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करियर

कम उम्र में शादी, पति से अलगाव, 2 बच्चे,16 साल बाद ग्रेजुएशन... पढ़ें- स्वीपर से अफसर बनी आशा की कहानी

अशोक शर्मा
  • जोधपुर,
  • 15 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 5:24 PM IST
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अक्सर पढ़ी-लिखी या करियर ओरिएंंटेड लड़कियां भी शादी और बच्चों के बाद गृहस्थी में रम जाती हैं. फिर एक समय आता है जब वो पलटकर देखती हैं तो बहुत पछताती हैं. उनके मन में आता है कि काश मैं करियर न छोड़ती, लेकिन फिर से अपने पैरों पर खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं. ऐसी हर एक महिला को आशा की कहानी जरूर पढ़नी चाहिए... ये कहानी है जोधपुर के नगर निगम की सफाईकर्मी आशा कंडारा की जिसका कभी सपना था कि वो आर्मी ज्वॉइन करेंगी. लेकिन, तकदीर को कुछ और ही मंजूर था. घरवालों को रिश्ता मिल गया और कम उम्र में 12वीं पास करने के बाद ही शादी हो गई. ठीक से जीवन का दूसरे पड़ाव की जिम्मेदारियां भी न संभाल पाई थीं कि दो बच्चों के बाद पत‍ि से अलगाव हो गया. संघर्षों से भरी पहाड़ जैसी जिंदगी को जीते हुए स्वीपर से वो आज राजस्थान प्रशासनिक सेवा की अफसर बनने जा रही हैं. 

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आशा की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है.  जल्दी शादी होने के बाद बच्चों को पालते हुए भविष्य के सपने देख पाती, इससे पहले ही गृहस्थी बिखर गई. दो बच्चों के साथ पत‍ि से अलग होना पड़ा. लेकिन अलग होने के बाद 12वीं पास आशा ने अपने नाम के अनुरूप आशा नहीं छोड़ी. 

 

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आशा ने 16 साल बाद ग्रेजुएशन किया और मन में ठान लिया कि मुझे प्रशासनिक सेवा में जाना है. उसके साथ ही आशा ने आरएएस की तैयारी शुरू की, 2018 आरएएस भर्ती के लिए फॉर्म भरा. फिर प्री एग्जाम पास किया और उसके बाद मेन भी पास कर लिया लेकिन लंबी प्रक्रिया के दौरान परिवार को वित्तीय प्रबंधन की जरूरत थी. 

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परिवार में खर्च को पूरा करने के लिए आशा ने नगर निगम में सफाई कर्मी की भर्ती के लिए भी आवेदन कर दिया. लेकिन, जैसे ही 26 जून 2019 को परीक्षा दी फिर उसके 12 दिन बाद बर्फ सफाई कर्मचारी के पद पर नियुक्ति पत्र भी आ गया. वर्तमान में वो पावटा इलाके में  सफाई के लिए बनाई गई टीम में काम कर रही हैं फिर आरएएस एग्जाम देने के कुछ दिनों बाद ही नगर निगम में बतौर सफाई कर्मी काम भी शुरू कर दिया जिससे घर का गुजारा चलता रहे. 

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साल 2018 से 2021 तक निगम में काम करती रहीं. इस दौरान यह भर्ती प्रक्रिया भी लंबी होती गई लेकिन आख‍िरकार मंगलवार को घर में तब खुशियां आईं, जब आशा की मेहनत सफल हो गई. अपने पहले ही प्रयास में आशा ने  आरएएस की परीक्षा पास कर ली. आशा का कहना है कि इस सफलता के लिए सबसे बड़ा सहयोग माता-पिता का मिला और उसके बाद धैर्य, जो सबसे बड़ी पूंजी है. जिसके पास धैर्य है, वह कुछ भी कर सकता है.

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आशा कहती हैं कि मैं अपने समाज नहीं सभी समाज के लोगों को यह कहना चाहती हूं कि पढ़ाई करें बच्चों को पढ़ाएं बिना पढ़ाई के कुछ नहीं है. आशा का कहना है कि मैंने नगर निगम का भी फॉर्म भरा, काम किया. काम कोई छोटा नहीं होता है. यह लोगों की धारणा है सिर्फ लेकिन मैं मानती हूं कि सभी तरह के काम बड़े ही होते हैं.

जब भी मुझे समय मिलता पढ़ाई करती थी. मैं निगम की ड्यूटी करने के बाद बाकी बचे समय में पढ़ाई करती थी. मैं एक्टिवा की डिक्की में किताबें साथ रखती थी. मुझे जहां टाइम मिलता पढ़ने लग जाती थी. आशा का कहना है कि कोई समाज छोटा नहीं होता है. महिला कोई भी ऐसा काम नहीं जो नहीं कर सकती. 

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परिवार की बात करें तो आशा के एक लड़का व एक लड़की है. आशा अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर भी लगातार सक्रिय हैं. बेटे ने ग्रेजुएशन कर ली है तो बेटी ने आईआईटी जेईई के लिए क्वॉलिफाई किया है. आशा का कहना है कि महिला घर के परिवार के साथ भी पढ़ाई कर सकती है. अगर करना चाहे तो समय निकाल सकते हैं. मैंने वो मुकाम हासिल कर लिया है आशा की आरएएस में 728 रैंक आई है. 

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