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सुसाइड रोकने के लिए 'वरदान' है ECT! लोग मानते हैं टैबू, एक्सपर्ट से जानें कैसे करती है काम?

अखबारों, टीवी और सोशल मीडिया पर आप अक्सर सुसाइड की खबरें पढ़ते होंगे. ऐसी खबरें किसी को भी परेशान कर देती हैं. है. जब कोई व्यक्ति सुसाइड करता है, उसके कई कारण हो सकते हैं. सबसे बड़ा कारण है व्यक्ति की मेंटल हेल्थ का ठीक ना होना. सुसाइड के मामलों को कम करने के लिए डॉक्टर्स ECT का इस्तेमाल करते हैं. आइए जानते हैं क्या है ECT और सुसाइड रोकने में कितनी कारगर है ये थेरिपी.

What is ECT What is ECT
हर्षि‍ता पाण्डेय
  • नई दिल्ली,
  • 11 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:26 PM IST

कोटा में एक साल में प्रतियोगी छात्रों की आत्महत्या के बढ़े मामलों ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है. जब कोई व्यक्ति सुसाइड करता है, उसके कई कारण हो सकते हैं. सबसे बड़ा कारण है व्यक्ति की मेंटल हेल्थ का ठीक ना होना. जब कोई व्यक्ति डिप्रेशन से जूझ रहा होता है तो उसमें ओवर थ‍िकिंग बढ़ जाती है. इसी अवस्था में सुसाइड के चांस बढ़ जाते हैं. हालांकि, अगर व्यक्ति की समय रहते काउंसलिंग की जाए और मेडिकल हेल्प की जाए तो व्यक्ति को सुसाइड के ख्यालों से बचाया जा सकता है. इसके अलावा, कई बार व्यक्ति किसी भी परेशानी के चलते आवेश में आकर सुसाइड कर लेता है. हालांकि, कई बार डिप्रेशन के केस में सुसाइड के ख्यालों को रोकने के लिए ECT कारगर साबति हो सकती है. आइए जानते हैं क्या है ECT और क्या सच में सुसाइड के मामलों को कम करने के लिए कारगर है ये थेरेपी. 

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क्या है ECT? 
ECT का अर्थ है इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (Electroconvulsive Therapy). इस थेरिपी के दौरान मरीज को एनेस्थीसिया (बेहोशी) देकर उसके दिमाग को हल्के करंट के झटके दिए जाते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान मरीज को हल्के दौरे पड़ सकते हैं. सुनने में ये बेहद दर्दनाक लग रहा है, लेकिन ECT के दौरान मरीज को 1 मिनट से भी कम समय के लिए दौरे पड़ते हैं और इसके फायदे अनगिनत होते हैं. 

टैबू के कारण नहीं हो पाती मदद? 
IHBAS दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि आज भी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों में चेतना के स्तर पर तमाम टैबू हैं. जागरूकता की कमी से लोग कई बार लोग खराब मेंटल हेल्थ के सिग्नल देखकर भी उन्हें नहीं समझ पाते. अगर समझ भी गए तो मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराते हैं. साथ ही मेंटल हेल्थ की दवाओं को लेकर भी भ्रांतियां हैं. सबसे ज्यादा टैबू ECT को लेकर हैं. वहीं, इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सा के क्षेत्र में एक ऐसा अस्त्र है जो कि आत्महत्या रोकथाम में सबसे ज्यादा मददगार साबित हो सकती है. इसके साइड इफेक्ट भी न के बराबर हैं. 

