
हर किसी एथलीट का सपना होता है कि वो ओलंपिक में एक मेडल जरूर जीते. इसके लिए एथलीट्स कई साल तक मेहनत भी करते हैं. लेकिन, जिस दिन मैच या गेम होता है, उस दिन की स्थिति पर निर्भर करता है कि आखिर उन्हें मेडल पॉडियम में जाने का मौका मिलेगा या नहीं. उस दिन के सितारे एथलीट की हेल्थ, मानसिक स्थिति और आपकी मेहनत कई चीजों पर निर्भर करते हैं. लेकिन, महिला एथलीट्स के लिए इन सभी चुनौतियों के साथ एक और चुनौती है और वो है पीरियड्स.
ओलंपिक इतिहास में कई ऐसी महिला एथलीट्स रही हैं, जो ओलंपिक में पीरियड्स की वजह से उस दिन अपना 100 पर्सेंट देने में सफल नहीं रहीं. पेरिस ओलंपिक की बात करें तो इस साल भी भारत की ही दो महिला एथलीट्स पीरियड्स की वजह से मेडल तक नहीं पहुंच पाईं. इन एथलीट में विनेश फोगाट और मीराबाई चानू का नाम शामिल है. ऐसे में जानते हैं कि आखिर महिला एथलीट्स को इस दौरान किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और कैसे वो पीरियड्स के लिए तैयार करती हैं...
विनेश फोगाट के वजन बढ़ने कारण...
विनेश फोगाट के 100 ग्राम ज्यादा वजन होने के पीछे पीरियड्स भी एक अहम वजह है. जब विनेश का मामला कोर्ट में गया तो अपनी अपील में विनेश ने एक मेडिकल सर्टिफिकेट देकर बताया कि 8 अगस्त को वो पीरियड्स से पहले वाले फेज में थी. इससे शरीर के वजन पर असर पड़ता है. बता दें कि पीरियड्स आने से पपहले हॉर्मोनल चेंज की वजह से भी वजन बढ़ जाता है.
मीराबाई चानू नहीं दे पाईं अपना 100%
पेरिस ओलंपिक में इस बार टोक्यो ओलंपिक की रजत पदक विजेता सैखोम मीराबाई चानू भी मेडल नहीं जीत पाईं. महिलाओं की 49 किलोग्राम भारोत्तोलन प्रतियोगिता में वो मेडल से एक कदम चूक गईं. उन्होंने बाद में बताया कि उन्हें उस दिन पीरियड्स का तीसरा दिन था और इस वजह से उन्हें मंच पर कमजोरी महसूस हुई. इस वजह से मीराबाई चानू अपना 100 पर्सेंट देने में सफल नहीं रहीं. बता दें कि पीरियड्स में पहला, दूसरा कई लोंगो के लिए तीसरा दिन काफी मुश्किल और दर्द से भरा होता है.
कई एथलीट्स ने शेयर की है आपबीती
इससे पहले चीन की स्विमर Fu Yuanhui ने इस टॉपिक पर अपनी राय दी थी. उन्होंने बताया था कि पीरियड्स को एक बहाना नहीं कह सकते, लेकिन वो रियो ओलंपिक में 4x100m medley रिले वुमन फाइनल में पीरियड्स की वजह से अच्छे से स्विमिंग नहीं कर पाईं और इस वजह से वो मेडल नहीं जीत पाईं. इनके अलावा भी कई एथलीट ने ये बात कबूली है कि पीरियड्स की वजह से परफॉर्मेंस पर असर पड़ा था.
क्या मुश्किलें होती हैं?
साल 2023 में हुए एक सर्वे में सामने आया था कि टोक्यो ओलंपिक या पैरालिंपिक के लिए प्रशिक्षण ले रहीं 195 ऑस्ट्रेलियाई महिला एथलीट में से करीब 66 फीसदी ने कबूला था कि पीरियड्स की वजह से उनके प्रदर्शन पर काफी असर पड़ता है और दर्द, सूजन, कम एनर्जी की शिकायत रहती है. वहीं, साल 2019 में पौलेंड में 45 महिला जिमनास्ट पर किए गए अध्ययन में सामने आया था कि 60% एथलीटों को हाइपरमेनोरेजिया था, ये उस वक्त होता है, जब महिलाओं को ज्यादा ब्लीडिंग होती है. ऐसे में महिलाओं का खेलना काफी मुश्किल होता है.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आस्था दयाल का कहना है, 'हर महिला को अपने पीरियड्स के साथ अलग अनुभव होता है. कुछ के लिए यह बिना किसी दिक्कत वाला होता है तो कुछ के लिए दर्दभरा होता है. ब्लीडिंग आदि क्वालिटी ऑफ लाइफ को प्रभावित करते हैं. साथ ही एथलीट्स के लिए ये उनके प्रदर्शन को अलग अलग तरीके से प्रभावित करता है.
कैसे रखती हैं ध्यान?
ऐसे में महिला एथलीट पीरियड्स साइकिल का खास ध्यान रखती हैं. इसके लिए महिलाएं कुछ खास ऐप का इस्तेमाल करती हैं और अपने साइकिल को ट्रैक करती हैं. ऐसे में वो पहले से इसके लिए तैयार रहती हैं. ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट Sam Quek ने बीबीसी को बताया था कि वे फोन में एक ऐप का इस्तेमाल करती हैं, जो हार्ट रेट, यूरिन कलर, स्लीपिंग टाइम का ध्यान रखती है. साथ ही Hormonix के जरिए भी हार्मोन चेंज आदि को ट्रैक किया जाता है और उसके हिसाब से तैयारी की जाती है.