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तो नेहरू नहीं, सरदार वल्लभभाई पटेल होते देश के पहले प्रधानमंत्री!

कहा जाता है कि भारत की एकता के सूत्रधार कहे जाने वाले सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री हो सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं है. जानें- क्या है इसका पूरा किस्सा...

सरदार पटेल सरदार पटेल
मोहित पारीक
  • नई दिल्ली,
  • 31 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 9:11 AM IST

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 में नाडियाड गुजरात में हुआ था. उनका जन्म लेवा पट्टीदार जाति के एक जमींदार परिवार में हुआ था. वे अपने पिता झवेरभाई पटेल एवं माता लाड़बाई की चौथी संतान थे. सरदार पटेल ने करमसद में प्राथमिक विद्यालय और पेटलाद स्थित उच्च विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उन्होंने अधिकांश ज्ञान स्वाध्याय से ही अर्जित किया. 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया. 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और जिला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली.

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सन् 1900 में उन्होंने गोधरा में स्वतंत्र जिला अधिवक्ता कार्यालय की स्थापना की और दो साल बाद खेड़ा जिले के बोरसद नामक स्थान पर चले गए. सरदार पटेल के पिता झबेरभाई एक धर्मपरायण व्यक्ति थे. वल्लभभाई की माता लाड़बाई अपने पति के समान एक धर्मपरायण महिला थीं. वल्लभभाई पांच भाई और एक बहन थी. 1908 में पटेल की पत्नी की मृत्यु हो गई. उस समय उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी. इसके बाद उन्होंने विधुर जीवन व्यतीत किया.

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वकालत के पेशे में तरक्की करने के लिए कृतसंकल्प पटेल ने अध्ययन के लिए अगस्त, 1910 में लंदन की यात्रा की. वहां उन्होंने मनोयोग से अध्ययन किया और अंतिम परीक्षा में उच्च प्रतिष्ठा के साथ उत्तीर्ण हुए. गृहमंत्री के रूप में वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आईसीएस) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आईएएस) बनाया. अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा. यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता.

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में सरदार पटेल, महात्मा गांधी के बाद अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार थे. गांधीजी ने स्वाधीनता के प्रस्ताव को स्वीकृत होने से रोकने के प्रयास में अध्यक्ष पद की दावेदारी छोड़ दी और पटेल पर भी नाम वापस लेने के लिए दबाव डाला और जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष बने. साल 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान पटेल को तीन महीने की जेल हुई.

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मार्च 1931 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के करांची अधिवेशन की अध्यक्षता की. जनवरी, 1932 में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया. जुलाई, 1934 में वह रिहा हुए और 1937 के चुनावों में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के संगठन को व्यवस्थित किया. सन् 1937-1938 में पटेल कांग्रेस के अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार थे. एक बार फिर गांधीजी के दबाव में पटेल को अपना नाम वापस लेना पड़ा और जवाहरलाल नेहरू निर्वाचित हुए. अक्टूबर, 1940 में कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ पटेल भी गिरफ्तार हुए और अगस्त 1941 में रिहा हुए.

1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल प्रमुख उम्मीदवार थे. लेकिन महात्मा गांधी ने एक बार फिर हस्तक्षेप करके जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष बनवा दिया. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नेहरू को ब्रिटिश वाइसरॉय ने अंतरिम सरकार के गठन के लिए आमंत्रित किया. इस प्रकार यदि घटनाक्रम सामान्य रहता तो सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते.

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सरदार पटेल का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई में हुआ था. उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न दिया गया. साल 2014 में केंद्र की मोदी सरकार ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती (31 अक्टूबर) को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाना शुरू किया है.

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