लेकिन कहा जाता है कि जहां जहां मोसाद की नजर गई, वहां सब कुछ नेस्तानाबूद हो गया.
जासूसी (Espionage), तोड़फोड़ (Sabotage) और गुप्त अभियानों (Covert operations) के कॉम्बिनेशन के माध्यम से मोसाद ने अपने विरोधियों की सैन्य और परमाणु महत्वाकांक्षाओं को प्रभावी ढंग से खत्म कर दिया है. मोसाद इसके लिए मुख्य रूप से चार तरह के तरीके अपनाता है. ये तरीके हैं-
तोड़फोड़ (Sabotage): दुश्मन के बुनियादी ढांचे को तहस-नहस करना
हत्याएं (Assassinations):दुश्मन के प्रमुख चेहरों को निशाना बनाना
अपहरण (Kidnappings): हाई टारगेट वाले लक्ष्यों पर कब्ज़ा करना
घुसपैठ (Infiltration): शत्रु संगठनों के भीतर खुफिया जानकारी इकट्ठा करना
Operation Stuxnet: इजरायल परमाणु शक्ति से लैस ईरान को अपने वजूद के लिए खतरा मानता है. जबकि ईरान इस परमाणु बम को हासिल करने के लिए अपने दायरे से बाहर जाकर भी काम करने के लिए तैयार दिखता है. बात जनवरी 2010 की है. International Atomic Energy Agency के निरीक्षक ईरान में नतांज यूरेनियम संवर्धन प्लान का दौरा कर रहे थे. उन्होंने देखा कि यूरेनियम गैस को एनरिच करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे सेंट्रीफ्यूज लगातार फेल हो रहे थे. इसका कारण पूरी तरह से रहस्यपूर्ण था. ईरानी वैज्ञानिकों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था.
दावा किया गया कि है ये सारा प्लान मोसाद का था. दरअसल Stuxnet एक खतरनाक कम्प्यूटर वायरस था. इसे मोसाद और अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी ने मिलकर विकसित किया था. इस वायरस ने ईरान के सेंट्रीफ्यूज को फिजिकल डैमेज पहुंचाया. इस वायरस की वजह से सेंट्रीफ्यूज इतनी तेजी से घूमे कि वे नाकाम हो गए. खास बात ये रही कि ये सेंट्रीफ्यूज दिखाने के लिए तो ईरानी वैज्ञानिकों को सामान्य डेटा रिपोर्ट भेज रहे थे, इस वजह से गड़बड़ी कैसे हो रही है इसका पता नहीं चल पा रहा था. इस वायरस ने ईरान की परमाणु महात्वाकांक्षा को काफी नुकसान पहुंचाया और उसका परमाणु कार्यक्रम अटक गया.
माना जाता है कि इस वायरस ने करीब 1,000 सेंट्रीफ्यूज को नुकसान पहुंचाया. सवाल यह है कि इजरायल इस वायरस को अत्यधिक सुरक्षा वाले ईरान के न्यूक्लियर प्लांट में मौजूद कम्प्यूटरों में प्लांट में कैसे सफल हुआ. दरअसल ये वही सवाल है जो मोसाद को मोसाद बनाता है और इसका जवाब उन लोगों के पास है जिनकी संख्या दुनिया में अंगुली पर गिनी जा सकती है.
Assassination of Iranian Nuclear Scientists: इजरायल ने ईरान को परमाणु बम हासिल करने से रोकने के लिए कई लेवल पर काम किया. इसमें परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या भी शामिल है. Mohsen Fakhrizadeh ईरान के चोटी के न्यूक्लियर साइंटिस्ट थे. ईरान समेत दुनिया के लोग तब भौचक्के रह गए थे. जब 2020 के आखिरी सालों में इस वैज्ञानिक की हत्या AI फीचर से लैस रिमोट मशीनगन से कर गई थी.
ईरान का दावा है कि इस वैज्ञानिक की हत्या के पीछे इजरायल और कुछ विद्रोही संगठन हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार Mohsen Fakhrizadeh की हत्या तब की गई थी जब पूर्वी तेहरान के अबसार्द इलाके में उनके कार को गोलियों से छलनी कर दिया गया था. इनकी हत्या पर ईरान के तत्कालीन नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के चीफ एडमिरल शखानी ने कहा था कि ये एक रिमोट अटैक था जिसके लिए खास तरीके अपनाए गए थे.
एडमिरल शखानी के अनुसार ये एक बहुत जटिल मिशन था इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने कहा कि था कि वारदात के वक्त घटनास्थल पर 'कोई मौजूद नहीं' था.
ईरानी मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार इस हमले के लिए रिमोट से चलने वाले मशीन गन का इस्तेमाल किया गया था या फिर वैसे हथियार प्रयोग में लाए गए जिसे सैटेलाइट से कंट्रोल किया जा रहा था.
Operation Plumbat: ऑपरेशन प्लमबैट एक गुप्त ऑपरेशन था जिसे इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद ने 1968 में चलाया था. इस ऑपरेशन का मकसद (येलोकेक यूरेनियम) संवर्धित यूरेनियम को मिस्र के हाथों में जाने से रोकना था. इस ऑपरेशन के दौरान, मोसाद के एजेंट्स ने नॉर्वे में एक जहाज "स्काई" को हाईजैक करने और यूरेनियम को कैप्चर करने की योजना बनाई थी.
मोसाद के एजेंट्स ने जहाज के चालक दल के सदस्यों को धोखा दिया और उन्हें जहाज को इजरायल के तेल अवीव बंदरगाह पर ले जाने के लिए मजबूर किया.
नवंबर 1968 में जब येलोकेक यूरेनियम को ले जाया जा रहा था तो बीच समंदर रात के अंधेरे में इजरायली एजेंटों ने इस जहाज को हाईजैक कर लिया और इसे इजरायल की ओर ले गए. यहां पर इस यूरेनियम को उतार लिया गया. इसके बाद इस ऑपरेशन को कवर अप करने के लिए नकली दस्तावेज देकर जहाज को फिर से समंदर में छोड़ दिया गया. ऑपरेशन प्लमबोट के परिणामस्वरूप, मिस्र की रॉकेट कार्यक्रम को बहुत नुकसान पहुंचा.
Operation Opera: इजरायल को अपने आस-पास किसी भी सूरत में परमाणु शक्ति मंजूर नहीं है. 1980 के दशक में जब इराक परमाणु कार्यक्रम चलाने लगा तो इजरायल तुरंत अलर्ट हो गया. इजरायल ने इराक के ओसिरक परमाणु रिएक्टर पर एक हवाई हमला किया, जिसे ऑपरेशन ओपेरा के नाम से जाना जाता है. ये प्लांट बन ही रहा था. तेल अबीव को डर था कि रिएक्टर का इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने के लिए किया जाएगा.
मोसाद के एजेंट इराक में घुसपैठ कर गए और न्यूक्लियर रिएक्टर की पूरी जानकारी ले ली. इसके बाद रोल आया इजरायली वायुसेना का. मोसाद के इंटेलिजेंस इनपुट का इस्तेामल करते हुए इजरायली वायुसेना ने एयरस्ट्राइक किए और रिएक्टर को तहस नहस कर दिए.
इस हमले ने इराक की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को कई साल पीछे धकेल दिया. इस स्ट्राइक के लिए इजरायल को अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन उस समय वह इराक को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकने में सफल रहा.
Operation Entebbe: ऑपरेशन एंटेबे इजरायली सेना और मोसाद का एक सफल ऑपरेशन था, जो 4 जुलाई 1976 को युगांडा के एंटेबे हवाई अड्डे पर हुआ था. इस ऑपरेशन का उद्देश्य युगांडा में अपहृत इजरायली और अन्य यात्रियों को छुड़ाना था.
27 जून 1976 को, एयर फ्रांस की उड़ान 139, जो इस्राइल से फ्रांस जा रही थी, को युगांडा में हाईजैक कर लिया गया था. अपहरणकर्ता यात्रियों को एंटेबे हवाई अड्डे पर ले गए और उन्हें वहां रखा.
