
बचपन में मां को खो देने का गम, जवानी से पहले नापसंद शादी की घुटन, साहिर लुधियानवी से अधूरा प्रेम और इमरोज का साथ... कुछ ऐसा था महान कवयित्री और लेखक अमृता प्रीतम का जीवन. आज उनकी 103वीं जयंती है. उनका जन्म 31 अगस्त 1919 को ब्रिटिश भारत में गुजरांवाला, पंजाब (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें.
महज 16 वर्ष की उम्र में हुई शादी
महज 16 साल की उम्र में अमृता की शादी लाहौर के अनारकली बाजार के एक प्रमुख होजरी व्यापारी और एक संपादक के बेटे प्रीतम सिंह से हुई थी. तभी से अमृता के नाम के साथ प्रीतम (पति का नाम) शब्द जुड़ा था. हालांकि, वे इस शादी से खुश नहीं थी फिर भी उन्होंने प्रीतम सिंह के साथ अपनी जिंदगी के सबसे कीमती 33 साल बिताए थे. इसी बीच अमृता के जीवन में शायरी के जादूगर और गज़लों के सरताज साहिर लुधियानवी का आना हुआ. कुछ लोगों को मानना है कि साहिर की वजह से ही अमृता और प्रीतम सिंह का रिश्ता टूटा था, दोनों 1960 में अलग हो गए थे.
अमृता का अधूरा और अमर प्रेम
अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी का मुलाकात साल 1944 में हुई थी जब दोनों लाहौर के प्रीत नगर में स्थित मुशायरे में पहुंचे थे. पहली मुलाकात में ही साहिर और अमृता एक-दूसरे को दिल दे बैठे थे लेकिन दोनों इजहार नहीं कर पाए. हालांकि दोनों के बीच की खामोशी बहुत कुछ बंया कर रही थी. बहुचर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' में अमृता ने लिखा भी लिखा है कि उस वक्त दोनों घंटों खामोश बैठे रहे, किसी ने एक-दूसरे से एक शब्द तक नहीं कहा लेकिन साहिर जाते हुए उनके हाथ में एक नज्म दे गए. हालांकि, अमृता ने यह नहीं बताया कि उस नज्म में क्या लिखा था. इस मुलाकात के बाद दोनों एक-दूसरे को खत लिखने लगे और कब खतों की लंबाई और संख्या बढ़ गई पता ही नहीं चला. बीच-बीच में मुलाकात का सिलसिला भी चलता रहा.
अमृता ने 'रसीदी टिकट' में अपने प्रेम को कुछ इस तरह बयां किया है, 'वो चुपचाप मेरे कमरे में सिगरेट पिया करता. आधी पीने के बाद सिगरेट बुझा देता और नई सिगरेट सुलगा लेता. जब वो जाता तो कमरे में उसकी पी हुई सिगरेटों की महक बची रहती. मैं उन सिगरेट के बटों को संभालकर रख लेती और अकेले में उन बटों को दोबारा सुलगाती. जब मैं उन्हें अपनी उंगलियों में पकड़ती तो मुझे लगता कि मैं साहिर के हाथों को छू रही हूं. इस तरह मुझे भी सिगरेट पीने की लत लग गई.'
वहीं, साहिर की जीवनी 'साहिर: अ पीपुल्स पोएट' लिखने वाले अक्षय मानवानी कहते हैं कि साहिर की जिंदगी में कई औरतें आईं लेकिन अमृता वो इकलौती महिला थीं, जो साहिर को शादी के लिए मना सकती थीं. वे लिखते हैं, 'साहिर लुधियानवी ने अपनी मां सरदार बेगम से कहा भी था कि वो अमृता प्रीतम थी. वो आपकी बहू बन सकती थी'. उन्होंने अमृता को जहन में रखकर कई नज्में, गीत, शेर और गजलें लिखीं.
अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी का रिश्ता ताउम्र चला लेकिन कभी अंजाम तक नहीं पहुंचा. 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हो गया. साहिर मुंबई पहुंच गए और अमृता दिल्ली आकर बस गईं. भारत आने के बाद साहिर और अमृता एक-दूसरे को खत लिखते थे लेकिन इसी दौरान साहिर के जीवन में एक दूसरी औरत आ गई थी जिसकी वजह से अमृता से उनकी दूरियां बढ़ी. इस बीच साहिर के साथ अनाम रिश्ते के चलते 1960 में उनका तलाक भी हो गया था. तब अमृता की जिंदगी में रंग भरने के लिए एक चित्रकार इमरोज आए. वे उनकी शादीशुदा जिंदगी और साहिर से प्रेम दोनों से अच्छी तरह वाकिफ थे. वे अमृता के प्रेम का सम्मान करते थे. दोनों एक साथ रहने लगे लेकिन कभी शादी नहीं की.
'अज्ज आखां वारिस शाह नूं...'
'अज्ज आखां वारिस शाह नूं...' यह मशहूर पंक्ति महान कवयित्री और लेखक अमृता प्रीतम की कलम से उस समय लिखी गई थीं, जब वे भारत-पाकिस्तान 1947 बंटवारे और हिंसा के बीच लाहौर से भारत लौट रही थीं. उन्होंने उस दौरान महिलाओं के साथ हुई हिंसा, कत्लेआम और बलात्कार जैसी बर्बरता को कविता के जरिए बयां किया था.
31 अक्टूबर, 2005 में हुआ था निधन
अमृता प्रीतम ने लंबी बीमारी के बाद 86 साल की उम्र में 31 अक्टूबर, 2005 को आखिरी सांस ली थी. उस वक्त वे साउथ दिल्ली के हौज खास इलाके में रहती थीं.
बता दें कि अमृता प्रीतम सबसे प्रसिद्ध पंजाबी लेखकों और कवियों में से एक हैं, जिन्होंने फिक्शन, नॉन-फिक्शन, कविता और निबंध लिखे. उन्हें साहित्य अकादमी, भारतीय ज्ञानपीठ और पद्म विभूषण सहित देश के कुछ सर्वोच्च पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. वे जितना भारत में प्रसिद्ध हैं उतना ही पाकिस्तान में भी हैं.