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Florence Nightingale’s की जयंती आज, यहां पढ़ें 'द लेडी विद द लैंप' नाम के पीछे की कहानी

International Nurses Day 2022, Florence Nightingale’s Biography: दुनियाभर में 12 मई को फ्लोरेंस नाइटिंगल की जयंती को इंटरनेशनल नर्स डे के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. 1854 में क्रीमिया युद्ध के दौरान उनकी मेहनत और लगन से काफी लोगों की जान बची थी. कहा जाता है कि उन्हीं की वजह से वहां मृत्यु दर 40 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत हो गई थी.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2022,
  • अपडेटेड 11:33 AM IST
  • 12 मई 1820 को हुआ था फ्लोरेंस नाइटिंगल का जन्म
  • जयंती पर 1965 से मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस

International Nurses Day 2022, Florence Nightingale’s Biography: हर साल 12 मई को इंटरनेशनल नर्स डे के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. दुनियाभर में इस दिन को नर्स डे के रूप में सेलिब्रेट करने के पीछे फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जयंती है, जिन्हें 'द लेडी वि द लैंप' के नाम से भी जाना जाता है. फ्लोरेंस नाइटिंगेल एक देखभाल करने वाली नर्स और एक नेता थीं. जिन्होंने स्वास्थ्य संबंधित मुद्दों पर 150 से ज्यादा किताबें, पर्चे और रिपोर्ट लिखी थीं. इसके अलावा सबसे पहले पाई चार्ट बनाने का भी श्रेय भी उन्हीं को जाता है. आइए जानते हैं फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें-

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कम उम्र में शादी कराना चाहते थे पिता
फ्लोरेंस का जन्म इटली के एक हाई क्लास परिवार में 12 मई 1820 को हुआ था. एक रिपोर्ट के मुताबिक, फ्लोरेंस कभी स्कूल नहीं गईं, बल्कि उनके पिता ने ही उन्हें पढ़ाया था. फ्लोरेंस के पिता बहुत कम उम्र में उनकी शादी कर देना चाहते थे, लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं थीं. उनका मानना ​​था कि उनका जन्म गरीबों और बीमार लोगों की की मदद करने के लिए ही हुआ है. इसलिए उन्होंने शादी करने से मना कर दिया था.

नर्स बनने के खिलाफ थे पैरेंट्स
आज दुनियाभर में फ्लोरेंस नाइटिंगेल को नर्स के तौर पर जाना जाता है, उनके जन्म दिवस को हर साल इंटनेशनल नर्स डे के तौर पर सिलेब्रेट किया जाता है. लेकिन जब उन्होंने अपने माता-पिता के समाने नर्स बनने की इच्छा जाहिर की तो उन्हें डांट फटकार मिली. बताया जाता है कि उस वक्त नर्स के पेशे को सही नहीं माना जाता था. पैरेंट्स ने उन्हें शादी करके परिवार संभालने पर जोर दिया. नाइटिंगल ने इससे साफ इनकार कर दिया. 

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आखिरकार, उसके पिता ने उसे पास्टर थियोडोर फ्लिडनर के हॉस्टिपल और लूथरन डेकोनेसेस के स्कूल में पढ़ने के लिए तीन महीने के लिए जर्मनी जाने की परमिशन दे दी. जर्मनी में अपना प्रोग्राम पूरा करने के बाद, नाइटिंगेल सिस्टर्स ऑफ मर्सी के साथ आगे की ट्रेनिंग के लिए पेरिस चली गईं. जब वह 33 वर्ष की थी, तब तक नाइटिंगेल पहले से ही नर्सिंग कम्युनिटी में अपना नाम बना रही थी. वह 1853 में इंग्लैंड लौट आईं और लंदन में एक हॉस्पिटल की सुपरिटेंडेंट और मैनेजर बन गईं.

'द लेडी विद द लैंप' नाम के पीछे की कहानी
जब 1854 में क्रीमिया युद्ध (Crimean War) शुरू हुआ, तो अंग्रेज बीमार और घायल सैनिकों की संख्या से निपटने के लिए तैयार नहीं थे. मेडिकल सुविधाएं न के बराबर थी, भीड़भाड़ और गंदगी भरे माहौल से लोग परेशान थे. अखबारों में चिकित्सा देखभाल की भयानक स्थिति के बारे में रिपोर्ट करना शुरू कर दिया. युद्ध के सचिव, सिडनी हर्बर्ट ने नाइटिंगेल को नर्सों के एक समूह का प्रबंधन करने के लिए कहा जो घायल सैनिकों का इलाज करने जाएंगे. वह मान गई, और 4 नवंबर, 1854 को नाइटिंगेल और 38 नर्स कॉन्स्टेंटिनोपल के बाहर ब्रिटिश कैंप में पहुंचे. जैसे-जैसे मरीजों की संख्या बढ़ती गई, डॉक्टरों को उनकी मदद की जरूरत पड़ी. नर्सों ने सैनिक हॉस्पिटलों में हर तरह से मदद करना शुरू कर दिया. नाइटिंगेल को रात में एक दीपक ले जाने और सैनिकों की जांच करने के लिए जाना जाता था, इसलिए उन्होंने उसे 'द लेडी विद द लैंप' नाम दिया. छह महीने में उनके काम के कारण मृत्यु दर 40 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत हो गई थी.

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बता दें कि फ्लोरेंस नाइटिंगेल की मौत 13 अगस्त, 1910 को हुई थी, उस वक्त उनकी उम्र 90 वर्ष थी, उनकी मृत्यु के दो साल बाद, रेड क्रॉस की इंटरनेशनल कमेटी ने फ्लोरेंस नाइटिंगेल मेडल बनाया, जो हर दो साल में उत्कृष्ट नर्सों को दिया जाता है. इसके अलावा, 1965 से उनकी जयंती पर अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है. मई 2010 में, लंदन के सेंट थॉमस हॉस्पिटल में फ्लोरेंस नाइटिंगेल म्यूजियम नाइटिंगेल की मृत्यु की 100वीं वर्षगांठ का सम्मान करने के लिए फिर से खोला गया.

 

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