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इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी कितनी कारगर?
ncbi में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अवसादग्रस्त मरीजों में सुसाइड के ख्यालों को रोकने में ईसीटी सबसे तेज मदद करती है. रिपोर्ट की मानें तो जिन मरीजों में सुसाइड का रिस्क ज्यादा होता है, उन्हें समय से ही ECT देना चाहिए ताकि उन्हें समय रहते ही ठीक किया जा सके. बता दें, इस रिपोर्ट के मुताबिक, एंटीडिप्रेसेंट दवाएं आज भावात्मक समस्याओं के इलाज के लिए प्रमुखता से इस्तेमाल की जाती हैं, लेकिन उन्हें आमतौर पर अवसाद और सुसाइड के ख्यालों से राहत देने में ईसीटी की तुलना में कम प्रभावी माना जाता है. 

यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट में हुई एक स्टडी के मुताबिक, गंभीर अवसाद या किसी और मानसिक समस्या से जूझ रहे जिन लोगों को ईसीटी दी गई, उनके अस्पताल छोड़ने के बाद पहले 90 दिनों में आत्महत्या की संभावना उन लोगों के मुकाबले कम थी, जिन्हें ईसीटी नहीं दी गई थी. हालांकि, एक साल के अंदर ईसीटी का असर मरीजों पर कम हुआ. साल के अंत में, दोनों ही ग्रुप, जिन्हें ईसीटी मिली थी और जिन्हें ईसीटी नहीं मिली थी, में सुसाइड के मामले एक समान ही थे. हालांकि, ऑल कॉल मोरैलिटी, मतलब किसी भी कारण से मृत्यु, सीटी समूह में अभी भी कम थी. 

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कैसे काम करती है ECT? 
डॉ ओमप्रकाश बताते हैं कि ईसीटी कराने से पहले, डॉक्टर मरीज को मांसपेशियों को आराम देने वाली दवा देते हैं और आपको सामान्य एनेस्थीसिया देते हैं, जिससे आप उपचार के वक्त सोते रहते हैं. डॉक्टरों का मानना ​​है कि ईसीटी आपके मस्तिष्क में रसायनों के काम करने के तरीके को बदल देता है. इन रसायनों में बदलाव से आपकी मेंटल हेल्थ पर पॉजिटिव असर पड़ता है. ईसीटी थेरिपी लगभग 6 से 12 सत्रों के छोटे कोर्स में दी जाती है. ईसीटी आमतौर पर सप्ताह में दो बार दी जाती है. लक्षणों को दोबारा आने से रोकने के लिए कभी-कभी इसे हर 2 सप्ताह में एक बार या महीने में एक बार दिया जाता है.

चौंकाने वाले हैं आंकड़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो हर साल दुनियाभर में 700,000 से ज्यादा लोग आत्महत्या करते हैं. किसी के भी आत्महत्या करने से उसके आसपास वालों के मन पर भी गहरा असर पड़ता है. 10 सितंबर से 10 अक्टूबर को सुसाइड प्रिवेंशन मंथ के तौर पर मनाया जाता है. इस दौरान आत्महत्या के कारकों और बचाव के तरीकों पर पूरी दुनिया पर विचार और विश्लेषण के साथ चर्चाएं की जाती हैं. 

WHO द्वारा जारी किए गए आंकड़े

WHO के मुताबिक, साल 2019 में 15 से 29 साल के लोगों के बीच मौत का चौथा प्रमुख कारण सुसाइड था. 77% वैश्विक आत्महत्याएं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं. आज के वक्त में सुसाइड एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है. हालांकि, इससे निपटा जा सकता है. सुसाइड से निपटने के लिए सबसे जरूरी है कि इसके बारे में बात की जाए. 

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डिप्रेशन से जूझ रहे बच्चों में हो सकते हैं ये लक्षण 

  • बच्चे की नींद या भूख में बदलाव
  • आत्म-घृणा या आत्म-दोष की अभ‍िव्यक्ति
  • मौत या आत्महत्या के बारे में बात करना या इंटरनेट पर सर्च करना 
  • उनकी बातचीत, लेखन या सोशल मीडिया पोस्ट में ऐसी घटनाओं के प्रति अत‍ि आकर्षण
  • आत्महत्या के तरीकों के बारे में अनुसंधान या चर्चा में संलग्न हो सकते हैं
  • उनके खुद को नुकसान पहुंचाने के संकेतों पर गौर करें, जैसे कि नस काटना, जलन या चोट
  • शैक्षणिक गिरावट: शैक्षणिक प्रदर्शन में अचानक और महत्वपूर्ण गिरावट हो 

