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Satyendra Nath Bose Google Doodle: आइंस्टीन भी हो गए थे मुरीद, जानें कौन थे सत्येंद्र नाथ बोस

Google Doodle Today 4 June, Satyendra Nath Bose: भारत के महान वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को कोलकाता में हुआ था. उन्हें विद्वानों के लिए भारत में सर्वोच्च सम्मान, राष्ट्रीय प्रोफेसर के रूप में भी नियुक्त किया गया था.

Satyendra Nath Bose Satyendra Nath Bose
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 जून 2022,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST
  • अल्बर्ट आइंस्टीन को भेजी थी क्वांटा रिपोर्ट
  • देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से थे सम्मानित

Google Doodle On Satyendra Nath Bose: सर्च इंजन गूगल ने आज (04 जून 2022) भारत के महान मैथेमैटिशियन और थेओरिटिकल फिजिक्स में महारथी वैज्ञानिक को डूडल के जरिए श्रद्धांजलि दी है. सन् 1924 में आज के दिन (04 जून को) उन्होंने क्वांटम फॉर्मूलेशन अल्बर्ट आइंस्टीन को भेजे थे जिसे  क्वांटम मैकेनिक्स में एक महत्वपूर्ण खोज के रूप में मान्यता मिली. गूगल ने आज सत्येंद्र नाथ बोस और 'बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट' (Bose-Einstein Condensate) में उनके योगदान को सिलेब्रेट करने के लिए डूडल बनाया है.

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भारत के महान वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को कोलकाता में हुआ था. उनके पिता सुरेंद्रनाथ बोस 'ईस्‍ट इंडियन रेलवे कंपनी' के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में काम करते थे. सत्‍येंद्र नाथ उनके 7 बच्‍चों में सबसे बड़े थे. कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में विज्ञान स्नातक की पढ़ाई की और इसके तुरंत बाद कोलकाता विश्वविद्यालय में अप्‍लाइड मैथ्‍स में पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की थी, वे दोनों डिग्रियों में अपनी क्लास के टॉपर रहे. बोस ने 1916 में 'कोलकाता विश्वविद्यालय' के 'साइंस कॉलेज' में रिसर्च स्कॉलर के रूप में प्रवेश लिया और Theory of Relativity की पढ़ाई की. उन्होंने शिक्षा जगत में अपनी प्रतिष्ठित स्थिति को मजबूत किया. 

देश ने नकारा लेकिन अल्बर्ट आइंस्टीन ने पहचाना महत्व
1917 तक बोस ने बतौर फिजिक्स लेक्चरर पढ़ाना शुरू कर दिया था. पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट्स को प्लैंक रेजिएशन फॉर्मूला पढ़ाते समय, बोस ने कणों की गणना के तरीके पर सवाल उठाया था और अपने सिद्धांतों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया था. उन्होंने प्लैंक लॉ एंड द हाइपोथिसिस ऑफ लाइट क्वांटा नामक एक रिपोर्ट में अपने निष्कर्षों का दस्तावेजीकरण किया, और इसे द फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन नामक एक प्रमुख विज्ञान पत्रिका को भेजा था लेकिन उनकी रिसर्च को खारिज कर दी गई थी. इसके बाद उन्होंने 04 जून 1924 को दुनिया के मशहूर साइंटिस्ट अल्बर्ट आइंस्टीन को अपने पेपर भेजने का फैसला किया. अल्बर्ट आइंस्टीन ने बोस की खोज को पहचाना और रिसर्च पेपर के आधार पर बड़े पैमाने पर रिसर्च की. इस तरह बोस का सैद्धांतिक पेपर क्वांटम सिद्धांत में सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक बन गया.

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भारत का सबसे बड़ा पुरस्कार और राष्ट्रीय प्रोफेसर के खिताब से नवाजा
भारत सरकार ने बोस को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित करके फिजिक्स में उनके जबरदस्त योगदान को मान्यता दी. उन्हें विद्वानों के लिए भारत में सर्वोच्च सम्मान, राष्ट्रीय प्रोफेसर के रूप में भी नियुक्त किया गया था. बोस ने भारतीय भौतिक समाज, राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान, भारतीय विज्ञान कांग्रेस और भारतीय सांख्यिकी संस्थान सहित कई वैज्ञानिक संस्थानों के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. वह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के सलाहकार भी थे, और बाद में रॉयल सोसाइटी के फेलो बन गए.

 

 

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