"सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है." ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय क्रांतिकारियों को जोश से भर देने वाली भगत सिंह की ये लाइनें आज भी युवाओं के रोंगटे खड़े करने के काबिल हैं. क्रांतिकारी नेता भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले में एक सिख परिवार में हुआ था, जिसे अब पाकिस्तान का फैसलाबाद कहा जाता है. वह एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे जो स्वतंत्रता संग्राम में शामिल था, यही कारण था कि वह कम उम्र में ही भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की ओर आकर्षित हो गए थे.
उन्होंने असहयोग आंदोलन में महात्मा गांधी का समर्थन किया और जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) और ननकाना साहिब (1921) में निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा से प्रभावित हुए. भगत सिंह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए किसानों और मजदूरों को प्रोत्साहित करने के लिए साल 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की. वे उस संस्था के सचिव थे.
1928 में, सुखदेव, चंद्रशेखर आज़ाद और अन्य लोगों के साथ, उनके द्वारा हिंदुस्तान सोशलिस्ट एसोसिएशन (HSRA) की स्थापना भी की गई थी. भगत सिंह ने क्रांतिकारी लाला लाजपत राय की मौत का बदला भी लिया, जो एक बड़ी घटना साबित हुई और फिर आया 23 मार्च 1931 का दिन, जो आज भी भारत के इतिहास में अमर है. आज ही के दिन, 1931 में भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने देश की आज़ादी का सपना दिल में बसाकर मुस्कुराते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया था. आइए जानते हैं भरत सिंह के वो विचार जो आज भी युवाओं में जोश भर देते हैं.
शहीद भगत सिंह के अनमोल विचार-
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