इस्राइली सेना और मोसाद ने एक टीम बनाई, जिसमें 100 से अधिक कमांडो शामिल थे. ऑपरेशन 3 जुलाई 1976 की रात को शुरू हुआ. इजराइली कमांडो, एक ब्लैक मर्सिडीज और कुछ लैंड रोवर्स में एयरपोर्ट पर पहुंचे,ताकि ऐसा लगे कि युगांडा के राष्ट्रपति ईदी अमीन का काफिला आ रहा है. इजराइली कमांडो सीधे उस टर्मिनल तक पहुंचे, जहां बंधकों को रखा गया था. केवल 90 मिनट के अंदर उन्होंने सभी आतंकवादियों और युगांडा के 45 सैनिकों को मार गिराया. 102 बंधकों को सुरक्षित बचाया गया. ऑपरेशन को बेहद तेजी और सटीक लक्ष्य के साथ अंजाम दिया गया. पूरी कार्रवाई केवल 90 मिनट में समाप्त हो गई.
The Dubai operation: हमास कमांडर महमूद अल मबूह इजरायल का मोस्ट वांटेड था. उसकी हत्या 19 जनवरी 2010 को दुबई के एक होटल में हुई थी. वह हमास के मिलिट्री विंग अल कासिम ब्रिगेड का सह संस्थापक था. इजरायल का आरोप था कि उसने उसके दो सैनिकों को किडनैप कर उसकी हत्या कर दी.
इजरायली एजेंसियों ने गाजा में उसकी हत्या के लिए 3 बार कोशिशें की लेकिन हर बार वो बच निकला और भागकर दुबई आ गया. दुबई महमूद अल मबूह का चारागाह था. यहां वो आर्म्स डीलर से मिलता था और अपने दो नंबर काम को अंजाम देता था.
कहा जाता है कि मोसाद के एजेंट महमूद अल मबूह की तलाश करते करते यहां तक पहुंच गए. बताया जाता है कि मोसाद के 26 एजेंट उसकी तलाश में थे.
जिस रात की घटना है उस रोज दुबई में आने के बाद महमूद अल मबूह एक टैक्सी लेकर अल बुस्तान रोताना होटल के कमरा नंबर 230 में पहुंचा. इस शख्स ने ऐसे रूम की मांग की थी जिसमें न तो बॉलकनी हो और जिसकी खिड़कियां सील हो ताकि एकमात्र दरवाजे को छोड़कर दूसरे रास्ते से कोई अंदर न आ सके. वो होटल करीब 3.30 दोपहर में आया और 4.30 से 5 बजे के बीच कमरा छोड़ दिया. इसके तीन से चार घंटे के बाद उसने क्या किया ये स्पष्ट नहीं है.
इस बीच हिट स्क्वैड उसके कमरे में घुस चुके थे. कैसे कोई नहीं जानता है? रात आठ बजकर 24 मिनट पर मबूह लौटा और अपने कमरे में गया. इसके बाद वो अपनी पत्नी के फोन का जवाब देने में असमर्थ रहा.दुबई पुलिस के अनुसार रात 9 बजे तक उसकी मौत हो चुकी थी.
दुबई पुलिस के अनुसार मबूह को पहले नशीला पदार्थ दिया गया. दुबई पुलिस के डिप्टी कमांडर मेजर जनरल खमीस मत्तर अल-मज़ीना ने फोरेंसिक परीक्षणों के बाद कहा कि कमांडर मबूह को पहले उसके पैर में सक्सिनिलकोलाइन का इंजेक्शन लगाया गया था. इस इंजेक्शन से आदमी कुछ ही पलों में पैरालाइज हो जाता है. लेकिन उसकी चेतना नहीं जाती है. खलीज टाइम्स के अनुसार पैरालाइज करने के बाद तकिये से दम घोंट कर मबूह की जान ली गई.
दुबई की पुलिस के अनुसार पहले तो उन्हें ये सामान्य मौत लगी लेकिन फॉरेंसिक जांच के बाद इस कत्ल से रहस्य की परतें खुलती गई.
