
ताइवान और चीन को लेकर एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाएं हो रही हैं. ताइवान में अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी के दौरे के बाद चीन का रिसपांस अलग ही दिख रहा है. दौरे के विरोध में चीन सिर्फ बयानबाजी ही नहीं कर रहा है बल्कि ताइवान के डिफेंस जोन में 21 एयरक्राफ्ट उड़ाकर चीन ने चेतावनी भी दी है. चीन और ताइवान की यह दुश्मनी नई नहीं है, इसके पीछे पुराना आपसी झगड़ा खास वजह है. आइए जानते हैं ताइवान का इतिहास और वहां की खासियतें क्या हैं, वहां के लोग कैसे हैं और आखिर चीन ताइवान की आपसी दुश्मनी की वो खास वजह क्या है.
भौगोलिक स्थिति और इतिहास
पूर्वी एशिया का द्वीप ताइवान अपने आसपास के कई द्वीपों को मिलाकर चीनी गणराज्य का अंग है. इसका मुख्यालय ताइवान द्वीप और राजधानी ताइपे है. बता दें कि चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, वहीं ताइवान खुद को स्वतंत्र देश समझता है. 1949 में च्यांग काई-शेक के वक्त से दोनों देशों में ये तनातनी चली आ रही है. इस देश की खास पहचान और यहां के इतिहास की रोचक बातें जान लीजिये.
असल पहचान को लेकर है झगड़ा
ताइवान का असली नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना है. इसकी सांस्कृतिक पहचान चीन से काफी अलग और बेहद मजबूत है. वहीं चीन का नाम पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है. इस तरह से दोनों ही 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' और 'पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना' एक-दूसरे की संप्रभुता को मान्यता नहीं देते.
दोनों ही देश खुद को आधिकारिक चीन मानते हुए मेनलैंड चाइना और ताइवान द्वीप का आधिकारिक प्रतिनिधि होने का दावा करते रहे हैं. कागजी दस्तावेजों में दोनों के नाम में चाइना जुड़ा हुआ है. वहीं व्यावहारिक तौर पर ताइवान द्वीप 1950 से ही स्वतंत्र रहा है. मगर चीन इसे अपना विद्रोही राज्य मानता है.
ताइवान: संगीत है जहां की पहचान
ताइवान में लगभग 23 मिलियन के करीब जनसंख्या है. कुछ ट्रैवल वेबसाइट्स यहां तक दावा करती हैं कि महज आठ घंटे में आप अपने वाहन से पूरा देश भ्रमण कर सकते हैं. यहां की कुल जनसख्या के लगभग 80% लोग ताइवान के ही मूल निवासी है. वहीं 15 प्रतिशत लोग चीन से यहां आकर बस गए हैं, बाकी बचे 5% अन्य देशों से आए लोग हैं. यहां के लोगों की खास पहचान उनका संगीत प्रेम और हेल्थ हाइजीन के प्रति जागरूक होना है. कोरोना से पहले भी यहां के लोगों की मास्क पहनने की आदत को लेकर उन्हें इस देश को फेस मास्क कैपिटल तक कहा जाता रहा है.
क्यों आपसी दुश्मन है चीन-ताइवान
ताइवान अपने को आज भी स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र मानता है, लेकिन ड्रैगन यानी चीन की शुरुआत से यही राय रही है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए. वह इसे अपने में मिलाने के लिए बल प्रयोग को भी गलत नहीं ठहराता है.
इतिहास के पन्नों से देखें तो ये आपसी रार काफी पुरानी है. बीबीसी हिंदी में छपी दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर चाइनीज़ एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज़ में असिस्टेंट प्रोफेसर गीता कोचर के मुताबिक, चीन में साल 1644 में चिंग वंश सत्ता में आया और उसने चीन का एकीकरण किया. साल 1895 में चिंग ने ताइवान द्वीप को जापानी साम्राज्य को सौंप दिया. मगर 1911 में चिन्हाय क्रांति हुई जिसमें चिंग वंश को सत्ता से हटना पड़ा. इसके बाद चीन में कॉमिंग तांग की सरकार बनी और तब जितने भी इलाके चिंग रावंश के अधीन थे, वे कॉमिंगतांग सरकार को मिल गए. कॉमिंगतांग सरकार ने ही चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना किया था.
इतिहास के अनुसार चीन और ताइवान का झगड़ा साल 1949 से शुरू हुआ. तब चीन में हुए गृहयुद्ध में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हराया था. वहीं चीन में सत्ता में आ चुके कम्युनिस्टों की नौसेना की ताकत न के बराबर थी. यही कारण था कि माओ की सेना समंदर पार करके ताइवान पर नियंत्रण नहीं कर सकी.