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पानी के अंदर कमांडो ऑपरेशन में काम आएगी Arowana, देश की पहली मिडगेट पनडुब्बी तैयार

मझगांव डॉक शिपयार्ड लिमिटेड ने नई मिडगेट पनडुब्बी बनाकर तैयार की है. इसका इस्तेमाल कौन करेगा, फिलहाल यह तय नहीं है. लेकिन इसका इस्तेमाल मिलिट्री के कोवर्ट ऑपरेशन और हार्बर पेनेट्रेशन में किया जा सकता है. नौसेना को ऐसी पनडुब्बियों की जरूरत है.

ये है मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड द्वारा बनाई गई एरोवाना मिडगेट पनडुब्बी. (फोटोः MDL) ये है मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड द्वारा बनाई गई एरोवाना मिडगेट पनडुब्बी. (फोटोः MDL)
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 15 मई 2024,
  • अपडेटेड 1:40 PM IST

भारत की पहली मिडगेट पनडुब्बी (Midget Submarine) बनकर तैयार है. इसे मझगांव डॉक शिपयार्ड लिमिटेड (MDL) ने बनाया है. इसका नाम एरोवाना (Arowana) है. इसकी डिजाइन और निर्माण दोनों ही MDL ने किया है. इस पनडुब्बी को प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट के तौर पर विकसित किया गया है ताकि दुनिया को यह पता चल सके कि भारत ऐसी पनडुब्बी खुद बना सकता है. 

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इसका फायदा सिर्फ समुद्री जांच-पड़ताल में ही नहीं बल्कि चुपचाप समंदर के अंदर युद्ध लड़ने की काबिलियत और क्षमता को बढ़ाना भी है. यह अंडरवाटर वारफेयर टेक्नोलॉजी का पुख्ता प्रमाण है. इसके जरिए कम कमांडो के साथ किसी भी तरह का मिलिट्री ऑपरेशन या खुफिया मिशन किया जा सकता है. 

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एरोवाना गहरे और छिछले पानी दोनों में गोता लगा सकती है. तैर सकती है. यह भारतीय नौसेना के युद्धपोतों और अन्य पनडुब्बियों से जुड़कर नेटवर्किंग के जरिए दुश्मन को चकमा दे सकती है. साथ ही कई तरह के मिशन को अंजाम दे सकती है. यह स्टेल्थ है और बेहद एक्टिव है. फिलहाल इससे ज्यादा जानकारी शेयर नहीं की गई है. 

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बताया जा रहा है कि इसकी लंबाई करीब 12 मीटर है. इसकी गति करीब 2 नॉट है. यानी कम स्पीड है. इसे फिलहाल एक ही आदमी चलाएगा. इसमें लिथियम आयन बैटरी लगी हैं. प्रेशर हल स्टील है. साथ ही स्टीयरिंग कंसोल है. 

क्या है भारतीय नौसेना की प्लानिंग? 

भारतीय नौसेना इस प्रयास में है कि उन्हें दो मिडगेट पनडुब्बियां मिलें. इसके लिए 2000 करोड़ रुपए खर्च किए जाने की खबर है. इनका इस्तेमाल मार्कोस कमांडो करेंगे.  

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क्या होती हैं मिडगेट सबमरीन? 

मिडगेट सबमरीन आमतौर पर 150 टन के अंदर की होती है. इसमें एक, दो या कभी-कभी छह या 9 लोग बैठकर किसी मिलिट्री मिशन को अंजाम दे सकते हैं. ये छोटी पनडुब्बी होती है. इसमें लंबे समय तक रहने की व्यवस्था नहीं होती. यानी कमांडो इसमें बैठकर जाएं और मिशन पूरा करके वापस आ जाएं. 

किस काम आती हैं ये पनडुब्बियां? 

आमतौर पर इनका इस्तेमाल कोवर्ट ऑपरेशन के लिए होता है. ये किसी भी बंदरगाह पर पेनेट्रेशन के काम आती हैं. ये मिशन कम समय के लिए तेजी से पूरा करने के लिए होते हैं. इसलिए ऐसी छोटी पनडुब्बियों का इस्तेमाल करते हैं. ताकि दुश्मन को इनके आने का पता आसानी से न चल पाए. 

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कैसे हथियार होते हैं इनमें? 

आमतौर पर मिडगेट पनडुब्बियों में टॉरपीडो और समुद्री बारूदी सुरंगें हथियार के तौर पर होती हैं. इसके अलावा कई बार इसमें गोताखोरों के लिए स्विमर डिलिवरी व्हीकल होते हैं. ताकि पनडुब्बी को नुकसान हो तो ये कमांडो इनके सहारे मिशन एरिया से सकुशल बाहर निकल सकें. 

नागरिक उपयोग की पनडुब्बियां

मिडगेट पनडुब्बियों का इस्तेमाल सिर्फ मिलिट्री नहीं करती बल्कि इनका इस्तेमाल व्यावसायिक भी होता है. जैसे अंडरवाटर मेंटेनेंस, खोजबीन, आर्कियोलॉजी, साइंटिफिक रिसर्च आदि. अब तो इनका इस्तेमाल समंदर के अंदर पर्यटन के लिए भी किया जा रहा है.

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