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करियर

बाड़मेर से पहली महिला आर्मी लेफ्ट‍िनेंट बनी, 36 फैमिली मेंबर भी सेना में, IAS बनना लक्ष्य

दिनेश बोहरा
  • बाड़मेर ,
  • 02 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 12:57 PM IST
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दुनिया के कई हिस्सों की तरह रेगिस्तान में किसी जमाने में बेटियां अभिशाप मानी जाती थीं और बेटियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था. लेकिन अब जमाना बदल गया है. यही बेटियां परिवार और बाड़मेर का नाम रोशन कर रही हैं. इनमें से ही एक है प्यारी चौधरी, जो कि भारतीय सेना में सीधे लेफ्टिनेंट पद पर चुनी गई हैं. जानिए कौन हैं प्यारी चौधरी, कैसे पाया ये मुकाम, अब आगे क्या बनने का सपना है. 

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वो हाल ही के दिनों में अपनी ट्रेनिंग करके पहली बार लौटी हैं. जब पहली बार गांव लौटी तो गांव वालों ने देसी अंदाज में मारवाड़ी गीत गाकर बिटिया का स्वागत किया. प्यारी चौधरी परिवार के 36 सदस्य हैं जो कि भारतीय सेना और देश की सेवा में रहे हैं. प्यारी चौधरी जब पहली बार आज गांव लौटीं तो परिवार रिश्तेदार और गांव वालों ने देसी अंदाज में उनका स्वागत किया. वहीं प्यारी चौधरी की भी कोई खुशी का ठिकाना नहीं था.

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प्यारी चौधरी बताती हैं कि आज जिस अंदाज में अपने गांव में उनका स्वागत हुआ है, मैं इस पल को कभी भूल नहीं पाऊंगी. मेरी पढ़ाई-लिखाई सेना के स्कूलों में हुई है. पिता और परिवार के लोग सेना में थे इसीलिए मेरी भी इच्छा थी कि मैं भी सेना में भर्ती हो जाऊंगी. अब मैंने यह ख्वाब पूरा कर दिया है और मेरे सीधी लेफ्टिनेंट के लिए चुनी गई हूं. 

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aajtak.in को प्यारी चौधरी ने बताया कि आमतौर पर हमारे यहां बेटियों को छोटी उम्र में शादी के बंधन में बांध दिया जाता है. जिसके चलते ऐसी कई बेटियां होती हैं जिनके सपने अधूरे रह जाते हैं मैं उन मां-बाप को से कहना चाहूंगी कि बेटियों को अपने सपने पूरे करने दिया जाए. बेटियां बेटों से कम नहीं हैं. शायद इसीलिए मैंने अपने परिवार और समाज का नाम रोशन किया है. अब मेरा सपना है कि मैं सिविल सर्विसेज एग्जाम में सफलता हासिल करूं. 

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बाड़मेर की पहली महिला लेफ्टिनेंट प्यारी चौधरी ने पटियाला के आर्मी नर्सरी स्कूल से अपनी पढ़ाई शुरू की. फिर उसके बाद अलग-अलग केंद्रीय विद्यालयों से पढ़ाई की. ट्रांसफर के दौरान पिता के साथ साथ अलग-अलग राज्यों में केवी में पढ़ाई की. इसके बाद बीएससी नर्सिंग महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी मुंबई से पास की. 

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प्यारी चौधरी के पिता कस्तूरा राम सेना में सूबेदार हैं. उनकी बेटी सेना में लेफ्टिनेंट बनी हैं. बेटी के चयन पर पिता कस्तूराराम बहुत खुश हैं. वो कहते हैं कि पिता के लिए इससे ज्यादा क्या बड़ी बात होगी. वो सेना में सीधी लेफ्टिनेंट पद पर चुनी गई है. आमतौर पर हमारे यहां 18 साल की उम्र में बेटियों की शादी कर दी जाती है. मुझ पर भी यह प्रेशर बहुत से रिश्तेदारों ने डालने की कोश‍िश की थी.

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कस्तूरा राम ने कहा कि लेकिन मैंने कभी लोगों की बात नहीं सुनी, मैंने हमेशा अपने मन की बात सुनी. इसी का नतीजा है कि आज मेरी बेटी ने बाड़मेर और परिवार का नाम रोशन किया है मैं उन मां-बाप उसे कहना चाहूंगा जो अपनी बेटियों को नहीं पढ़ाते हैं और उनके सपनों को चकनाचूर कर देते हैं उन्हें अब बेटियों को आगे बढ़ाना चाहिए. 

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