
भारत में हर साल 15 सितंबर को राष्ट्रीय अभियंता दिवस (National Engineer’s Day) मनाया जाता है. महान इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की उपलब्धियों को पहचानने और उनका सम्मान करने के लिए उनकी जयंती पर नेशनल इंजीनियर्स डे सेलिब्रेट किया जाता है. यह दिन इंजीनियरों के महान कार्य को मनाने और उन्हें सुधार और नवाचार के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है. भारत के अलावा श्रीलंका और तंजानिया में भी 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे के तौर पर मनाया जाता है.
इस साल महान इंजीनियर एम विश्वेश्वरैया (Mokshagundam Visvesvaraya) की 161वीं जयंती है, उनका जन्म 15 सितंबर, 1861 को कर्नाटक के मुद्दनहल्ली गांव में हुआ था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अपने गृहनगर में पूरी की और बाद में मद्रास विश्वविद्यालय से आर्ट्स में बैचलर डिग्री हासिल की. हालांकि, उन्होंने ग्रेजुएशन के बाद अपना करियर पथ बदल दिया और पुणे के कॉलेज ऑफ साइंस में सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और 1883 में हुई परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था. उन्होंने एक इंजीनियर के रूप में कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पूरे किए थे.
उन्होंने पानी रोकने वाले ऑटोमेटिक फ्लडगेट का डिजाइन तैयार कर पेटेंट कराया, जो साल 1903 में पहली बार पुणे के खड़कवासला जलाश्य में इस्तेमाल हुए. उन्होंने मैसूर में कृष्णा राजा सागर बांध के निर्माण में उन्होंने चीफ इंजीनियर के रूप में भूमिका निभाई थी. उन्होंने ही हैदराबाद के लिए उन्होंने बाढ़ से बचाने का सिस्टम डिजाइन तैयार किया. इस मौके (इंजीनियर्स डे) पर हम आज भारत की पहली महिला इंजीनियर के बारे में भी बताना चाहते हैं, जिन्होंने कम उम्र की सिंगल चाइल्ड मदर होने के बावजूद इंजीनियरिंग में नाम कमाया था.
भारत की पहली महिला इंजीनियर कौन थी?
अय्योलासोमायाजुला ललिता (A Lalitha) भारत की पहली महिला इंजीनियर थी. उनका जन्म 27 अगस्त 1919 को चेन्नई में हुआ था. ललिता के पिता का नाम पप्पू सुब्बा राव था, जो खुद एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे. वे सात भाई-बहनों में पांचवी संतान थीं. उस समय लड़कियों को केवल बेसिक नॉलेज के लिए पढ़ाया जाता था, इसलिए ललिता को भी 12वीं (इंटरमीडिएट) तक पढ़ाया गया था. लेकिन शादी के बाद उन्होंने संघर्ष किया और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.
महज 15 साल की उम्र में हुई शादी
ललिता की शादी 15 साल की कम उम्र कर दी गई थी. हालांकि, उनके माता-पिता का शिक्षा में दृढ़ विश्वास था, और उन्होंने जोर देकर कहा था कि वह शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखेगी. 18 वर्ष की उम्र बेटी को जन्म देने के चार महीने बाद ही उनके पति का देहांत हो गया. भारतीय समाज में उस समय विधवाओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था, इसलिए ललिता अपने लिए और अपनी बेटी को एक अच्छा जीवन देना का फैसला किया.
ए ललिता कैसे बनीं भारत की पहली महिला इंजीनियर
ललिता ने क्वीन मैरी कॉलेज से फर्स्ट डिवीजन में इंटरमीडिएट की परीक्षा की थी. इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज, गिंडी, मद्रास विश्वविद्यालय (सीईजी) में चार साल के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग प्रोग्राम में दाखिला लेने का मन बनाया. ललिता एक मेधावी छात्रा थीं, लेकिन 1930 के दशक के अंत में भी टेक्निकल ट्रेनिंग को विशेष रूप से पुरुषों के लिए देखा जाता था. तब उनके पिता, जोकि CEG में ही इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे, ने अपनी बेटी को एडमिशन दिलाने के लिए उस वक्त के कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. के.सी. चाको से बात की. इन दो पुरुषों के विश्वास की वजह से ललिता को इंजीनियरिंग में आगे बढ़ने का मौका मिला.
कॉलेज से पास आउट होने के बाद बिहार के जमालपुर में रेलवे वर्कशॉप में अपरेंटिस की और फिर भारत के केंद्रीय मानक संगठन, शिमला में एक इंजीनियरिंग सहायक के रूप में नौकरी की. करीब 2 साल यहां करने के बाद आर्थिक स्थिति के चलते उन्हें कलकत्ता में एसोसिएटेड इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीज (AEI) में जाना पड़ा.
इस समय तक, ललिता उस कुशल इंजीनियर के रूप में जानी जाने लगी थीं, और जब वह AEI में थीं, तब उन्हें भाखड़ा नंगल बांध, भारत के सबसे बड़े बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं पर काम करने के लिए चुना गया था. वह ज्यादातर ट्रांसमिशन लाइनों को डिजाइन करने और दूसरी बार प्रोटेक्टिव गियर, सबस्टेशन लेआउट और कॉन्ट्रेक्ट संभालने का काम करती थीं. इस तरह ललिता ने लोकल और इंटरनेशनल लेवल पर इंजीनियरिंग फील्ड में अपनी अलग पहचान बनाई. 1979 में 60 वर्ष की उम्र में ए ललिता का निधन हो गया था.