अमेरिका की नई सरकार ने जैसे ही कामकाज संभाला, चीन और यूएस के बीच एक बार फिर तकरार शुरू हो गई है. इस बार ये तकरार ताइवान को लेकर शुरू हुई है. पहले चीन के 12 लड़ाकू विमान ताइवान के एअर डिफेंस टेरिटरी में उतरे, उधर अमेरिका ने अपने लड़ाकू युद्धपोत का बेड़ा दक्षिण चीन सागर में भेजा है. आपको बता दें कि चीन और ताइवान की आपसी तकरार आज की नहीं है. यह कई साल पुरानी है. आइए जानते हैं ताइवान के बारे में और चीन से तकरार की वजह भी.
पूर्वी एशिया का द्वीप ताइवान अपने आसपास के कई द्वीपों को मिलाकर चीनी गणराज्य का अंग है. इसका मुख्यालय ताइवान द्वीप और राजधानी ताइपे है. बता दें कि चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, वहीं ताइवान खुद को स्वतंत्र देश समझता है. 1949 में च्यांग काई-शेक के वक्त से दोनों देशों में ये तनातनी चली आ रही है. इसके पीछे का पूरा इतिहास एकदम अलग है.
ताइवान का असली नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना है. इसकी सांस्कृतिक पहचान चीन से काफी अलग और बेहद मजबूत है. वहीं चीन का नाम पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है. इस तरह से दोनों ही 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' और 'पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना' एक-दूसरे की संप्रभुता को मान्यता नहीं देते.
दोनों ही देश खुद को आधिकारिक चीन मानते हुए मेनलैंड चाइना और ताइवान द्वीप का आधिकारिक प्रतिनिधि होने का दावा करते रहे हैं. कागजी दस्तावेजों में दोनों के नाम में चाइना जुड़ा हुआ है. वहीं व्यावहारिक तौर पर ताइवान द्वीप 1950 से ही स्वतंत्र रहा है. मगर चीन इसे अपना विद्रोही राज्य मानता है.
ताइवान अपने को आज भी स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र मानता है. लेकिन ड्रैगन यानी चीन की शुरुआत से यही राय रही है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए. वह इसे अपने में मिलाने के लिए बल प्रयोग को भी गलत नहीं ठहराता है.
इस विवाद को समझने के लिए इतिहास के पन्नों में झांकना होगा. बीबीसी हिंदी से बातचीत में दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर चाइनीज़ एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज़ में असिस्टेंट प्रोफेसर गीता कोचर ने एक बार बताया था कि चीन में साल 1644 में चिंग वंश सत्ता में आया और उसने चीन का एकीकरण किया.
साल 1895 में चिंग ने ताइवान द्वीप को जापानी साम्राज्य को सौंप दिया. मगर 1911 में चिन्हाय क्रांति हुई जिसमें चिंग वंश को सत्ता से हटना पड़ा. इसके बाद चीन में कॉमिंग तांग की सरकार बनी. और तब जितने भी इलाके चिंग रावंश के अधीन थे, वे कॉमिंगतांग सरकार को मिल गए. कॉमिंगतांग सरकार ने ही चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना किया था.
इतिहास के अनुसार चीन और ताइवान की रार साल 1949 से शुरू हुई थी. तब चीन में हुए गृहयुद्ध में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हराया था. वहीं चीन में सत्ता में आ चुके कम्युनिस्टों की नौसेना की ताकत न के बराबर थी. यही कारण था कि माओ की सेना समंदर पार करके ताइवान पर नियंत्रण नहीं कर सकी.
जेएनयू के एसोसिएट प्रोफेसर रवि प्रसाद नारायण के बीबीसी हिंदी वेबसाइट को दिए बयान के मुताबिक ताइवान के लिए 1971 के बाद से चीजें बदलने लगीं. अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने चीन को पहचान दी और कहा कि ताइवान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से हटना होगा. 1971 से चीन यूएन सिक्योरिटी काउंसिल का हिस्सा हो गया और 1979 में ताइवान की यूएन से आधिकारिक मान्यता खत्म हो गई. तभी से ताइवान का पतन शुरू हो गया था.
चीन के दबाव के बावजूद ताइवान आज विकास की ओर बढ़ रहा है. आज जब पूरी दुनिया कोरोना से जंग में जान-माल से रोजगार तक बहुत कुछ हार रही है. ऐसे में भी अपने पैर जमाकर इस जंग में रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान अपने लोगों की जान सुरक्षित किए है. फिलहाल ताजा हालात में ताइवान के सामने फिर से एक खतरा नजर आ रहा है.