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27 सितंबर: जब लोगों ने पहली बार किया ट्रेन का सफर, जानें कहां चली थी पहली रेलगाड़ी

आज 27 सितंबर है. आज का दिन इतिहास के पन्नों में परिवहन में क्रांति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. इस दिन कुछ ऐसा हुआ, जिसने पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन की परिभाषा बदल दी. क्योंकि आज के दिन ही पहली बार सार्वजनिक तौर पर ट्रेन का पब्लिक ट्रांसपोर्ट के रूप में परिचालन शुरू हुआ था. आइये जानते हैं पहली बार कब चली थी सार्वजनिक ट्रेन.

आज ही चली थी पहली यात्री ट्रेन आज ही चली थी पहली यात्री ट्रेन
सिद्धार्थ भदौरिया
  • नई दिल्ली,
  • 27 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:10 PM IST

आज पूरे विश्व के अलग-अलग देशों में रेलवे का जाल बिछ गया है. दुनिया का कोई ऐसा कोना नहीं है, जहां ट्रेन या रेलवे ट्रैक नहीं पहुंची हो. पब्लिक ट्रांसपोर्ट के रूप में पूरी दुनिया में लोग सबसे ज्यादा ट्रेनों का ही उपयोग करते हैं. लेकिन, अपने शुरुआती दौर में ट्रेन पब्लिक ट्रांसपोर्ट के रूप में इस्तेमाल नहीं की जाती थी. 18वीं सदी में भाप इंजन के आविष्कार के बाद ट्रेन बना ली गई थी, लेकिन इसका इस्तेमाल यात्रियों के परिवहन में नहीं होता था. इन शुरुआती ट्रेनों का प्रयोग खदानों से कोयला और अन्य खजिनों को ढोने में किया जाता था. 

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आज  हम बात करेंगे पहली बार यात्री ट्रेन के सफर के शुरुआत की. क्योंकि आज के ही दिन 27 सितंबर 1825 को  पहली बार लोगों ने ट्रेन का सफर किया था. इसी दिन पहली बार ट्रेनों का इस्तेमाल यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह लाने-ले जाने के लिए किया गया. ऐसे में यह जानना बेहद दिलचस्प होगा कि आखिर पहली यात्री ट्रेन कहां चली? वह ट्रेन कैसी थी? ट्रेन की रफ्तार कितनी थी और पहला सफर कितना लंबा रहा?

पहले खदानों से कोयला ढोने के लिए शुरू हुआ था ट्रेनों का इस्तेमाल
पहली यात्री ट्रेन शुरू करने का आइडिया भी काफी दिलचस्प रहा है. कहा जाता है कि इंग्लैंड के एक कोयला खदान से माल ढोने के लिए रेल बनाने वाली कंपनी ने अपनी लागत निकालने के लिए कोयला ढोने वाले वैगनों से भाड़े पर यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की तरकीब निकाली. इस तरह कोयला ले जाने वाले ट्रैक पर ट्रेन में यात्री कोच जोड़कर लोगों को बैठाया गया और एक जगह से दूसरी जगह छोड़ दिया गया. इस तरह पहली बार ट्रेन का इस्तेमाल पब्लिक ट्रांसपोर्ट के तौर पर शुरू हुआ.

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27 सितंबर 1825 में चली थी पहली यात्री ट्रेन
27 सितंबर को इंग्लैंड के स्टॉकटन और डार्लिंगटन के बीच पहली सार्वजनिक रेलगाड़ी चली थी. आज जब समय में ट्रेन से यात्रा करना बड़ी आम बात है. नई-नई टेक्नोलॉजियों के जुड़ने से ट्रेनों की रफ्तार आसमान छू रही है. तब ऐसे समय के बारे में कल्पना करना, खुद में ही बेहद रोमांचक होता है. जब पहली बार भाप के इंजन से चलने वाली ट्रेन की सिटी बजी होगी और अब तक पैदल या घोड़ागाड़ी पर चलने वाले लोग ट्रेन के डिब्बों में बैठकर सफर पर निकले होंगे. 

27 सितंबर  1825 को इंग्लैंड के स्टॉकटन और डार्लिंगटन के बीच पहली बार भाप इंजन से चलने सार्वजनिक यात्री ट्रेन की शुरुआत हुई. इस रेलगाड़ी ने 37 मील का सफर 14 मील प्रति घंटे की रफ्तार से तय किया था. यह घटना दुनिया में सार्वजनिक रेल परिवहन की शुरुआत का प्रमाण है.  

