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करियर

8वीं के बाद छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई, फिर 10 साल बाद प्राइवेट पढ़कर अब बनीं RAS अफसर

नरेश सरनाऊ (बिश्नोई)
  • जालौर,
  • 22 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 1:32 PM IST
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कहते हैं कि वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को कभी कुछ नहीं मिलता. लेकिन निरंतर प्रयास करने से लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है. इसकी बानगी हैं जालौर जिले के जसवंतपुरा क्षेत्र की मोर कंवर... यूं तो राजस्थान प्रशासनिक सेवा की परीक्षाओं में कई प्रतिभाओं ने अपना लोहा मनवाया है, लेकिन इस बार कुछ प्रतिभाएं ऐसी भी हैं, जो विकट परिस्थितियों से जूझते हुए विपरीत हालातों के बावजूद सफल हुई हैं. उनमें से ही एक है जालोर जिले के जसवंतपुरा के सिणधरा गांव की मोर कंवर, जिन्होंने न केवल स्कूल छोड़ने के बाद दस साल के अंतराल के बाद प्राइवेट पढ़कर डिग्री की बल्कि प्रथम प्रयास में ही आरएएस में भी सफलता पाई है। इस बार जारी हुए परिणाम में मोर कंवर की 519 वीं रैंक  93 वीं रैंक महिला वर्ग आई है. 

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जालोर  के जसवंतपुरा ब्लॉक की थूर ग्राम पंचायत का सिणधरा नामक राजस्व गांव है. इस गांव में वर्ष 2000 में पांचवीं तक की सरकारी स्कूल था. यहां गांव के उम्मेदसिंह परमार की बेटी मोरकंवर इस स्कूल में पांचवीं तक पढ़ने के बाद आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन व्यवस्था के अभाव के कारण उन्हें दूसरे गांव जाकर आठवीं तक की पढ़ाई की और उसके बाद स्कूल छोड़ दिया. 

 

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फिर जीवन ऐसे ही चलता रहा. करीब दस साल बाद मोर कंवर को दोबारा पढ़ने का जुनून जागा और 22 वर्ष की उम्र में फिर से प्राइवेट पढ़ाई शुरू की. मोरकंवर ने इस तरह से दसवीं, बारहवीं और स्नातक डिग्री भी प्राइवेट ही की. 2018 में स्नातक की डिग्री पूरी होते ही इन्होंने आरएएस की परीक्षा दे दी. प्रथम प्रयास में ही मोर कंवर का 519 वीं रैंक पर चयन हो गया. 

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आपको बता दें कि आज भी मोर कंवर के गांव में अभी भी आठवीं तक की स्कूल है. सरकार को लाखों रुपये का राजस्व देने वाले सिणधरा गांव में आज भी केवल आठवीं तक की ही सरकारी स्कूल की व्यवस्था है. इस गांव में बजरी खनन होता है और बजरी की लीज से हर वर्ष लाखों का राजस्व सरकार को मिल रहा है, लेकिन इस गांव में न तो सरकारी स्कूल का स्तर बढ़ा है और न ही सड़क की हालत सही है. 

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आरएएस में चयनित मोर कंवर ने aajtak.in से बातचीत में कहा कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मन में आया कि कुछ करना चाहिए. सामाजिक रूप से भी दबाव रहता है, लेकिन माता पिता का पढ़ाई में पूरा सहयोग रहा. इस कारण स्कूल छोड़ने के दस साल के अंतराल के बाद करीब 22 वर्ष की उम्र में दोबारा पढ़ाई शुरू की.

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उन्होंने बताया कि उनकी अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध विषय हॉबी के रूप में विषय है. इस बार का चयन उनका अंतिम लक्ष्य नहीं है, इससे आगे भी जाना चाहती हैं, लेकिन उम्र की बाधा के कारण आईएएस परीक्षा का अब मौका नहीं मिल पाएगा. जिस कारण अगली बार आरएएस परीक्षा में दोबारा शामिल होकर सिंगल डिजिट रैंक प्राप्त करने का लक्ष्य रहेगा. 

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मोर कंवर की कहानी उन सभी को प्रेरणा देती है जो पढ़ाई से एक बार मन हटाने के बाद उसी को अपना भाग्य मान लेते हैं. लेकिन अगर आपके मन में लगन हो तो आप क‍िन्हीं भी हालातों में पढ़कर अपनी जिंदगी को नई राह दे सकते हैं. मोर कंवर ने भी इसी तरह 10 साल बाद पढ़ाई दोबारा शुरू करके अपनी किस्मत बदल दी. आज उनके परिवार ही नहीं बल्क‍ि पूरे जिले और राज्य को उन पर गर्व है. 

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