Adolf Eichmann punishment: इजरायल की खुफिया एजेंसी ने हिटलर की बदनाम नाजी आर्मी के अफसरों को भी पकड़ पकड़कर सजा दिलाई है. इस लिस्ट में एक नाम है नाजी सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल एडोल्फ आइशमन का. ये आदमी यहूदियों से जी भरकर नफरत करता था.
जब सेकेंड वर्ल्ड वार खत्म हुआ तो ये व्यक्ति जर्मनी से किसी तरह से भागकर अर्जेंटीना चला गया और वहां छिपकर रहने लगा.
बीबीसी के अनुसार अर्जेंटीना में छिपे रहने के दौरान आइशमन ने एक इंटरव्यू में कहा था,"सच बताऊं, अगर हमने यूरोप में रह रहे सभी एक करोड़ तीस लाख यहूदियों को खत्म कर दिया होता तो मैंने अपना काम पूरा किया होता."
1957 में मोसाद ने इस शख्स का पता ढूंढ निकाला. इसके बाद तत्कालीन इजरायली पीएम डेविड बेन गुरियों ने मोसाद के डायरेक्टर से कहा- हमें वो जिंदा या मुर्दा चाहिए.
20 मई 1960 को अर्जेंटीना अपनी स्वतंत्रता की 150वीं वर्षगांठ मनाने वाला था. इसमें शामिल होने के लिए इजरायल का प्रतिनिधिमंडल अर्जेंटीना जाने वाला था. कार्यक्रम 20 मई को था लेकिन इजरायल के जासूस वहां काफी पहले से मौजूद थे और रेकी कर रहे थे. तय समय पर इजरायल के शिक्षा मंत्री के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल अर्जेंटीना पहुंच गया. इसी विमान में क्रू के रुप में इजरायल के कमांडो सवार थे.
तय हुआ कि आइशमन को 11 मई 1960 की शाम सात बजकर 40 मिनट पर उसके घर के पास से उठा लिया जाएगा. मोसाद के एजेंटों ने पता लगाया कि आइशमन हर शाम पौने आठ बजे एक बस से घर लौटता और थोड़ी दूर पैदल चलता था. मोसाद को ये मौका मुफीद लगा. बस से उतरते ही आइशमन को दबोच लिया गया.
आइशमन का बेल्ट खोलकर उसकी अपेंडिक्ट ऑपेरशन की निशान चेक की गई ताकि पता लगाया जा सके कि ये वही बंदा है जिसने जर्मनी में यहूदियों पर कहर बरसाया था. पुष्टि होने के बाद इजरायली एजेंट उसे गुप्त ठिकाने पर लेकर चले गए.
इसराइली आइशमन को एक सेकेंड के लिए भी अकेला नहीं छोड़ सकते थे. जब वो टॉयलेट जाता था तो मोसाद का एक एजेंट उसके साथ होता था.
अगले 10 दिन इन इजरायली एजेंटों ने अर्जेंटीना के गुप्त ठिकाने पर ही बिताया. वो विदेश में अपने शत्रु के साथ थे. 18 मई को वो विमान अर्जेंटीना आया. ये विमान 21 को देर रात लौटने वाला था आइशमन को इजरायली एजेंटों ने ऐसा इंजेक्शन लगाया जिससे उसे नींद तो नहीं आई लेकिन उसे धुंधला दिखाई देने लगा.
इजरायली एजेंट अपने तरकीब और तकनीक की वजह से आइशमन को लेकर ब्यूनस आयर्स से फ्लाइट भरने में सफल रहे और ये प्लेन आखिरकार इजरायल पहुंच गया. 15 दिसंबर 1961 को आइशमन को मौत की सजा सुनाई गई और 31 मई , 1962 को उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया.
इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद का इतिहास ऐसे कई हैरतअंगेज और खुफिया ऑपरेशन से भरा पड़ा है. म्यूनिख ओलंपिक के दौरान इजरायली खिलाड़ियों की हत्या की कहानी को कौन भूल सकता है. इजरायल ने अपने खिलाड़ियों की हत्या का बदला लेने के लिए इस मिशन को नाम दिया था 'रैथ ऑफ गॉड' यानी ईश्वर का कहर. इस ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए कई सालों तक वे अपने परिवार से अलग रहे.