पहली रेलवे लाइन स्टॉकटन और डार्लिंगटन के बीच 
एक रेलवे कंपनी जो 1825 से 1863 तक पूर्वोत्तर इंग्लैंड में संचालित थी. वह भाप इंजनों का उपयोग करने वाली दुनिया की पहली सार्वजनिक रेलवे थी. इसकी पहली लाइन शिल्डन के पास की कोयला खदानों को स्टॉकटन-ऑन-टीज और डार्लिंगटन से जोड़ती थी. आधिकारिक तौर पर इसे 27 सितंबर 1825 को सार्वजनिक परिवहन के लिए खोला गया . 

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किसने पहली यात्री ट्रेन को किया डिजाइन
इंग्लैंड में यात्री ट्रेन 27 सितंबर 1825 को लोकोमोशन संख्या 1 यात्रियों को ले जाने वाला दुनिया का पहला स्टीम लोकोमोटिव बना. इसे पहली बार नॉर्थ ईस्ट इंग्लैंड में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए खोली गई लाइन स्टॉकटन और डार्लिंगटन रेलवे पर चलाया गया था. इस प्रकार ग्रेट ब्रिटेन में रेलवे प्रणाली दुनिया में सबसे पुरानी है. पहली बार यात्री ट्रेन के रूप में चलने वाली इस रेलगाड़ी को, जिसका नाम लोकोमोशन संख्या 1 था, उसे जॉर्ज स्टीफेंसन ने डिजाइन किया था. 

पहली यात्री ट्रेन को जॉर्ज स्टीफेंसन ने डिजाइन किया था. यह ट्रेन रॉबर्ट स्टीफेंसन एंड कंपनी में बनाया गया था. पहली रेलवे लाइन शिल्डन के पास की कोयला खदानों को स्टॉकटन-ऑन-टीज़ और डार्लिंगटन से जोड़ती थी. इसी ट्रैक पर पहली सार्वजिनक ट्रेन चली.  इस घटना के बाद कई देशों ने रेल के इंजन और डिब्बे बनाने का काम शुरू कर दिया. 

अतिरिक्त कमाई के लिए ट्रेनों का पब्लिक ट्रांसपोर्ट के रूप में शुरू हुआ इस्तेमाल
कोयला खदान से चलने वाले  रेलवे के निर्माण की लागत अनुमान से बहुत अधिक थी. सितंबर 1825 तक कंपनी ने अपने लेनदारों से बचने के लिए आय अर्जित करने के लिए एक्सपेरिमेंट नामक एक रेलवे कोच  26 सितंबर 1825 की शाम को लाया और लोकोमोशन नंबर 1 से जोड़ा गया. इस कोच को एक  दिन पहले न्यूकैसल से सड़क मार्ग से अपनी यात्रा पूरी करने के बाद ऐक्लिफ लेन स्टेशन पर पहली बार पटरियों पर रखा गया था.

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रस्सियों से खींचकर ट्रैक पर लाया गया था इंजन
जॉर्ज स्टीफेंसन और समिति के अन्य सदस्यों ने उद्घाटन दिवस की तैयारी के लिए लोकोमोटिव और कोच को शिल्डन ले जाने से पहले डार्लिंगटन की एक एक्सपेरिमेंटल यात्रा की. इस यात्रा की बागडोर जॉर्ज के बड़े भाई जेम्स स्टीफेंसन के हाथ में थी.  27 सितंबर को सुबह 7 से 8 बजे के बीच कोयले के 12 वैगन को ऊपर स्थिर इंजन से जुड़ी रस्सी द्वारा एथरले नॉर्थ बैंक तक खींचा और फिर दक्षिण बैंक से सेंट हेलेन ऑकलैंड तक उतारा गया.

इसमें आटे की बोरियों का एक वैगन जोड़ा गया और घोड़ों ने ट्रेन को गॉन्सलेस ब्रिज के पार ब्रसेलटन वेस्ट बैंक के निचले हिस्से तक खींचा. यहां हजारों लोगों ने दूसरे स्थिर इंजन को ट्रेन को ढलान पर खींचते हुए देखा. ट्रेन को ईस्ट बैंक से शिल्डन लेन इंड में मेसन आर्म्स क्रॉसिंग तक उतारा गया. यहां लोकोमोशन नंबर 1 , एक्सपेरीमेंट और सीटों से सुसज्जित 21 नए कोयला वैगन इंतजार कर रहे थे. 

