
जंग बहादुर सिंह की उम्र 102 साल हो गई है. उन्हें हृदय की बीमारी है, फिर भी वो खुद को फिट रखते हुए व्यास शैली में गाते हैं तो लोग मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते हैं. बिहार के सिवान में जन्मे जंगबहादुर को भले ही तमाम भोजपुरी गायकों जितनी ख्याति नहीं मिली, लेकिन अब इस उम्र में उनकी आवाज को कई प्लेटफॉर्म में पहचान मिल रही है. सोशल मीडिया के दौर ने उन्हें हिट बना दिया है. कई मीडिया वेबसाइट्स उनके बारे में लिखने लगी हैं.
जंग बहादुर की पोती खुशबू सिंह ने aajtak.in से बातचीत में उनके बारे में विस्तार से बताया. बता दें कि जंग बहादुर का जन्म 10 दिसंबर 1920 को सिवान, बिहार में हुआ था. पढ़ाई लिखाई बहुत ज्यादा हो नहीं पाई, तो फिर बाद में जीवनयापन के लिए पं.बंगाल के आसनसोल में सेनरेले साइकिल करखाने में नौकरी करने लगे.
लेकिन कहते हैं न कि प्रतिभा कभी छुपती नहीं है. वही हुआ भी, वो नौकरी करते हुए भोजपुरी के व्यास शैली में गायन किया करते थे. धीरे धीरे बिहार के झरिया, धनबाद, दुर्गापुर, संबलपुर, रांची आदि क्षेत्रों में उनके गायन के चर्चे होने लगे. इससे उन्हें भोजपुरी क्षेत्र के लोग जानने लगे.
उनके गायन की खूबसूरत बात यह रही कि उनका आलाप और आवाज इस कदर बुलंद और सुरों में पगी रही कि वो जब गाते तो बिना माइक ही आवाज गूंज जाती. लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहते, उनसे और गानों की फरमाइश होती. आधी रात के बाद तो उनसे मुकाबला करने वाला कोई होता ही नहीं था. फिर भोर में गाये जाने वाले राग भैरवी में तो वो मंझे थे. बस ये था कि बिहार के बाहर उन्हें ज्यादा ख्याति नहीं मिल पाई क्योंकि उस जमाने में प्रचार-प्रसार के साधन सीमित थे.
जाना पड़ा था जेल
खुशबू कहती हैं कि मेरे दादा जी की 102 साल में आवाज जब ऐसी है तो सोचिये जब वह 22-23 साल के होगें तब क्या आवाज रही होगी. इसका उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ा था. मैंने उनके बारे में जाना है कि जब वो अंग्रेजों के ख़िलाफ़ देश भक्ति गीत गाते थे तो उनके दिलों में सांप लोट जाते थे. उनके गीतों को लेकर ही अंग्रेज अफसर उनसे दुराव रखने लगे थे और देश भक्ति गीत गाने की वजह से ही उन्हें जेल तक जाना पड़ा.
सुप्रसिद्ध भोजपुरी कवि व फिल्म समीक्षक मनोज भावुक ने आजतक से बातचीत में कहा कि बाबू जंग बहादुर सिंह के समकालीन रहे भोजपुरी गायक व्यास नथुनी सिंह, वीरेन्द्र सिंह, वीरेन्द्र सिंह धुरान, गायत्री ठाकुर आज हमलोगों के बीच नहीं हैं. संगीत प्रेमी व संगीत मर्मज्ञ बताते हैं कि इन सभी गायक कलाकारों ने भी जंग बहादुर सिंह का लोहा माना था और इज्जत दी थी. आज हम खुशकिस्मत हैं कि जंग बहादुर सिंह को हमने सुना और आज भी सुन पा रहे हैं. परिवार के लोग जानते हैं कि जंगबहादुर सिंह ने अपने गायन कला का व्यवसाय नहीं किया. उनके मेहनताना के रूप में श्रोताओं-दर्शकों की तालियां व वाहवाही भर थी. खैर, अब तो वो 102 वर्ष के हो गए. अब उन्हें उनके हिस्से का वाजिब हक व सम्मान तो मिलना ही चाहिए. मैं हर मंच से उनके लिए आवाज उठाता हूं.
पूर्व कोच भारतीय हॉकी टीम हरेन्द्र सिंह भी उनके फैन हैं, उन्होंने कई मंचों से कहा भी कि मैं उन खुशनसीब लोगों में से हूँ जिन्होंने जंग बहादुर सिंह को लाइव सुना है. बचपन में मैंने इनको अपने गांव बंगरा, छपरा में चैता गाते हुए सुना है. गायिकी के साथ उनके झाल बजाने की कला का मुरीद हूं मै.
वहीं प्रख्यात लोक गायक भरत शर्मा व्यास भी उनकी गायिकी तारीफ करते नहीं थकते. वो कहते हैं कि भोजपुरी भाषा की सेवा करने वाले व्यास शैली के इस महान गायक को सरकारी स्तर पर सम्मानित किया जाना चाहिए.
सुप्रसिद्ध लोक गायक मुन्ना सिंह व्यास जंग बहादुर सिंह के लिए पद्म सम्मान की मांग करते हैं. वो कहते हैं कि झारखंड-बंगाल-बिहार में उनका नाम था और पंद्रह-बीस वर्षों तक एक क्षत्र राज्य था. सरकार से मेरी गुजारिश है कि ऐसी प्रतिभा को पद्मश्री देकर सम्मानित किया जाना चाहिए.
पहलवानी छोड़ी लेकिन गायन नहीं छोड़ा
'जाये के अकेल बा, झमेल कवना काम के' इसे अपनी जिंदगी की फिलॉस्फी मानने वाले इस गायक ने जिंदगी के हर पड़ाव पर संघर्ष किया. दो बच्चे आकस्मिक मौत का शिकार हुए, वहीं एक बेटे को कैंसर हो गया. हर तरफ से मुसीबतों ने घेरकर उन्हें जब बेजार कर दिया तब भी ये गायन ही जो उनका हौसला बढ़ाता रहा. आज भी वो अपनी धुन के पक्के और बजरंग बली के भक्त जंग बहादुर का सरस्वती ने हमेशा साथ दिया.
कभी उनका शौक पहलवानी था मगर उनकी प्रतिभा ने उन्हें गायकी का महाबली बना दिया था. रामायण-महाभारत के पात्रों भीष्म, कर्ण, कुंती, द्रौपदी, सीता, भरत, राम व देश-भक्तों आजाद, भगत, सुभाष, हमीद, गांधी आदि को गाकर भोजपुरिया जन-मानस में लोकप्रिय हो गए जंग बहादुर सिंह. तब ऐसा दौर था कि जिस कार्यक्रम में नहीं भी जाते थे जंग बहादुर, वहां के आयोजक भीड़ जुटाने के लिए पोस्टर-बैनर पर इनकी तस्वीर लगाते थे. पहलवानी का जोर पूरी तरह से संगीत में उतर गया.