
C.V. Raman Birth Anniversary: भारत रत्न प्राप्त महान साइंटिस्ट प्रोफेसर सी.वी. रमन ने ब्रिटिश राज में भारतीयों के दिमाग का लोहा मनवा दिया था. आजादी से करीब 19 साल पहले सन 1928 में उन्होंने एक ऐसी खोज की जिसे आज भी उनके नाम से जाना जाता है. उस खोज के लिए सी. वी. रमन को 1930 में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था. आज, 7 नवंबर को भारत के महान वैज्ञानिक प्रोफेसर सी. वी. रमन की 134वीं जयंती (C.V. Raman 134th Birth anniversary 2022) है. आइए जानते हैं उनसे जुड़ी खास बातें.
भारतीय भौतिक-शास्त्री सी.वी. रमन का पूरा नाम चेंद्रशेखर वेंकट रमन है, जिनका जन्म 7 नवंबर, 1888 को मद्रास प्रेसिडेंसी के तिरुचिरापल्ली के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम चंद्रशेखर रामनाथन अय्यर और मां का नाम पार्वती अम्मल है. उन्होंने 10वीं क्लास में टॉप किया था. 1903 में आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, मद्रास में दाखिला लिया और स्नातक की डिग्री प्राप्त की. 1094 में उन्हें फिजिक्स एवं इंग्लिश के लिए मेडल दिया गया था.
बचपन से विज्ञान में थी रूचि, खेल-खेल में करते थे प्रयोग
सी. वी. रमन के बारे में लिखते हुए कहा गया है कि बचपन से ही विज्ञान में उनकी बड़ी दिलचस्पी थी, वे खेल-खेल में विज्ञान का प्रयोग किया करते थे. जब भी हॉस्टल से घर आते तो अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर छोटे-छोटे विज्ञान के प्रयोग करते रहते थे.
जब ब्रिटेन के साइंटिस बैरन रेले ने रमन को प्रोफेसर समझकर भेजा लेटर
यह उस समय की बात है जब 18 वर्षीय रमन को प्रेसडेंसी कॉलेस स्कॉलरशिप मिली थी और वे मास्टर डिग्री कर रहे थे. उसी दौरान उन्होंने प्रकाश के व्यवहार पर आधारित अपना पहला रिसर्च पेपर लिखा. उन्होंने एक प्रोफेसर को अपना रिसर्च पेपर पढ़ने के लिए भेजा लेकिन वे किन्हीं कारणों के चलते पढ़ नहीं पाए और रमन ने फोसोफिकल मैग्जीन को अपना रिसर्च पेपर भेज दिया. वह पब्लिश हुआ और ब्रिटेन के जाने-माने साइंटिस्ट बैरन रेले (John William Strutt, 3rd Baron Rayleigh) ने उसे पढ़ा.
बता दें कि बैरन रेले मैथ्स और फिजिक्स के महान साइंटिस्ट रहे हैं, जिन्होंने आसमान का नीला क्यों होता है कि भी खोज की थी. वे रमन के रिसर्च पेपर से काफी प्रभावित हुए, उन्होंने रमन को एक लेटर लिखकर उनकी प्रसंशा की. वे रमन को प्रोफेसर समझ बैठे, उन्होंने रमन को लिखे लेटर में प्रोफेसर कहकर ही संबोधित किया था. हालांकि, रमन ने इस घटना के एक साल बाद फिजिक्स में अपनी मास्टर डिग्री हासिल की थी.
सी. वी. रमन की खोज
सी. वी. रमन ने 28 फरवरी 1930 को एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक खोज की थी, जिसे 'रमन प्रभाव' के नाम से जाना जाता है. भारत में खोज की इस तारीख को हर साल राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप मनाया जाता है. इसी खोज के लिए रमन को 1930 में फिजिक्स में नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था. 'रमन प्रभाव' एक ऐसी घटना है जिसमें प्रकाश की किरणों को अणुओं द्वारा हटाए जाने पर वह प्रकाश अपने तरंगदैर्ध्य में बदल जाता है.
प्रकाश की किरण जब एक धूल-मुक्त पारदर्शी रसायनिक मिश्रण से गुजरती है तो बीम की दूसरी दिशा में प्रकाश का छोटा सा अंश उभरता है. इस बिखरे हुए प्रकाश का ज्यादातर हिस्सा तरंगदैर्ध्य अपरिवर्तित रहता है. हालांकि छोटा सा अंश मूल प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की तुलना में अलग तरंगदैर्ध्य वाला होता है और उसकी उपस्थिति रमन प्रभाव का नतीजा है.
चांद पर पानी की खोज से लेकर कैंसर का पता लगाने तक में मदद कर रही सी. वी. रमन की खोज
सी. वी. रमन की खोज रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (स्पेक्ट्रोस्कोपी पदार्थ द्वारा प्रकाश और अन्य विकिरण के अवशोषण और उत्सर्जन का अध्ययन है) का इस्तेमाल आज दुनियाभर की केमिकल लैब में हो रहा है. इसी खोज की मदद से पदार्थ की पहचान की जाती है. फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर में सेल्स और टीशूज पर शोध से लेकर कैंसर का पता लगाने तक के लिए उनकी खोज काम आ रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, मिशन चंद्रयान के दौरान चांद पर पानी का पता लगाने के लिए भी रमन स्पेकट्रोस्कोपी का ही योगदान था. 82 वर्षीय सी.वी. रमन का निधन 21 नवंबर 1970 को बेंगलुरु में हुआ था.