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आज ही के दिन बदला था भारत का नक्शा, ऐसी खींची गई बंटवारे की लकीर

बंटवारे को देश के इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में शुमार किया जाता है. बंटवारे ने दो देशों के बीच ही नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में भी नफरत के खंजर से एक ऐसी लकीर खींच दी, जिससे आज भी लहू रिसता रहता है.

भारत-पाकिस्तान विभाजन भारत-पाकिस्तान विभाजन
मोहित पारीक
  • नई दिल्ली,
  • 15 जून 2018,
  • अपडेटेड 1:56 PM IST

बंटवारे को देश के इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में शुमार किया जाता है. बंटवारे ने दो देशों के बीच ही नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में भी नफरत के खंजर से एक ऐसी लकीर खींच दी, जिससे आज भी लहू रिसता रहता है. बंटवारे के उस दुखद इतिहास में 15 जून का दिन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि कांग्रेस ने 1947 में 14-15 जून को नई दिल्ली में हुए अपने अधिवेशन में बंटवारे के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.

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इस विभाजन का जो मुख्य कारण दिया जा रहा था वो था की हिंदू बहुसंख्यक है और आजादी के बाद यहां बहुसंख्यक लोग ही सरकार बनाएंगे. उस दौरान मोहम्मद अली जिन्ना को यह ख्याल आया कि बहुसंख्यक के राज्य में रहने से अल्पसंख्यक के साथ नाइंसाफी या उन्हें नजर किया जा सकता है तो उन्होंने अलग से मुस्लिम राष्ट्र की मांग शुरू की. भारत के विभाजन की मांग तेज होती गई और भारत से अलग मुस्लिम राष्ट्र के विभाजन की मांग सन 1920 में पहली बार उठाई और 1947 में उसे प्राप्त किया.

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कहा जाता है कि जिन्‍ना की जिद ने पाकिस्‍तान तो बना लिया लेकिन कुछ इतिहासकारों के अनुसार बाद में जिन्‍ना भी अपने निर्णय पर काफी दु:खी रहते थे. जिन्‍ना के विषय में कहा जाता है कि वह कट्टर मुस्लिम नहीं थे. कांग्रेस का एक बहुत बड़ा धड़ा पंडित नेहरु के साथ था. यही कारण है कि बंटवारे के मसले पर अधिकांश ने नेहरु का साथ दिया.

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वैचारिक मतभेद इस कदर बढ़ा कि देश का बंटवारा हो गया. इस देश पर मुसलमानों ने अंग्रेजों से अधिक समय तक राज किया लेकिन उनकी स्थिति से जिन्‍ना नाखुश थे. बंटवारे के समय काफी संख्‍या में लोग विभाजित भारत के एक तरफ से दूसरी तरफ जा रहे थे. पश्चिमी पंबाज की स्थिति तो और भी दयनीय थी. वहां से आने वाली ट्रेन भरी हुई रहती थी.

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