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अंग्रेजों की बनाई वो रेजिमेंट, जिसने ब्रिटिश शासन को ही चटाई थी धूल, आज भी है भारत की शान

भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट दुश्मन की सेना को बर्बाद करती है और अपनी बाकी इन्फेंट्री यूनिट के लिए रास्ता बनाती है. इसलिए आर्टिलरी को गॉड ऑफ वॉर के नाम से भी जाना जाता है. इसकी शुरुआत ब्रिटिश भारतीय सेना की रॉयल इंडियन आर्टिलरी के रूप में हुई थी.

बोफोर्स तोप से गोलाबारी करते जवान (फोटो - एएफपी) बोफोर्स तोप से गोलाबारी करते जवान (फोटो - एएफपी)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 7:22 PM IST

आर्टिलरी रेजिमेंट भारतीय सेना का एक महत्वूपर्ण हिस्सा माना जाता है. सेना के विशेषज्ञों के मुताबिक 2.5 इंच की आर्टिलरी गन से इस इस रेजिमेंट की शुरुआत हुई और आज इसके पास अब दुनिया के आधुनिकतम हथियार हैं. आर्टिलरी रेजिमेंट भारतीय सेना की एक लड़ाकू शाखा है, जो भारतीय सेना के सभी जमीनी अभियानों के दौरान उसे भारी गोलाबारी प्रदान 
करती है. 

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रेजिमेंट ऑफ आर्टिलरी में हर एक जवान जो गन को फायर करने में मदद देता है, उसको गनर कहा जाता है. चाहे वह  जवान हो जो एक्चुअली गन को फायर कर रहा है, या वो जवान जो गन को एक जगह से दूसरी जगह  गाड़ी के मदद से ले जाने में मदद कर रहा हो. 

दुश्मन सेना को बर्बाद कर देती है आर्टिलरी रेजिमेंट
भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट दुश्मन की सेना को बर्बाद करती है और अपनी बाकी इन्फेंट्री यूनिट के लिए रास्ता बनाती है. इसलिए सैन्य इतिहास में कई दशकों तक आर्टिलरी को एक निर्णायक हथियार के रूप में जाना जाता रहा है. आर्टिलरी को गॉड ऑफ वॉर के नाम से भी जाना जाता है. इसकी शुरुआत ब्रिटिश भारतीय सेना की रॉयल इंडियन आर्टिलरी के रूप में हुई, जिसे आजादी के बाद इंडियन आर्मी की आर्टिलरी रेजिमेंट कहा गया.

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रोचक है गनर्स डे का किस्सा
गनर्स दिवस हर साल 28 सितंबर को मनाया जाता है. यह भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है. 28 सितंबर 1827 को 5 (बॉम्बे) माउंटेन बैटरी यानी की भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट की पहली इकाई का गठन किया गया था. यह उस समय बॉम्बे फुट आर्टिलरी की गोलंदाज बटालियन की 8वीं कंपनी के रूप में स्थापित की गई थी. चूंकि यह बटालियन गोलंदाजों की थी. यही कारण है कि इसी यूनिट के स्थापना दिवस को भारतीय सेना ने अपनी पहली आर्टिलरी रेजिमेंट बताया. 

अंग्रेजों के तोपखाने में सहयकों की बटालियन से शुरू हुई रेजिमेंट की कहानी 
अब बात आती है गोलंदाज की. गोलंदाज बटालियन से जुड़ी आर्टिलरी कंपनी की स्थापना दिवस को ही भारतीय सेना अपनी पहली अर्टिलरी रेजिमेंट क्यों मानता है? इसके पीछे भी एक कहानी है.  शुरुआती दौर में किसी भी सेना की शक्ति उसके तोपखाने से परिभाषित होती थी. सेना का तोपखाना काफी महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करता था. उस समय अंग्रेजों के जहाजों में बड़े-बड़े तोप लगे होते थे. शुरुआत में जब अंग्रेज भारत आए तो जहाजों से तोपों को खोलकर जमीनी अभियानों में इस्तेमाल करने लगे.

अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों की बनाई थी अलग गोलंदाज यूनिट
1668 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी दो तोपखाने की कंपनियां बॉम्बे में बनाई. इसके बाद दूसरे प्रेसीडेंसी में भी इसी तरह तोपखानों की कंपनियां गठित की गई. अंग्रेजी सेना के लिए ये तोपखाने इतने महत्वपूर्ण थे कि अंग्रेजों ने तोपखाने में भारतीय सैनिकों को शामिल करने की अनुमति नहीं दी. हां, तोपखानों में सहायकों के रूप में भारतीय कर्मियों को रखा गया. तोपखानों में काम करने वाले इन भारतीय सहायकों को ही गोलंदाज कहा जाता था.  

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गोलंदाज बटालियन की आगे बनी भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट
ब्रिटिश भारतीय सेना की रॉयल इंडियन आर्टिलरी (आरआईए) की स्थापना 28 सितंबर 1827 को बॉम्बे आर्मी के एक भाग के रूप में की गई थी , जो बॉम्बे प्रेसीडेंसी की एक प्रेसीडेंसी सेना थी. बाद में इसका नाम बदलकर 5 (बॉम्बे) माउंटेन बैटरी कर दिया गया. इसी में बॉम्बे फुट आर्टिलरी के गोलंदाज बटालियन की 8वीं कंपनी की स्थापना हुई. ये गोलंदाज सिर्फ भारतीय सैनिक थे, जो अंग्रेज तोपची के सहायक होते थे या फिर तोपखाने का दूसरा काम करते थे. 

