
आप सोच रहे होंगे कि पूरे जापान में मशहूर इंडियन करी जिसे लोग बोस करी भी कहते हैं, हो न हो सुभाष चंद्र बोस से इसका नाम जुड़ा होगा. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. ये इंडियन करी नेताजी नहीं बल्कि रास बिहारी बोस के इतिहास से जुड़ी है. इसका क्रेज इस कदर है कि आज हर जापानी घर में ये पसंद की जाती है.
जापान में इस करी की रेसिपी को 'नाकामुराया बोस' कहा जाता है. इसके पीछे की कहानी ये है कि पहली बार रास बिहारी बोस ने खुद नाकामुराया नाम के रेस्टोरेंट में इसे बनाया था. बात तब की है जब 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में चल रहे क्रांतिकारी षड्यंत्रों के सूत्रधारों में रास बिहारी बोस का नाम काफी हद तक जुड़ चुका था. भारत की गदर क्रांति हो या अलीपुर बम कांड केस तक या यहां गर्वनर जनरल हॉर्डिंग की हत्या की प्लानिंग का मामला. उस दौरान मशहूर क्रांतिकारी संगठन युगांतर पार्टी के उत्तर भारत में विस्तार का भी मुद्दा अंग्रेजों की आंख की किरकिरी था. इन सबमें रास बिहारी बोस को षणयंत्रकारी की नजर से देखा जा रहा था.
कौन थे रासबिहारी बोस
रासबिहारी बोस के बारे में बात करें तो उनका जन्म 26 मई 1886 को बंगाल के बर्धमान जिले के सुबालदह नामक गांव में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा चंदननगर में हुई, जहां उनके पिता विनोद बिहारी बोस नौकरी करते थे. आगे की शिक्षा उन्होंने यहीं के डुप्लेक्स कॉलेज से ली. कॉलेज के दौरान ही उन्हें अपने शिक्षक चारू चांद से क्रांति की प्रेरणा मिली और उन्होंने यही रास्ता पकड़ लिया. यहीं से रास बिहारी बोस में आजादी के प्रति ललक पनप गई. वो कॉलेज के बाद डॉक्टरी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए जर्मनी चले गए. वहां से लौटकर देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान में क्लर्क की नौकरी कर ली थी.
बात है साल 1905 की जब बंगाल विभाजन के समय रासबिहारी बोस क्रांतिकारी गतिविधियों से आधिकारिक रूप से पहली बार जुड़े. ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक दिसंबर 1912 में दिल्ली दरबार के दौरान वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर हमला भी उन्होंने ही कराया था.साल 1913 में बंगाल बाढ़ राहत कार्य के दौरान बोस की मुलाकात जतिन मुखर्जी से हुई, जिन्होंने उनमें नया जोश भर दिया जिसके बाद वे और ज्यादा उत्साह के साथ फिर से क्रान्तिकारी गतिविधियों के संचालन में जुट गए.
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान युगांतर के कई नेताओं ने ‘सशस्त्र क्रांति’ की योजना बनाई, जिसमें रासबिहारी बोस की प्रमुख भूमिका थी. इसके बाद ब्रिटिश पुलिस रासबिहारी बोस के पीछे लग गयी. जिससे बचने के लिए वो भागकर जून 1915 में राजा पी. एन. टैगोर के छद्म नाम से जापान चले गए. अंग्रेजी हुकूमत बुरी तरह उन्हें खोज रही थी. अंग्रेजों को पता चल गया था कि रास बिहारी बोस टोक्यो में हैं.
जापान की इंग्लैंड से अच्छी दोस्ती थी. इसके कारण अंग्रेजों ने तुरंत जापान से रास बिहारी बोस को सौंपने की मांग की, लेकिन एक ताकतवर जापानी लीडर ने उन्हें अपने घर में छुपा लिया था. एक दिन पुलिस उसके घर पहुंची तो पिछले गेट से उसने दो कारों को तेजी से बाहर निकाला. पुलिस ने पीछा किया और रास बिहारी बोस आगे के रास्ते से निकल गए. रास बिहारी बोस को जापान में कुल 17 ठिकाने बदलने पड़े थे.
जानिए डिश की कहानी
रासबिहारी बोस अब वहां से भागकर नाकामुराया बेकरी का नया ठिकाना पकड़ा था. यहां वो महीनों तक छुपे रहे. अंग्रेजों से पकड़े जाने के डर से न वो बाहर निकलते न ही बेकरी मालिक उन्हें बाहर जाने की इजाजत देता. ऐसे में वे बेकरी मालिक के परिवार से घुल-मिल गए और बेकरी के काम में हाथ बंटाने लगे. इतना ही नहीं वे बेकरी के लोगों को भारतीय खाना बनाना सिखाने लगे. बेकरी में रहते हुए उन्होंने एक प्रयोग कर जापानी डिश को भारतीय तरीके से बनाया.
इसे लोगों ने खूब पसंद किया. इस डिश की उपलब्धि पर बेकरी मालिक ने इसका नाम इंडियन करी रख दिया. धीरे-धीरे यह करी पूरे जापान में मशहूर हो गई. आज भी जापान के हर रेस्टोरेंड में मिलती है. सबसे पहले नाकामुराया बेकरी ने ही अपने रेस्तरां में 1927 में इंडियन करी के नाम से लांच किया था. इस डिश की रेसिपी आज भी जापान में 'नाकामुराया का बोस' के नाम से जानी जाती है. बताते हैं कि इस दौरान रास बिहारी भारत को आजाद कराने के काम पर लगे हुए थे. वहां उन्होंने लीग और इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना भी की थी.
जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत छोड़कर जर्मनी गए तो रास बिहारी बोस को लगा कि सुभाष से बेहतर कोई करिश्माई नेतृत्व नहीं हो सकता. जर्मनी से यू बोट में बैठकर 20 जून 1943 को सुभाष चंद्र बोस टोक्यो पहुंचे. जापान पहुंचे तो रास बिहारी बोस उनसे मिले. 5 जुलाई को जब सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर पहुंचे, तो वहां नेताजी का जोरदार स्वागत हुआ. उसी दिन रास बिहारी बोस ने लीग और इंडियन नेशनल आर्मी की कमान नेताजी को सोंप दी, और खुद को सलाहकार बना लिया. 21 जनवरी 1945 को रास बिहारी बोस का निधन हो गया. जापानी सरकार ने उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन’ के सम्मान से भी नवाजा गया था.