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National Forest Martyrs Day 2022: राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के पीछे है नरसंहार का ये दर्दनाक इतिहास

National Forest Martyrs Day 2022, History of Khejarli Massacre: भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था. 11 सितंबर को जोधपुर में खेजड़ली नरसंहार हुआ था जिसमें 350 से ज्यादा लोगों मौत के घाट उतार दिया था.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:55 AM IST

हर साल 11 सितंबर को देश में राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाया जाता है. यह दिन देशभर में तैनात उन कर्मचारियों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने भारत में वन्यजीवों, जंगलों और जंगलों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. इस दिन वन रक्षकों, कर्मचारियों और अधिकारियों के बलिदान को याद करने के लिए मनाया जाता है. भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस (National Forest Martyrs Day) के रूप में मनाए जाने का फैसला किया था.

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ऐसे बहुत से समुदाय और गांव हैं, जहां आजीविका का एकमात्र स्रोत जंगल है. साथ ही, लोग अपने परिवार के रूप में वनस्पतियों और जीवों की रक्षा करते हैं. कई तो अपनी जान जोखिम में डालकर उसकी रक्षा करते हैं; यही कारण है कि इस दिन को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनके योगदान की सराहना करने के लिए मनाया जाता है.

11 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय वन शहीद दिवस?

दरअसल, 11 सितंबर 1730 में  देश में खेजड़ली नरसंहार हुआ था. उस समय जोधपुर के किले का निर्माण चल रहा था. चूने के पत्थरों को जलाने के लिए लकड़ियों की जरूरत थी, इसलिए दीवान गिरधर दास भंडारी ने अपने सैनिकों को अधिक पेड़ वाले गांव खेजड़ली से लकड़ियां लाने का आदेश दिया. जब सैनिक पेड़ काटने आगे बढ़े तो अमृता देवी बिश्नोई नाम की एक महिला के नेतृत्व में ग्रामीणों ने अपने पेड़ों को काटने का विरोध किया. अमृता ने कहा कि खेजड़ी के पेड़ बिश्नोइयों के लिए पवित्र हैं. उन्होंने अपनी आस्था की वजह से पेड़ों को काटने से मना कर दिया. तब अमृता देवी ने पवित्र खेजड़ली के पेड़ के बजाय अपना सिर कटवा दिया. इस हरकत से गुस्साए गांव के लोगों ने इसका विरोध किया तो सैनिकों ने अमृता के बच्चों समेत 350 से ज्यादा लोगों को मार डाला.

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जब इस नरसंहार की सूचना राजा तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत अपने सैनिकों को पीछे हटने के लिए कहा और बिश्नोई समुदाय के लोगों से माफी मांगी. इसके अलावा राजा महाराजा अभय सिंह ने एक घोषणा की कि बिश्नोई गांवों के आसपास के क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई और जानवरों की हत्या नहीं होगी.

साल 2013 में भारत सरकार, पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 11 सितंबर को घोषणा किए जाने के बाद, यह दिन आधिकारिक रूप से अस्तित्व में आया और राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.

कैसे मनाते हैं राष्ट्रीय वन शहीद दिवस?

इस विशेष दिन पर, देश में कई शैक्षणिक संस्थाएं और संस्थान ऐसे कार्यक्रम या कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिनके माध्यम से लोगों को बड़े पैमाने पर जंगलों, पेड़ों और पर्यावरण की रक्षा के बारे में जानकारी दी जाती है. अधिक से अधिक बच्चों और युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए हर साल कई प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं. ताकि, वे जंगलों को बचाने के बारे में जागरुक हो सकें.

 

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