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पैदाइशी जंगजू क़ौम है 'पठान', मशहूर हैं जांबाज़ी के क़िस्से

पठान क़ौम की बहादुरी के कई क़िस्से भारतीय इतिहास का हिस्सा हैं. पहला नाम जो सुनहरे लफ़्ज़ों में दर्ज है, वह अज़ीमुल्ला खां का है, जिन्हें 1857 की क्रांति का महानायक कहा जाता है. आज हम पठानों के भारतीय इतिहास पर नज़र डालते हैं.

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हुमरा असद
  • नई दिल्ली,
  • 06 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 5:32 PM IST

पठान एक मुसलमान क़ौम है, जो पश्तून वंश से ताल्लुक़ रखते हैं और अफग़ानिस्तान से भारत आए हैं या यहां से आए लोगों के वंशज हैं. आम लफ्ज़ों में पठान, अफग़ानों का पर्याय हैं. अफग़ानिस्तान से आए लोगों के लिए पठान लफ्ज़ का इस्तेमाल किया जाता है. ये अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी इलाक़ों में रहने वाले लोगों की क़ौम है. ये लोग पश्तो या फ़ारसी भाषा बोलते हैं. हालांकि ये लोग अपने आपको तुर्क भी बताते हैं.

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'पठान' शब्द का मतलब क्या है?

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इतिहास के प्रोफेसर सैयद अली नदीम रज़वी ने बताया कि पठान दरअसल, पट्ठों से निकला लफ्ज़ है. बहादुरों के लिए पट्ठों लफ्ज़ का इस्तेमाल किया जाता है. इसी से पठान लफ्ज़ की शुरुआत हुई. ये आमतौर पर साफ और सुर्ख़ रंग के बड़े क़द-काठी के लोग होते हैं.

एक रिसर्च स्कॉलर ने सीरियाई भाषा में पठान का अर्थ पतवार (Rudder) तो एक अन्य ने इसका मतलब किसी जलयान के पेंदे का शहतीर (Keel) बताया है. एक विचार ये भी है कि मुस्लिम शासन काल में ये लोग सबसे पहले पटना में आबाद हुए, इसी वजह से इन्हें पठान कहा गया. ऐसा मानना है प्रसिद्ध इतिहासकार “फ़रिश्ता” का, जो पूरी तरह स्वीकार्य नहीं है.  ऐतिहासिक रूप से पठानों को उग्र सेनानियों के रूप में जाना जाता है. फिल्मों से लेकर साहित्य तक, पठानों की जांबाज़ी के क़िस्सों से भरे पड़े हैं. उन पर भरोसा करें तो पठान एक बहादुर, स्वाभिमानी, निडर, रुढ़िवादी और पैदाइशी जंगजू क़ौम है.

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भारत में पठानों का इतिहास

प्रोफेसर सैयद अली नदीम रज़वी के मुताबिक, भारत में अफग़ानों का आने-जाने का सिलसिला बेहद पुराना है. तिजारत या व्यापार के लिए अफग़ान भारत में आते रहते थे, इसी बीच कुछ अफग़ान यहां बस गए. रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी 'काबुलीवाला' से भी इस बात को समझा जा सकता है. वहीं अलग-अलग सैन्य बलों के साथ भी पठान भारत आए. भारत में लंबे समय तक मुसलमानों का शासन रहा, इसमें पठानों का राज भी शामिल है.

भारत में पठानों का राज मुगल शासन से पहले था. भारत में मुख्य रूप से लोदी वंश से इनकी शुरुआत कही जाती है. लोदी वंश अफग़ान लोगों की पश्तून जाति से बना था. इस वंश ने दिल्ली के सल्तनत पर उसके अंतिम चरण में शासन किया. इन्होंने 1451 से 1526 तक शासन किया. दिल्ली का प्रथम अफ़गान शासक परिवार लोदियों का था. वे एक अफ़गान कबीले के थे. इस वंश में बहलोल लोदी, सिकंदर लोदी और इब्राहिम लोदी प्रमुख शासक रहे. हालांकि इससे पहले ख़िलजी वंश को भी पठानों का राज कहा जा सकता है.

Bahlul Lodi

ख़िलजी वंश मध्यकालीन भारत का एक राजवंश था. इसने दिल्ली की सत्ता पर 1290-1320 तक राज किया. ख़िलजी क़बीला लंबे समय से अफ़ग़ानिस्तान में बसा हुआ था, लेकिन अपने पूर्ववर्ती गुलाम वंश की तरह यह राजवंश भी मूलत तुर्किस्तान का था. जलालुद्दीन ख़िलजी ने ख़िलजी वंश की स्थापना की थी. दिल्ली के ख़िलजी सुल्तानों में अलाउद्दीन ख़िलजी (1296-1316 ई.) सबसे प्रसिद्ध और योग्य शासक था.

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सूर वंश एक अफ़ग़ान वंश था, जिसने उत्तरी भारत पर 1540 से 1555 तक शासन किया. इसके संस्थापक शेरशाह अफग़ानों की सूर जाति का था. जब मुग़ल वंश के संस्थापक बाबर ने लोदी शासकों को पराजित किया, तो शेरशाह ने अफ़ग़ान साम्राज्य के बिहार व बंगाल क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया. इस दौरान सूरी परिवार ने बाबर द्वारा स्थापित मुग़ल सल्तनत को भारत से बेदख़ल कर दिया और ईरान में शरण मांगने पर मजबूर कर दिया. बाद में मुग़ल बादशाह हुमायूँ को चौसा (1539) और कन्नौज (1540) के युद्धों में हराया. मुग़लों के राज में थोड़े वक्त सूर वंश का शासन रहा. यह उत्तरी भारत का अंतिम अफ़ग़ान शासक वंश था.

