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इस ब्रिटिश अधिकारी के कत्ल में शामिल थे राजगुरु, फिर मिली फांसी की सजा

भारत को आजाद कराने के क्रम में हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूमने वाले शहीद राजगुरु साल 1908 में 24 अगस्त के रोज ही पैदा हुए थे.

राजगुरु राजगुरु
प्रियंका शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 24 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 12:02 PM IST

भारत की आजादी के लिए न जाने कितने क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहूति दी लेकिन राजगुरु को हमेशा से ही ऊंचे पायदान पर रखा जाता रहा है. वह महज 22 साल की उम्र में ही देश के लिए शहीद हो गए थे. उनका पूरा नाम शिवराम राजगुरु था और साल 1908 में 24 अगस्त के रोज ही जन्मे थे.

आइए जानते हैं उनके बारे में..

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राजगुरु के पिता का निधन उनके बाल्यकाल में ही हो गया था. जिसके बाद पालन-पोषण उनकी माता और बड़े भाई ने किया. वह बचपन से ही बड़े वीर, साहसी और मस्तमौला थे. भारत मां से प्रेम उन्हें बचपन से ही था. इस कारण अंग्रेज़ों से घृणा तो स्वाभाविक ही थी. राजगुरु बचपन से ही वीर शिवाजी और लोकमान्य तिलक के बहुत बड़े भक्त थे. संकट मोल लेने में भी इनका कोई जवाब नहीं था. लेकिन वह कभी-कभी लापरवाही कर जाते थे. उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता था, इसलिए अपने बड़े भाई और भाभी का तिरस्कार सहना पड़ता था.  

जब राजगुरु तिरस्कार सहते-सहते तंग आ गए, तब वे अपने स्वाभिमान को बचाने के लिए घर छोड़ कर चले गए. जिसके कुछ समय  बाद राजगुरु ' हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' के सदस्य बन गए.  फिर उन्होंने निशानेबाजी सीखीं और बेहतरी निशानेबाज बनकर उभरें. बाद में उनकी मुलाकात भगत सिंह और सुखदेव से हुई. राजगुरु इन दोनों से बड़े प्रभावित हुए. जिसके बाद राजगुरु ने भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर ब्रिटिश प्रशासन में इतना खौफ पैदा कर दिया था कि अंग्रेजों को इन्हें पकड़ने के लिए विशेष अभियान चलाना पड़ा.

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लाजपत राय की हत्या का बदला

राजगुरु को लाहौर षडयंत्र कांड और सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंकने के लिए दोषी पाया गया था. अक्टूबर 1928 में साइमन कमीशन का विरोध कर रहे भारतीयों पर ब्रिटिश पुलिस ने लाठीचार्ज कर दी. विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे लाला लाजपत राय की लाठियों की चोट की वजह से मौत हो गई इस लाठीचार्ज के जिम्मेदार पुलिस अफसर जेपी सॉन्डर्स की राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह ने हत्या कर दी. सॉन्डर्स के बाद राजगुरु पुणे वापस आ गये थे. लेकिन ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. अंग्रेजों ने राजगुरु, सुखेदव और भगत सिंह को सॉन्डर्स हत्या के लिए फांसी दे दी.

23 मार्च 1931 को अंग्रेजों ने राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव की देश-भक्ति को अपराध बताकर फांसी पर लटका दिया था. सिर्फ 22 साल की उम्र में ही क्रांतिकारी राजगुरु हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए थे. इनके साथ भगत सिंह और सुखदेव को भी फांसी दे दी गई थी. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ये एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है. हर साल 23 मार्च को देशभर में 'शहीद दिवस' के रूप में मनाया जाता है. बताया जाता है जब राजगुरु भगत सिंह और सुखदेव को फांसी दी जा रही थी तब तीनों मस्ती से गा रहे थे

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