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कौन हैं हाथ में गीता लेकर फांसी पर चढ़ने वाले खुदीराम बोस, मूर्ति पर माल्यार्पण करेंगे अमित शाह

गृह मंत्री अमित शाह बंगाल के दो दिवसीय दौरे पर जा रहे हैं. चुनावी तैयारियों का जायजा लेने के साथ-साथ अमित शाह 19 दिसंबर को खुदीराम बोस की मूर्ति पर माल्यार्पण करेंगे. जानिए- कौन हैं खुदीराम बोस.

खुदीराम बोस. खुदीराम बोस.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 17 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 12:12 PM IST

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बाद अब गृह मंत्री अमित शाह बंगाल के दो दिवसीय दौरे पर जा रहे हैं. चुनावी तैयारियों का जायजा लेने के साथ-साथ अमित शाह इस दौरान मिदनापुर में किसान के घर पर लंच भी कर सकते हैं. वो यहां 19 दिसंबर को खुदीराम बोस की मूर्ति पर माल्यार्पण करेंगे. आइए जानें कौन थे खुदीराम बोस... 
 
वो उम्र जब एक युवा अपने करियर और आने वाले भविष्य को लेकर परेशान रहता है, उस उम्र में एक ऐसा क्रांतिकारी निकला जो देश के लिए सूली पर चढ़ गया. महज 18 साल की उम्र में देश के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले खुदीराम बोस को 1908 में 11 अगस्त के ही दिन फांसी दी गई थी.

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खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था. खुदीराम बोस जब बहुत छोटे थे, तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया था. उनकी बड़ी बहन ने उनका लालन-पालन किया था. 1905 में बंगाल का विभाजन होने के बाद खुदीराम बोस देश को आजादी दिलाने के लिए आंदोलन में कूद पड़े. सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया.

अंग्रेजी हुकूमत के थे खिलाफ

खुदीराम बोस स्कूल के दिनों से ही राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लग गए थे. वे जलसे जुलूसों में शामिल होते थे और अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे. उन्होंने 9वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. जिसके बाद जंग-ए-आजादी में कूद पड़े. स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदे मातरम् पैंफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट की घटना में भी बोस शामिल थे. इसके बाद एक क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गई और इसमें उन्हें प्रफ्फुल चंद्र चाकी का साथ मिला. दोनों बिहार के मुजफ्फरपुर जिले पहुंचे और एक दिन मौका देखकर उन्होंने किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम फेंक दिया.

दुर्भाग्य की बात यह रही कि उस बग्घी में किंग्सफोर्ड मौजूद नहीं था. बल्कि एक दूसरे अंग्रेज़ अधिकारी की पत्नी और बेटी थीं. जिनकी इसमें मौत हो गई. इसके बाद अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी. आखिरकार वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया गया.

....जब दी गई फांसी

पुलिस से घिरा देख खुदीराम बोस के साथी प्रफुल्ल कुमार चाकी ने तो खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गए. मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, कई रिपोर्ट्स के मुताबिक उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस हाथ में गीता लेकर एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख्ते की तरफ बढ़ा.

जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी उम्र 18 साल 8 महीने और 8 दिन थी. 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई. जब खुदीराम शहीद हुए थे उसके बाद विद्यार्थियों और अन्य लोगों ने शोक मनाया. कई दिन तक स्कूल, कॉलेज सभी बन्द रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था.

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