भारतीय इतिहास के दमदार पठान 

इस क़ौम की बहादुरी के कई किस्से भारतीय इतिहास का हिस्सा हैं. पहला नाम जो सुनहरे लफ़्ज़ों में दर्ज है, वह अज़ीमुल्ला खां का है, जिन्हें 1857 की क्रांति का महानायक  कहा जाता है. “कानपुर का इतिहास” के दोनों लेखक लक्ष्मी चंद्र त्रिपाठी और नारायण प्रसाद अरोड़ा के अलावा विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर) ने भी इसे स्वीकार किया है. “कानपुर का इतिहास” के मुताबिक़, “1857 की क्रांति का सारा श्रेय अज़ीमुल्ला खां को था और जो भी साक्ष्य मैं उपलब्ध कर सका हूँ उनके अनुसार यदि अज़ीमुल्ला खां इस देश में न जन्मे होते तो 1857 की क्रांति शायद ही होती और अगर होती तो उसका रूप क्या होता, कहना कठिन है.”

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Ashfaqulla Khan

लक्ष्मीबाई का तोपची भी था पठान 

लक्ष्मीबाई की शोहरत का एक प्रमुख पक्ष उनके प्रधान तोपची गौस खां की देशभक्ति, अचूक निशानेबाज़ी और उनकी बुद्धिमता से जुड़ा है. गौस खां के पराक्रम और बलिदान की असंख्य कहानियां, किंवदंतियों के रूप में बुंदेलखंड में प्रचलित हैं. वहां लक्ष्मीबाई के बाद जो नाम बच्च-बच्चे की ज़ुबान पर आता है, वो गौस खां का ही है.

अशफ़ाकुल्लाह खां से लेकर अब्दुल ग़फ़्फ़ार खां तक

इसके अलावा प्रमुखता से लिया जाने वाला एक और नाम काकोरी के अमर शहीद अशफ़ाकुल्लाह खां का है. वह पंडित राम प्रसाद बिस्मिल्ल के परम सहयोगी और इष्ट मित्र थे. दिसंबर 1927 में फांसी का फंदा गले में पहनते हुए अशफ़ाक ने कहा था, “ क्या मेरे लिए इससे बढ़कर कोई इज़्ज़त हो सकती है कि मैं सबसे पहला और अव्वल मुसलमान हूँ, जो आजादीय वतन की ख़ातिर फांसी पा रहा हूँ. सीमांत गांधी के नाम से प्रसिद्ध तथा महात्मा गांधी के प्रमुख सहयोगी खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खां का नाम भी हमारे स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख नाम है. उनके बिना हमारी आज़ादी का इतिहास अधूरा है. 

Mahatma Gandhi and Khan Abdul Gaffar Khan

आजादी से पहले थी पठान रेजिमेंट

अपनी ज़ंगी रवैए की वजह से ही इन लोगों ने मुस्लिम सेनाओं में शामिल होकर अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया. पाकिस्तान में पठानों का एक सैन्य दल भी था, ये बंटवारे से पहले ब्रिटिश भारतीय सेना में पठान रेजिमेंट से जानी जाती थी. तारीख़ गवाह है कि पठानों ने कभी किसी ग़ैर क़ौम चाहे वह अंग्रेज हों, अमरीकी या रूसी.. किसी की गुलामी को कबूल नहीं किया और न ही कभी अपनी रवायत से कोई समझौता किया.

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खान और पठान में क्या कनेक्शन?

आम लोगों में सुन्नी मुस्लिम की इस क़ौम को ‘खान’ का पर्याय माना जाता है. हालांकि, खान शब्द असल में मुगलों का इजाद किया हुआ है. पहले तुर्की भाषा में ‘खान’ बादशाह को कहते थे. हल्के-हल्के छोटे बादशाह और फिर सरदार भी इस शब्द का प्रयोग करने लगे. मुग़ल बादशाहों ने ‘खान’, ‘खाने जहां’, ‘खाने वाला शान’, ‘खाने आज़म’ और इनसे भी बढ़कर ‘खान खाना’ जैसे शब्द बतौर ख़िताब इस्तेमाल किए. कुछ वक़्त बाद अंग्रेजों को भी कुलीन वर्ग को सम्मानित करने के लिए खान से भी आगे बढ़कर ‘खान साहब’ और ‘खान बहादुर’ जैसे शब्द ईजाद करने पड़े. खान या पठान बहुत से कबीलों में बंटे हुए हैं, जैसे ख़िलजी, सूरी, लोधी, नूहानी, नियाज़ी, काकड़, बंगश, उचकज़ई, यूसुफजई, आफ़रीदी, खैबरी आदि.

वर्तमान में भारत और पठान

पठान मुसलमानों में तीसरे दर्जे की क़ौम है. भारत में पठान अब एक पूरी तरह रची बसी कौम है, लेकिन रामपुर पठानों का इलाका माना जाता है और ये रामपुरी पठान के नाम से जाने जाते हैं. यहां के पठानों में समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां एक बड़ा नाम है. भारत में चर्चित पठानों की बात की जाए सबसे पहला नाम शाहरुख खान का आता है. शाहरुख के पिता मीर ताज मोहम्मद खान पेशावर (अब पाकिस्तान में) के पश्तून खानदान से थे और शाहरुख के दादा अफगानिस्तान से थे. मीर ताज मोहम्मद खान बंटवारे से पहले भारत आए थे. हालांकि सलमान खान और आमिर खान को भी पश्तून बताया जाता है.

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