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इतिहास

तुर्की: वो देश हममें और उनमें कॉमन हैं 9000 शब्द, जानिए वो बातें जो हर इंडियन को पता होनी चाहिए

aajtak.in
  • 26 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 6:02 PM IST
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तुर्की या टर्की या इसके असली नाम रिपब्लिक ऑफ तुर्की जो भी कह लें, ये खूबसूरत देश हर भारतीय को कभी न कभी लुभाता है. समुद्री किनारों और चहल पहल भरे बाजारों के अलावा समृद्ध इतिहास वाले टर्की के बारे में हर भारतीय को ये बातें पता होनी चाहिए. 

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प्राचीन भारत और अनातोलिया जो कि वर्तमान तुर्की है. कहा जाता है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध वैदिक युग (1000 ईसा पूर्व) से पहले के हैं. फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में अंग्रेजों के खिलाफ टर्की के साथ भारत कंधे से कंधा मिलाया.

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भारत और टर्की के बीच ऐतिहासिक संबंध काफी गहरे हैं. तुर्क सुल्तानों और मुस्लिम शासकों के बीच राजनयिक मिशनों का पहला आदान-प्रदान साल 1481-82 तक रहा है. फिर 5 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद टर्की ने भारत को मान्यता दी और दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए. हालांकि कुछ वजहों से  द्विपक्षीय संबंध उतने अच्छे से विकसित नहीं हो सके थे.

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कल्चरल ओवरलैप की बात करें तो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक समानता रिश्ते की एक मजबूत कड़ी है. भाषा, संस्कृति और सभ्यता, कला और वास्तुकला, और वेशभूषा और भोजन जैसे क्षेत्रों में भारत पर तुर्क प्रभाव काफी रहा है. अगर सिर्फ भाषाओं की ही बात करें तो हिंदुस्तानी और टर्की की भाषाओं में 9,000 से अधिक शब्द कॉमन हैं. 

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कुछ समय पहले तक टर्की कश्मीर विवाद पर पाकिस्तान की स्थिति का एक मुखर समर्थक था. न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत को शामिल करने के लिए टर्की भी कुछ विरोधियों में से एक था. लेकिन हाल के वर्षों में, दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य रणनीतिक लक्ष्यों के कारण सुधरे हैं. अब फिर से शिक्षा, प्रौद्योगिकी और वाणिज्य के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ रहा है.

 


 

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भारत का जीएमआर ग्रुप इस्तांबुल में सबीहा गोकेन इंटरनेशनल एयरपोर्ट में मुख्य हितधारकों में से एक है. अब दोनों देश प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के जी 20 समूह के सदस्य हैं, जहां दोनों देशों ने विश्व अर्थव्यवस्था के प्रबंधन पर करीबी सहयोगी की भूमिका निभाई है. जुलाई 2012 में द्विपक्षीय व्यापार 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, यह आंकड़ा 2015 तक काफी बढ़ चुका था, जोकि 2020 तक जारी है.

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भारत के साथ टर्की की हालिया दुश्मनी की कड़ी कश्मीर ही है. टर्की के राष्ट्रपति रचप तैयप एर्दवान ने कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख का भरपूर समर्थन किया. यहां तक कि टर्की ने संयुक्त राष्ट्र में भी कश्मीर मुद्दा उठाया जिसे लेकर भारत की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आई. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म किए इसी 5 अगस्त को एक साल पूरा हुआ तो टर्की ने खामोशी नहीं बरती और पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाया. 

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भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आधुनिक टर्की के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क की राजनीतिक विचारधारा की बहुत सराहना करते थे. पाशा ने टर्की को एक सेक्युलर और लोकतांत्रिक देश बनाया जोकि किसी भी इस्लामिक देश के लिए मुश्किल काम है. हालांकि, शीतयुद्ध के दौरान भारत और टर्की के संबंधों के समीकरण तेजी से बदलने लगे. टर्की अमेरिकी खेमे में शामिल हो गया जबकि भारत गुट-निरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा था और रूस के ज्यादा करीब था. 1965 और 1971 के युद्ध में जब टर्की ने पाकिस्तान का समर्थन किया तो दोनों देशों के रिश्तों में दरार और बढ़ गई.

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