1857 के विद्रोह के बाद भी भंग नहीं हुई थी गोलंदाजों की बटालियन
1857 का भारतीय विद्रोह 10 मई 1857 को मेरठ में भड़क उठा. इसमें बंगाल आर्टिलरी के कई भारतीय सैनिक विद्रोह में शामिल थे और तब अस्तित्व में मौजूद पैदल तोपखाने की तीन बटालियनों को 1862 में भंग कर दिया गया था.इसके बाद, कुछ को छोड़कर सभी भारतीय तोपखाने इकाइयों को भंग कर दिया गया. सिर्फ वही तोपखाने की इकाईयां बची रह गई, जो गोलअंदाजों की थी. इनका इस्तेमाल उस समय ट्रेनों को चलाने में या अन्य कामों में किया जाता था. इनमें ही एक थी गोलंदाजों की 5 (बॉम्बे) माउंटेन बैटरी, जो आगे चलकर रॉयल इंडियन आर्मी और भविष्य में भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट बनी.  

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भारत में मुगलों को जाता है तोपखाना के शुरुआत का श्रेय
वैसे तोपखानों के इस्तेमाल की बात की जाए तो मुगल सम्राट बाबर को भारत में तोपखाने की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है. 1526 में पानीपत की लड़ाई में  उन्होंने दिल्ली सल्तनत के शासक इब्राहिम लोदी की बहुत बड़ी सेना को हराने के लिए निर्णायक रूप से बारूदी शस्त्रों और जमीनीं तोपखाने का इस्तेमाल किया.  हालांकि, इससे पहले 1368 में अदोनी की लड़ाई में बहमनी राजाओं और पंद्रहवीं शताब्दी में गुजरात के राजा मोहम्मद शाह द्वारा तोपों के पहले इस्तेमाल के सबूत भी मिले हैं. 

आर्टिलरी रेजिमेंट सेना की दूसरी सबसे बड़ी शाखा 
आर्टिलरी रेजिमेंट भारतीय सेना की दूसरी सबसे बड़ी शाखा है. इसका काम जमीन पर अभियानों के समय पर सेना को मारक क्षमता देना है. इसे दो हिस्सों में बांटा गया है. पहले हिस्से में घातक हथियार जैसे कि मिसाइल, रॉकेट्स, मोर्टार, तोप, बंदूक आदि शामिल हैं. वहीं दूसरे में ड्रोन, रडार, सर्विलांस सिस्टम होता है. 

इस रेजिमेंट से जुड़ी है कई परंपराएं 
आर्टिलरी यूनिट्स की अपनी तोपों से जुड़ी कई परंपराएं हैं. हर दशहरा पर सभी जवान अपनी तोपों को सर्वोच्च सम्मान देते हुए उनकी पूजा अर्चना करते हैं कई यूनिट्स रक्षा बंधन के त्यौहार पर अपनी तोपों को रक्षा सूत्र भी मानते हैं जो कि इस बात को साबित करती है कि यह तोप अपने जवान का और जवान अपनी स्प का हर हालत में मान रखेगा.

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इस रेजिमेंट ने भारतीय सेना को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ दिए हैं. जिनका फौज को योगदान अभूतपूर्व रहा जनरल पीपी कुमार मंगलव जनरल ओ पी मल्होत्रा जनरल एस एफ रोड्रिग जनरल एस पद्म नावन जनरल दीपक कपूर आजादी के तुरंत बाद रेजिमेंट ऑफ आर्टिलरी की यूनिट सिख, जाट, डोगरा, राजपूत, अहिर, गुरखा, मराठा और दक्षिण भारतीय यूनिट्स के आधार पर थी. पर आज ज्यादातर आर्टिलरी रेजीमेंट में देश के उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम और लक्षद्वीप अंडमान एंड निकोबार से गनर्स शामिल होते हैं.

देश ही नहीं विदेशों में भी कमाया है नाम
रेजिमेंट ऑफ आर्टिलरी ना सिर्फ भारतीय सेना की शान है बल्कि अंतरराष्ट्रीय सेनाओं की भी मदद कर चुकी है श्रीलंका में भारत की शांति सेना का हिस्सा बन 17 आर्टिलरी रेजिमेंट ने हिस्सा लिया और जाफना पर कब्जा किया. इसके साथ ही कोंगो सियरा लियोन और सोमालिया में भी यूनाइटेड नेशंस की पीस कीपिंग फोर्स का हिस्सा रही. 1988 में मलडी में तख्ता पलतू काम करने वाली फौज का भी यह हिस्सा रही रेजिमेंट ऑफ आर्टिलरी के नाम आज एक विक्टोरिया क्रॉस, एक अशोक चक्,र सात महावीर चक्र,  95 वीर चक्र, 12 युद्ध सेवा मेडल, 77 शौर्य चक्र और 227 सेना मेडल है.

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