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समझिए- क्या है इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम, जिसमें गड़बड़ी की वजह से हुआ बालासोर रेल हादसा

बालासोर भीषण रेल हादसे में अब तक 275 लोगों की जान चली गई है, जबकि 900 से ज्यादा लोग घायल हैं. इस हादसे के पीछे रेलवे का इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम बताया गया है. आइए जानते हैं क्या इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम? कैसे काम करता है? और कैसे खराब हुआ होगा?

बालासोर भीषण रेल हादसा बालासोर भीषण रेल हादसा
मिलन शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 04 जून 2023,
  • अपडेटेड 4:35 PM IST

ओडिशा के बालासोर में भीषण रेल हादसे की बड़ी वजह इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में गड़बड़ी बताई गई है. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने मामले की जांच की है. यह हादसा इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव की वजह से हुआ है. उन्होंने कहा है कि हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर ली गई है और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. बालासोर रेल हादसे के बाद ट्रैक को साफ करने और फिर से बहाल करने के लिए युद्धस्तर पर काम जारी है. बुधवार सुबह से ट्रैक पर यातायात की बहाली शुरू हो जाएगी. इंडिया टुडे ग्रुप ने भी इससे पहले ट्रेनों की टक्कर के पीछे सिग्नलिंग की गलती की संभावना जताई थी.

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इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग क्या है?
रेलवे इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (Railway Electronic Interlocking) एक ऐसे टेक्नोलॉजी है, जो रेलवे सिग्नलिंग को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. यह एक सुरक्षा प्रणाली है जो ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सिग्नल और स्विच के बीच ऑपरेटिंग सिस्टम को कंट्रोल करती है. यह सिस्टम रेलवे लाइनों पर सुरक्षित और अवरुद्ध चल रही ट्रेनों के बीच सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करती है. इसकी मदद से रेल यार्ड के कामों को इस तरह से कंट्रोल किया जाता है जो नियंत्रित क्षेत्र के माध्यम से ट्रेन का सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करे. रेलवे सिग्नलिंग अन-इंटरलॉक्ड सिग्नलिंग सिस्टम, मैकेनिकल और इलेक्ट्रो-मैकेनिकल इंटरलॉकिंग से लेकर अब तक के मॉर्डन हाई टेक सिग्नलिंग तक एक लंबा सफर तय कर चुका है. इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (EI) एक ऐसी सिग्नलिंग व्यवस्था है जिसके इलेक्ट्रो-मैकेनिकल या पहले से इस्तेमाल हो रहे पैनल इंटरलॉकिंग के कई फायदे हैं.

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इससे पहले रेलवे सिग्नलिंग और इंटरलॉकिंग में मैकेनिकल तत्वों का उपयोग किया जाता था, जैसे कि रेलवे स्विच, लॉक और सिग्नल मेकेनिज्म. इसके बदले में, रेलवे इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग कंप्यूटर सॉफ्टवेयर आधारित सिस्टम का इस्तेमाल करती है. जिसमें ऑपरेशनल कमांड, स्विच और सिग्नल स्थितियों को ऑपरेट करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक निर्देश दिए जाते हैं. इस सिस्टम में लोगों की गलतियों (human errors) की बहुत कम गुंजाइश होती है, इसे ट्रेनों को संचालन को सुरक्षित ढंग से कंट्रोल करने के लिए बनाया गया है. रेलवे इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के इस्तेमाल से रेलवे सुरक्षा में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं और ट्रेनों के संचालन में अधिक सुविधा हुई है.

रेलवे का इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग कैसे काम करता है?
रेलवे का इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग एक प्रणाली है जो रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों की सुरक्षा और एक सुगम गति प्रदान करने के लिए उपयोग होती है. यह इंजीनियरिंग सिस्टम है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक और कंप्यूटर नेटवर्क के इस्तेमाल से ट्रेनों के बीच ट्रांजिशन को कंट्रोल किया जाता है.

जब एक ट्रेन रेल नेटवर्क पर चलती है, तो उसके पास एक इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम द्वारा प्रशिक्षित संकेतक (trained sensor) होते हैं. ये सेंसर ट्रेन की स्थिति, गति और अन्य जानकारी को मापते हैं और इस जानकारी को सिग्नलिंग सिस्टम को भेजते हैं. सिग्नलिंग सिस्टम फिर उस ट्रेन के लिए उचित संकेत जारी करता है, जिससे ट्रेन की गति, रुकावट और दूसरे सेंसर को कंट्रोल किया जाता है. यह प्रक्रिया लगातार होती रहती है, जिससे ट्रेनों को उचित संकेत प्राप्त होते रहते हैं, जिससे सुरक्षा सुनिश्चित रहे. इस प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाली तकनीकों में माइक्रोप्रोसेसर, सेंसर, इंटरफेस मॉड्यूल, नेटवर्क कनेक्टिविटी और सफलतापूर्वक टेस्ट किए गए एल्गोरिदम शामिल होते हैं.

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कैसे खराब हुआ इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम?
आमतौर पर सिस्टम में खराबी होने पर सिग्नल लाल हो जाता है. क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटरलॉकिंग एक सफल-सुरक्षित तंत्र है, इसलिए समस्याएं बाहरी हो सकती हैं, जैसे ह्यूम एरर, खराबी आदि के कारण हो सकती हैं. नाम न छापने की शर्त पर भारतीय रेलवे में एक सिग्नलिंग एक्सपर्ट ने बताया, 'सेट शर्तों को पूरा करना होगा. इस मामले में, प्वॉइंट को नॉर्मल लाइन पर सेट किया जाना चाहिए था न कि लूप लाइन पर. प्वॉइंट को लूप लाइन पर सेट किया गया था, यह कुछ ऐसा है जो किसी व्यक्ति की गडबड़ी के बिना नहीं हो सकता है.'

सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया, “उसी एरिया में लेवल क्रॉसिंग गेट को लेकर कुछ कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था. यदि किसी केबल की आपूर्ति में खराबी थी, तो उसे चेक करने की जरूरत है. अगर प्वाइंट उल्टी दिशा में था तो कहां होना चाहिए था, इसकी जांच होनी चाहिए.

यह बहाना बाजार रेलवे स्टेशन इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम से लैस था. रेलवे के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि - पैनल इंटरलॉकिंग/रूट रिले इंटरलॉकिंग/इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (PI/RRI/EI) मल्टीपल एस्पेक्ट कलर लाइट सिग्नल के साथ बीजी रूट्स पर 6,506 स्टेशनों में से 6,396 स्टेशनों पर 31 मार्च 2023 तक प्रदान किया गया.

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