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छात्र नेता के तौर पर सियासत में एंट्री, पिता की हत्या के बाद भारत में शरण, चार बार बांग्लादेश की PM रहीं शेख हसीना की कहानी

बांग्‍लादेश में भारी हिंसा के बाद पीएम शेख हसीना ने इस्‍तीफा दे दिया है. इससे पहले सेना प्रमुख वकार-उज-जमान हसीना को 45 मिनट के अंदर इस्‍तीफा देने के लिए अल्‍टीमेटम दिया था. पीएम शेख हसीना देश छोड़कर किसी सुरक्षित ठिकाने पर चली गई हैं. बताया जा रहा है कि वह भारत जा रही हैं. यह पहली बार नहीं है इससे पहले भी मुश्किलों में आने पर शेख हसीना भारत का रुख कर चुकी हैं.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 12:03 PM IST

बांग्लादेश में भीषण आगजनी और हिंसा के बीच हालात बेहद खराब हो गए हैं. इस बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को लेकर बड़ी खबर सामने आई है. ढाका ट्रिब्यून की खबर के मुताबिक, शेख हसीना ने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया है और सेना के विशेष हेलिकॉप्टर से भारत के लिए रवाना हो गई हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि शेख हसीना का राजनैतिक इतिहास क्या रहा है.

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शेख हसीने के पूरे परिवार की हत्या कर दी गई थी

शेख हसीना का जन्म 28 सितंबर 1947 को ढाका में हुआ था. उनके पिता बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान थे. हसीना अपने घर की सबसे बड़ी बेटी हैं. उनका शुरुआती जीवन ढाका में गुजरा है. एक छात्र नेता के रूप में उन्होंने राजनीति में कदम रखा था. शेख हसीना यूनिवर्सिटी ऑफ ढाका में भी स्टूडेंट पॉलिटिक्स में सक्रिय रहीं. लोगों से प्रशंसा मिलने के बाद हसीना ने अपने पिता की आवामी लीग के स्टूडेंट विंग को संभाला था. पांर्टी संभालने के बाद शेख हसीना बुरे दौर से गुजरीं जब उनके माता-पिता और 3 भाईयों की हत्या कर दी गई थी. यह बात साल 1975 की है. इस दौरान सेना ने बगावत कर दी थी और हसीना के परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. इस लड़ाई में हसीना के पिता-मां और 3 भाईयों की हत्या कर दी गई. लेकिन हसीना, उनके पति वाजिद मियां और छोटी बहन की जान बच गई थी.

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पिता की हत्या के बाद भारत में ली थी शरण

घरवालों के जाने के बाद शेख हसीना कुछ समय के लिए जर्मनी चली गईं थीं. शेख हसीना के भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अच्छे रिश्ते थे. जर्मनी के बाद इंदिरा गांधी ने शेख हसीना को भारत बुलाया और फिर वह कुछ सालों तक दिल्ली में रहीं. इसके बाद 1981 में शेख हसीना अपने वतन बांग्लादेश वापस लौंटी. बांग्लादेश जाने के बाद शेख हसीना से वापस अपनी पार्टी ज्वॉइन की और कार्यभार संभाला. अपने कार्यकाल में उन्होंने पार्टी में कई बदलाव किए. शेख हसीना ने 1968 में भौतिक विज्ञानी एम. ए. वाजेद मियां से शादी की थी. जिससे उनका एक बेटा सजीब वाजेद और बेटी साइमा वाजेद हैं.

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लागातार 4 बार प्रधानमंत्री बन चुकी हैं शेख हसीना

शेख हसीना वाजेद (Sheikh Hasina Wazed) जनवरी 2009 से बांग्लादेश का प्रधानमंत्री पद संभाले हुई थीं. इस बीच आ रही उनके इस्तीफे के खबरों से सब हैरान हैं. उन्होंने 1986 से 1990 तक, और 1991 से 1995 तक, बतौर विपक्ष की नेता काम किया. वह 1981 से अवामी लीग (AL) का नेतृत्व कर रही हैं. उन्होंने जून 1996 से जुलाई 2001 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया. 2009 में, उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली. 2014 में, उन्हें तीसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया. उन्होंने 2018 में फिर से जीत दर्ज की और चौथे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बनीं थीं.

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पहली बार कब प्रधानमंत्री बनीं शेख हसीना

शेख हसीना ने 1996 से 2001 तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में अपना पहला कार्यकाल पूरा किया और वह स्वतंत्रता के बाद से पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाली देश की पहली प्रधानमंत्री भी बनीं. इस कार्यकाल के दौरान, उन्होंने भारत सरकार के साथ गंगा नदी पर 30 साल के जल बंटवारे की संधि पर भी हस्ताक्षर किए थे.

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साल 2001 के आम चुनावों में शेख हसीना को सत्ता से बाहर होना पड़ा. लेकिन 2008 में वह प्रचंड बहुमत के साथ एक बार फिर बांग्लादेश की सत्ता में लौट आईं. वर्ष 2004 में हसीना की रैली में ग्रेनेड विस्फोट के जरिए उनकी हत्या का प्रयास हुआ, जिसमें वह बच गईं. 2009 में सत्ता में आने के तुरंत बाद, हसीना ने 1971 के युद्ध अपराध मामलों की सुनवाई के लिए एक ट्रिब्यूनल गठित किया. ट्रिब्यूनल ने विपक्ष के कुछ हाई-प्रोफाइल नेताओं को दोषी ठहराया, जिससे हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. 

शेख हसीना के नाम इतने अवॉर्ड

शेख हसीना अपने राजनैतिक कार्य़काल में कई अवॉर्ड अपने नाम कर चुकी हैं. साल 1998 में उन्हें मदर टेरेसा बाय ऑल इंडिया पीस काउंसिल का अवॉर्ड मिल चुका है. इसी साल उन्होंने एमके गांधी अवॉर्ड भी अपने नाम किया था. साल 2000 में इनके द पर्ल बद अवॉर्ड से नवाजा गया. इसके बाद साल 2014 में उन्हें महिला सशक्तिकरण और बालिका शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए यूनेस्को शांति वृक्ष पुरस्कार दिया गया. 2009 में उन्हें इंदिरा गांधी प्राइज मिला. इसके बाद साल 2015 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया गया. 

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