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कैसे बनते हैं पैरा ओलंपिक ख‍िलाड़ी, दिव्यांग बच्चा भी ऐसे बन सकता है इंटरनेशनल एथलीट

aajtak.in
  • नई द‍िल्ली ,
  • 03 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 3:51 PM IST
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दिव्यांग होना अक्षम होना नहीं है. अगर किसी दिव्यांग व्यक्त‍ि में जुनून और खेलने का हौसला है तो वो पैरा एथलीट बननकर खुद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साबित कर सकता है. इसके लिए जरूरत होती है सही ट्रेनिंग और सही गाइडेंस की. आइए जानते हैं कि कैसे दिव्यांग बच्चा जो ख‍िलाड़ी बनने का सपना देखता है, वो अपनी शारीरिक कमजोरी के बावजूद पैरा एथलीट बन सकते हैं. जानिए क्या होता है पैरा ओलंपिक ख‍िलाड़ी बनने का प्रोसेस... 

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पैरा ओलंपिक खेलों में कई श्रेणी के दिव्यांग शामिल होते हैं, जिनकी शारीरिक अपंगता अलग-अलग वजहों से होती है. अगर कोई व्यक्त‍ि दुर्घटना या किसी गंभीर बीमारी के चलते अंग भंग या किसी अंग की कमजोरी का सामना कर रहा है. इनमें कुछ ऐसे भी होते हैं, जो जन्म से शारीरिक रूप से लाचार होते हैं. इनमें से किसी का मस्तिष्क ठीक से काम नहीं करता, तो किसी के हाथ या पैर. किसी की दृष्टि कमजोर होती है तो किसी के बोलने की क्षमता क्षीण हो जाती है. फिर भी सही गाइडेंस के चलते सारी कमियों के बावजूद ये विभिन्न खेलों में अपने जज्बे से देखने वाले को कैसे हैरान कर देते हैं. 

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पैरा ओलम्प‍ियन बनना कोई आसान काम नहीं है. इसके लिए बेहतरीन कोच या ट्रेनिंग ग्रुप के साथ प्रति सप्ताह कम से कम पांच दिन प्रशिक्षित करने का प्रयास करना चाहिए. ख‍िलाड़ी का प्रशिक्षण एक योजना और उसके खेल से जुड़े उद्देश्य के साथ होना चाहिए. पैरालंपिक एथलीटों के शरीर की संरचनाओं और कार्यों में एक या एक से अधिक दोष होते हैं जो खेल में प्रतिस्पर्धात्मक नुकसान का कारण बनते हैं.  इसके लिए सबसे पहले उनकी अक्षमताओं की पहचान करके उनको वगीकृत खेलों के लिए तैयार करना होता है. 

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अगर पेरेंट्स अपने बच्चे को पैरालंपिक एथलीट के रूप में हिस्सा लेने की रुचि रखते हैं, तो आप अपने देश में राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (एनपीसी) से संपर्क करें. यहां आप आईपीसी वेबसाइट पर एनपीसी और संपर्क जानकारी की सूची पा सकते हैं. यहां पैरालंपिक ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन कार्यक्रम पर सभी खेलों के बारे में जानकारी आईपीसी वेबसाइट पर 'Sports' सेक्शन में मिल सकती हैं. 

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पैरालंपिक ख‍िलाड़ी बनने के लिए बहुत सारे प्रशिक्षण की जरूरत होती है. प्रश‍िक्षण और खेलों में भाग लेने के बाद एक विशेषज्ञता हासिल करके आप इस फील्ड में अलग करियर बना सकते हैं. इन खेलों में आप स्पेशलाइजेशन हासिल करके आप रेफरी या अधिकारी बनने में रुचि रखते हैं तो अपने एनपीसी या स्थानीय स्पोर्ट्स क्लब से संपर्क कर सकते हैं. 

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कैसे बनाए पैरा ओलंपिक खेलों में रुचि 

अगर आप चाहते हैं कि कोई दिव्यांग बच्चा कैसे इन खेलों के प्रति मोटिवेट हो और इसके प्रति अपनी रुचि बढ़ाएं तो आपको इसे लिए उन्हें इन खेलों के बारे में पूरी जानकारी देनी होगी. इसके लिए कई खेलों के लिए वर्तमान रैंकिंग और विश्व रिकॉर्ड संबंधित खेल के तहत सारी जानकारी आईपीसी की वेबसाइट पर देख सकते हैं. ये रैंकिंग सभी प्रमुख प्रतियोगिताओं के बाद अपडेट की जाती है. इसके अलावा सीधे खेल संगठनों से भी संपर्क करके जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. 

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बता दें कि पैरालंपिक खेलों की शुरुआत की बड़ी दिलचस्प कहानी है. इन खेलों के मौजूदा स्वरुप की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के बाद घायल सैनिकों को मुख्यधारा से जोड़ने के मकसद से हुई. खास तौर पर स्पाइनल इंज्यूरी के शिकार सैनिकों को ठीक करने के लिए इस खेल को शुरू किया गया. साल 1948 में विश्वयुद्ध के ठीक बाद स्टोक मानडेविल अस्पताल के नियोरोलोजिस्ट सर गुडविंग गुट्टमान ने सैनिकों के रिहेबिलेशन के लिए खेल को चुना. तब इसे अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर गेम्स का नाम दिया गया था.

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घायल सैनिकों के लिए कराया स्पोर्ट्स कंपीटिशन साल 1948 में लंदन में हुआ. इतना ही नहीं गुट्टमान ने अपने अस्पताल के ही नहीं दूसरे अस्पताल के मरीजों को भी स्पोर्ट्स कंपीटिशन में शामिल किया. प्रयोग काफी सफल रहा और लोगों ने इस आयोजन को काफी पसंद किया. गुट्टमान के इस सफल प्रयोग को ब्रिटेन की कई स्पाइनल इंज्यूरी इकाइयो ने अपनाया और एक दशक तक स्पाइनल इंज्यूरी को ठीक करने के लिए ये रिहेबिलेशन प्रोग्राम चलता रहा. 1952 में फिर इसका आयोजन किया गया. इस बार ब्रिटिश सैनिकों के साथ ही डच सैनिकों ने भी हिस्सा लिया. इस तरह इसने पैरालंपिक खेलों के लिए एक ग्राउंड तैयार किया. 1960 रोम में पहले पैरालंपिक खेल हुए. पहले पैरालंपिक खेलों में 23 देशों के 400 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया. शुरुआती पैरालंपिक में तैराकी को छोड़कर खिलाड़ी सिर्फ व्हीलचेयर के साथ ही भाग ले सकते थे. लेकिन 1976 में दूसरे तरह के पैरा लोगों को भी पैरालंपिक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया.

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