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जानें- क्यों 'सच्ची रामायण' से विवादों में आ गए थे पेरियार?

जानें- कौन थे पेरियार और उनकी किताब सच्ची रामायण में ऐसा क्या था, जिनकी वजह से वो सुर्खियों में रहे थे...

पेरियार पेरियार
मोहित पारीक
  • नई दिल्ली,
  • 17 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 4:02 PM IST

आज एक सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ पेरियार का जन्मदिन है. उन्हें द्रविड़ राजनीति का जनक भी कहा जाता है. दलित चिंतक पेरियार ने जाति और धर्म के खिलाफ सबसे लंबी लड़ाई लड़ी थी. वे दलितों के आदर्श माने जाते हैं. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कई अहम बातें...

पेरियार का जन्म 17 सितंबर 1879 में मद्रासी परिवार में हुआ था. उनका पूरा नाम ईवी रामास्वामी नायकर था और वो गांधी से भी प्रभावित थे. वो साल 1919 में कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन 1925 में उन्होंने इससे इस्तीफा दे दिया था. उनका मानना था कि सरकार ब्राह्मण और उच्च जाति के लोगों का हित साधती है.

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उसके बाद साल 1929-1932 से उन्होंने ब्रिटेन, यूरोप और रूस का दौरा किया. वहीं लाल 1939 में वो जस्टिस पार्टी के प्रमुख बने, जो कि कांग्रेस के प्रमुख विकल्प में से एक थी. 1944 में जस्टिस पार्टी का नाम द्रविदर कझकम कर दिया गया. यह पार्टी दो भाग द्रविड़ कझकम और द्रविड़ मुनेत्र कझकम में बंट गई.

'सच्ची रामायण'

उसके बाद उन्होंने 1925 में आत्म सम्मान आंदोलन की शुरुआत की. करीब पचास साल पहले उनकी लिखी 'सच्ची रामायण' की वजह से काफी विवाद हुआ था. इस किताब में राम सहित रामायण के कई चरित्रों को खलनायक के रूप में पेश किया गया है. इसमें उन्होंने राम के विचारों को लेकर सवाल खड़े किए थे और राम-रावण की तुलना पर भी उनके अलग विचार थे.

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पेरियार ऐसे क्रांतिकारी विचारक के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने आडंबर और कर्मकांडों पर निर्मम प्रहार किए. उन्होंने जाति प्रथा बरकरार रहने के विरोध में तमिलनाडु को अलग देश बनाने की कल्पना भी पेश की थी.

मूर्ति को पहुंचाया था नुकसान

हाल ही में तमिलनाडु में पेरियार की मूर्ति तोड़ने की कोशिश की गई थी और मूर्ति को नुकसान पहुंचा दिया गया था. इस दौरान पेरियार की मूर्ति को तोड़ने में हथौड़े का इस्तेमाल किया गया था. इससे पहले त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति तोड़ दी गई थी.

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