Advertisement

क्या होता है ग़ुस्ल-ए-काबा, जब खोला जाता है काबा का ताला! फिर अंदर जाकर निभाई जाती है ये रस्म

Hajj Yatra: काबा मुसलमानों के सबसे पवित्र धर्मस्थल में से एक है, जहां की यात्रा हर एक मुस्लिम करना चाहता है. काबा से जुड़ी कई ऐसी परंपराएं हैं, जो कई सालों से निभाई जा रही हैं, जिसमें से एक है गुस्ल-ए-काबा.

गुस्ल-ए-काबा, काबा को धार्मिक स्नान देने की परंपरा है.  (Photo- Reuters) गुस्ल-ए-काबा, काबा को धार्मिक स्नान देने की परंपरा है. (Photo- Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 जून 2024,
  • अपडेटेड 5:58 PM IST

मुसलमानों के सबसे पवित्र धर्मस्थल काबा से जुड़ी कई परंपराएं हैं, जो कई सालों से निभाई जा रही हैं, जिसमें  गुस्ल-ए-काबा भी शामिल है. ये खास परंपरा एक खास दिन के मौके पर पूरी की जाती है, जिस दौरान काबा के दरवाजे पर लगे खास ताले को भी खोला जाता है. इस ताले का भी काफी धार्मिक महत्व है और इस ताले की चाबी जहां रखी जाती है, उसकी भी खास कहानी है. ऐसे में गुस्ल-ए-काबा की परंपरा के साथ जानते हैं कि इस ताले और काबी की क्या कहानी है... 

Advertisement

क्या है गुस्ल-ए-काबा?

गुस्ल-ए-काबा, काबा को धार्मिक स्नान देने की परंपरा है. ग़ुस्ल से आप समझ गए होंगे ये नहलाने से संबंधित है. ये इसलिए खास है, क्योंकि इस दिन काबा पर लगे खास ताले को खोला जाता है और इसे खोलने के बाद काबा के अंदरुनी हिस्से को नहलाया जाता है. इस परंपरा में काबा को नहलाने के लिए आब-ए-ज़मज़म, गुलाब जल, बेहतरीन इत्र का इस्तेमाल किया जाता है और उससे यह परंपरा पूरी की जाती है. पहले रात भर खादिम इसको साफ करते हैं और पूरे बैतुल्लाह को आबे जमजम से ग़ुस्ल देते हैं.

काबे का दरवाजा (बाब-ए-काबा) एक खास लॉक से बंद है और इस खास मौके पर कदीमी चाबी (कलीदे काबा) से इसे खोला जाता है. इसमें जाने की इजाजत कुछ ही लोगों को होती है और इस दौरान काफी भीड़ होती है. इस दौरान मक्का के गवर्नर भी वहां होते हैं. कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद के वक्त भी इसे साल में दो बार नहलाया जाता था. 

Advertisement

कब होता है गुस्ल-ए-काबा?

बीबीसी की एक रिपोर्ट के हिसाब से इस्लामी कैलेंडर के मोहर्रम महीने की हर पंद्रहवीं तारीख को काबे का दरवाजा खोला जाता है और काबा को नहलाया जाता है. इस  ग़ुस्ल में शिरकत करने के लिए सारी दुनिया के जायरीन बैतुल्लाह पहुंचते हैं.

क्यों खास है ये ताला?

जिस दरवाजे पर ये ताला लगा है, उसके लिए कहा जाता है कि वो 300 किलो सोने से बना है. वहीं ताले की बात करें तो काबा का मौजूदा ताला और उसकी चाबी सोने और निकल से बने हैं. इन ताले और ताबी पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं. रिपोर्ट के हिसाब से इतिहास में काबा के ताले और चाबी कई शासकों ने कई बार बदले हैं. वैसे ये ताले की चाबी क़ुरान की आयतों की नक्काशी वाले बैग में रखी जाती हैं. 

कहा जाता है कि पैंगबर मोहम्मद के वक्त इस ताले की चाबी उस्मान बिन तलहा के पास थी और तब से उनके ही परिवार के पास इस चाबी की जिम्मेदारी है. हालांकि, बीच में मक्का जीतने वाली कुछ शासकों ने ये चाबी ले भी ली थी, मगर इसे फिर उस्मान बिन तलहा के परिवार को दे दी गई है. 
 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement