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पैंगॉन्ग झील के नजदीक चीन ने बनाई नई कॉलोनी... सैटेलाइट तस्वीरों से खुलासा

2020 में चीन के साथ जिस जगह संघर्ष हुआ था, उससे 38 km दूर चीन ने नई कॉलोनी बना ली है. वहां तेजी से निर्माण हो रहा है. ये इलाका पैंगॉन्ग झील से करीब है. इसकी वजह से फिर एक बार रणनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर तनाव का माहौल बनता दिख रहा है.

Maxar टेक्नोलॉजी से हासिल इस सैटेलाइट तस्वीर में दिख रही है चीन द्वारा बनाई गई नहीं कॉलोनी. (सभी फोटोः MAXAR) Maxar टेक्नोलॉजी से हासिल इस सैटेलाइट तस्वीर में दिख रही है चीन द्वारा बनाई गई नहीं कॉलोनी. (सभी फोटोः MAXAR)
अंकित कुमार/शिवानी शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 14 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:09 AM IST

भारत जहां एक तरफ डिप्लोमैटिक तरीके से सीमा पर बढ़ रहे तनाव को कम करने का प्रयास कर रहा है, वहीं चीन सीमा के नजदीक तेजी से निर्माण कार्य कर रहा है. हाल ही में इंडिया टुडे को जो सैटेलाइट तस्वीरें हासिल हुई हैं, उनमें साफ-साफ दिख रहा है कि पैंगॉन्ग झील के पास चीन ने उत्तरी किनारे पर काफी ज्यादा निर्माण कर लिया है. 

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साल 2020 में जिस जगह पर चीन और भारत के जवानों के बीच संघर्ष हुआ था, उस जगह से ये नई कॉलोनी मात्र 38 किलोमीटर दूर है. लेकन पैंगॉन्ग झील के पास ही है. इस जगह पर चीन और भारत के बीच सीमा को लेकर विवाद है. दोनों का अपना-अपना मत है. वैसे ये निर्माण कार्य चीन के स्वामित्व वाले तिब्बत में किया गया है. 

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लेटेस्ट सैटेलाइट तस्वीर अमेरिकी कंपनी मैक्सार टेक्नोलॉजी ने 9 अक्टूबर 2024 को ली है. जिसमें करीब 17 हेक्टेयर जमीन पर चीन निर्माण कार्य करता दिख रहा है. यह नई कॉलोनी येमागोऊ रोड के नजदीक है. जिसकी ऊंचाई करीब 4347 मीटर है. यानी करीब 14262 फीट. 

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तक्षशिला इंस्टीट्यूटशन में जियोस्पेशियल रिसर्च प्रोग्राम की प्रमुख और प्रोफेसर डॉ. वाई नित्यानंदनम ने बताया कि चीन यहां पर 100 से ज्यादा इमारतें बना रहा है. इसमें रिहायशी इमारतें, प्रशासनिक इमारतें दिख रही हैं. आसपास के खुले इलाकों में भविष्य में पार्क या खेलकूद की फैसिलिटी बन सकती हैं. इस जगह के दक्षिण-पूर्व में एक 150 मीटर लंबी स्ट्रिप है, संभावना है कि वहां पर हेलिकॉप्टर के लिए हेलीपैड बनाए जाएं. 

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नए निर्माण को देखकर लगता है कि ये अप्रैल 2024 में शुरू हुआ है. यह जगह एक ढलान है. यह कॉलोनी दो हिस्सों में बंटी है. पहले एडमिनिस्ट्रेटिव और दूसरी ऑपरेशनल जोन. परछाइयों की स्टडी से पता चलता है कि इमारतें एक और दो मंजिला ऊंची हैं. कुछ छोटी रिहायशी इमारतें भी तैयार की गई हैं. ताकि उसमें 6-8 लोग रह सकें. बड़ी इमारतों में एडमिनिस्ट्रेटिव काम होता है. या फिर वो स्टोरेज फैसिलिटी हैं. इस पूरी कॉलोनी में सीधी रेखा में निर्माण करने के बजाय Rows में निर्माण किया गया है, ताकि लंबी दूरी के हमलों से बचा जा सके. 

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डॉ. नित्यानंदनम ने बताया कि ऊंचाई पर होने और पहाड़ों के बीच होने की वजह से इस कॉलोनी को अपने आप कई खतरों से सुरक्षा मिल जाती है. क्योंकि यह सामान्य तरीके से दिखाई भी नहीं देगी. जमीन पर रखे सर्विलांस सिस्टम तो इसे देख ही नहीं सकते. इसके लिए आसमान में ही जाना पड़ेगा. हो सकता है कि ये चीन का अस्थाई फॉरवर्ड बेस हो. ताकि चीनी सेना का रिएक्शन टाइम कम किया जा सके. 

तिब्बती खानाबदोश लोगों के लिए बनाई गई कॉलोनी है

भारत-तिब्बत फ्रंटियर के ऑब्जर्वर नेचर देसाई ने कहा कि हो सकता है कि ये कॉलोनी तिब्बती खानाबदोश लोगों के लिए बनाई गई हो. इस जगह का नाम Chanzun Nuru है. यह एक ऐतिहासिक कैंपसाइट हैं. इसके बारे में स्वीडिश जियोग्राफर स्वेन हेडिन के Central Asia Atlas: Memoir of Maps में भी जिक्र है. 

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देसाई ने कहा कि निर्माण का तरीका किसी चीनी स्थाई निर्माण से ज्यादा कंसिसटेंट हैं. चीन की सरकार तिब्बती खानाबदोशों के लिए पिछले दो दशकों से गर बनाकर दे रही है. जिन्हें जियाकॉन्ग स्टाइल बॉर्डर डिफेंस विलेज कहते हैं. अगर ऐसा है तो ये पैंगॉन्ग झील के पास सबसे नजदीकी चीनी सेटलमेंट हो जाएगा. यानी चीन ने भारतीय सीमा के पास अपने वफादार तिब्बती खानाबदोशों को घर बनाकर दे दिया है. 

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वहीं डॉ. नित्यानंदनम ने कहा कि पानी के करीब सेटलमेंट का मतलब है, पानी की किल्लत से दूर रहना. क्योंकि ऊर्जा तो यहां रीन्यूबल ही लेनी होगी. जिस हिसाब से निर्माण हो रहा है, उससे लग रहा है कि रिहायशी इमारतें जल्दी से बन जाएंगी. लेकिन अगले कुछ महीनों कंस्ट्रक्शन रुक जाएगा. क्योंकि मौसम बेहद खराब होगा.

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