पेरेंट्स ऐसे में क्या करें 

शांत रहें और सुरक्षा को प्राथमिकता दें:  ऐसे में आपका शांत और संयमित रहना महत्वपूर्ण है, क्योंकि आपका दृष्टिकोण संकटग्रस्त व्यक्ति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है. सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में उनकी सुरक्षा पर ध्यान दें. 

सक्रिय रूप से उन्हें सुनने की कोश‍िश करें: उस व्यक्ति को अपना पूरा अटेंशन दें और बिना किसी आलोचना के सक्रिय रूप से उनके विचारों और भावनाओं को सुनें. उनकी भावनाओं के प्रति सहानुभूति, समझ और मान्यता दिखाएं. 

जोखिम का आकलन करें: स्थिति की गंभीरता का आकलन करने के लिए सीधे और खुले प्रश्न पूछें. निर्धारित करें कि क्या उनके पास कोई योजना है, उसे क्रियान्वित करने के साधन हैं, और क्या उन्होंने आत्म-नुकसान की दिशा में कोई कदम उठाया है. 

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एकदम अकेला न छोड़ें: सुनिश्चित करें कि व्यक्ति को अकेला न छोड़ा जाए, खासकर अगर खुद को नुकसान पहुंचाने का तत्काल खतरा हो. अपनी उपस्थिति और समर्थन प्रदान करें, उन्हें बताएं कि इस कठिन समय में वे अकेले नहीं हैं. 

पेशेवर मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करें: ऐसे समय में बच्चे को पेशेवर मदद लेने के लिए दृढ़ता से प्रोत्साहित करें. 
मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक या परामर्शदाता जैसे मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से संपर्क करने में सहायता प्रदान करें. 

साधनों तक पहुंच हटाएं: यदि संभव हो, तो किसी भी वस्तु या पदार्थ को हटाने के लिए तत्काल कार्रवाई करें जिसका उपयोग आत्म-नुकसान के लिए किया जा सकता है. इसमें तात्कालिक वातावरण से दवाएं, हथियार या खतरनाक वस्तुएं  सुरक्षित करना शामिल हो सकता है. 

उनसे जुड़े रहें और सहायता प्रदान करें: तत्काल संकट बीत जाने के बाद भी, व्यक्ति की जांच करना जारी रखें और निरंतर सहायता प्रदान करें. उन्हें पेशेवर उपचार अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें, और उनकी ठीक होने की इस यात्रा के दौरान सुनने और भावनात्मक समर्थन प्रदान करने के लिए उपलब्ध रहें. 

याद रखें, आत्मघाती आपात स्थिति से निपटना एक गंभीर मामला है, और जब भी संभव हो प्रशिक्षित पेशेवरों को शामिल करना आवश्यक है. यदि आप खुद को ऐसी स्थिति में पाते हैं, तो आपातकालीन सेवाओं, हेल्पलाइन या संकट प्रतिक्रिया टीमों तक पहुंचें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि व्यक्ति को तुरंत आवश्यक सहायता मिले. 

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(अगर आपके या आपके किसी परिचित में मन में आता है खुदकुशी का ख्याल तो ये बेहद गंभीर मेडिकल एमरजेंसी है. तुरंत भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 पर संपर्क करें. आप टेलिमानस हेल्पलाइन नंबर 1800914416  पर भी कॉल कर सकते हैं. यहां आपकी पहचान पूरी तरह से गोपनीय रखी जाएगी और विशेषज्ञ आपको इस स्थिति से उबरने के लिए जरूरी परामर्श देंगे. याद रखिए जान है तो जहान है.)

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