पहली ट्रेन में 300 यात्रियों के लिए बनाई गई थी जगह
कंपनी के निदेशकों ने 300 यात्रियों के लिए जगह की अनुमति दी थी, लेकिन ट्रेन 450 से 600 लोगों को लेकर रवाना हुई. इनमें से अधिकांश खाली वैगनों में यात्रा कर रहे थे, लेकिन कुछ कोयले से भरे वैगनों के ऊपर थे. वैगनों के बीच ब्रेकमैन रखे गए. फिर ट्रेन चल पड़ी. इसका नेतृत्व एक व्यक्ति ने किया, जिसके हाथ में झंडा था. इसने नीचे की ओर ढलान पर गति पकड़ी और 10 से 12 मील प्रति घंटे (16 से 19 किमी/घंटा) तक पहुंच गई.

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पहली बार 35 मिनट के लिए रुकी थी ट्रेन
इससे फील्ड हंटर्स (घोड़ों) पर सवार लोग पीछे रह गए. उन्होंने ट्रेन के साथ बने रहने की कोशिश की थी. ट्रेन तब रुकी जब कंपनी के सर्वेक्षकों और इंजीनियरों को ले जा रही वैगन का एक पहिया टूट गया. वैगन को वहीं छोड़ दिया गया और ट्रेन आगे बढ़ गई. ट्रेन फिर से रुकी. इस बार लोकोमोटिव की मरम्मत के लिए 35 मिनट का ठहराव हुआ. इसके बाद फिर से ट्रेन चल पड़ी. पहले जब कोयला ढोने के लिए ट्रेन चलती थी, तो रेलगाड़ी के इंजन के आगे घोड़े पर सवार एक व्यक्ति रहता था. उसके हाथ में एक झंडा रहत था. इस झंडे पर लिखा रहता था, 'पेरिकुलम प्राइवेटम यूटिलिटास पब्लिका'. जिसका मतलब है, 'निजी खतरा सार्वजनिक भलाई है. इन्हें फील्ड हंटर्स कहते थे. 

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24 घंटा प्रति किलोमीटर की रफ्तार से चली थी पहली ट्रेन
15 मील प्रति घंटे (24 किमी/घंटा) की गति तक पहुंचने से पहले डार्लिंगटन शाखा जंक्शन पर रुकने पर इसका स्वागत लगभग 10,000 लोगों ने किया. दो घंटे में साढ़े आठ मील (14 किमी) की दूरी तय की गई थी और दो स्टॉप के लिए 55 मिनट घटाने पर यह 8 मील प्रति घंटे (13 किमी/घंटा) की औसत गति से यात्रा कर चुका था. कोयले के छह वैगन गरीबों में वितरित किए गए, श्रमिकों जलपान के लिए रुक गए और ब्रुसेलटन से आए कई यात्री डार्लिंगटन में उतर गए, जहां उनकी जगह दूसरे लोग सवार हो गए.

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27 सितंबर को इतिहास में हुई कुछ प्रमुख घटनाएं 

1781 में सालनगढ़ में हैदर अली और ब्रिटिश सेना के बीच युद्ध हुआ था. 
1833 में राम मोहन राय का निधन ब्रिस्टल, इंग्लैंड में हुआ था. 
1905 में महान वैज्ञानिक अल्फ़्रेड आइंस्टीन ने E=mc² का सिद्धांत पेश किया था. 
1907 में भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म हुआ था. 
1918 में ब्रिटिश सेना ने पहले विश्व युद्ध के दौरान वेस्टर्न फ़्रंट पर अंतिम हमला किया था. 
1964 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी की हत्या की जांच करने वाले वारेन आयोग ने अपने निष्कर्ष सार्वजनिक किए थे. 
1977 में प्रसिद्ध नर्तक उदय शंकर का निधन हो गया था. 
1995 में कलकत्ता मेट्रो का टॉलीगंज और दमदम के बीच पूर्ण क्षमता से परिचालन शुरू हुआ था. 
1903 में ओल्ड 97 का मलबा, एक रेल दुर्घटना हुई थी. 
1908 में हेनरी फ़ोर्ड की पहली फ़ोर्ड मॉडल टी ऑटोमोबाइल मिशिगन के डेट्रॉयट में पिकेट प्लांट से बाहर निकली थी. 
27 सितंबर को हर साल विश्व पर्यटन दिवस मनाया जाता है.

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