
Telanga Kharia Jayanti 2023: भारत की आजादी के लिए अनगिनत क्रांतिकारियों-स्वतंत्रता सेनानियों ने खून बहाया है. ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनकी लड़ाई की कहानी आज भी रोंगटे कर देने वाली है. ऐसे बहुत से वीरसपूत हुए जिन्होंने आजाद भारत के लिए अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी, लहू बहाया और असहनीय दर्ज सहा. बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी आम लोगों तक पहुंची लेकिन कुछ ऐसे भी योद्धा थे जिनके बारे में आज बहुत कम ही लोग जानते होंगे. आज हम बात कर रहे हैं झारखंड के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी शहीद तेलंगा खड़िया की.
झारखंड के गुमला से कुछ किलोमीटर की दूरी पर बसे मुरगू गांव में 9 फरवरी 1806 को एक साधारण से गरीब परिवार में जन्मे तेलंगा खड़िया ने एक वक्त अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख दिया था. उनके पिता का नाम ठुइया गड़िया और माता का नाम पेतो खड़िया था. तेलंगा को गांव के लोग तेड बलंगा कहते थे, बाद में वे तेड बलंगा से तेलंगा के नाम से पहचाने जाने लगे.
25 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में हुए शामिल
तेलंगा खड़िया बचपन से अंग्रेजों के जुल्म की कहानी सुनते हुए बड़े हुए थे. उनके माता-पिता उन्हें अंग्रेजी हुकूमत की ज्यादतियों के बारे में बताते थे. उस दौरान देश के कई इलाकों की तरह सिसई, मुरगू और गुमला में भी अंग्रेज सरकार शासन करने के लिए लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित कर टैक्स वसूला करते थे. तेलंगा खड़िया ने अपने लोगों के साथ मिलकर अंग्रेजों के इस अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई और गांव-गांव जाकर लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया. उन्हें लोग पहचानने लगे, उन्होंने कई पंचायतों की स्थापना की. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ने के लिए खुद की एक फौज खड़ी की थी जिसमें 1500 योद्धा शामिल थे.
अंग्रेज सरकार ने जारी किया 'वारंट'
ब्रिटिश सरकार का खुलेआम विरोध और तेजी से बढ़ती प्रसिद्धी से तेलंगा जल्द ही अंग्रेज सरकार की नजरों में आ गए. उन्हें पकड़ने का वारंट जारी किया गया. जंगलों-जंगलों पुलिस उनका पीछा करती थी. पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और कोलकाता की जेल में भेज दिया. काफी दिन जेल में रहने के बाद वे वापस अपने गांव लौटे लेकिन इसके बावजूद देशभक्ति कम नहीं हुई.
तेलंगा खड़िया को मारने के लिए एक हो गए थे अंग्रेज और जमींदार
जेल से वापस आकर भी उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम जारी रखा. अंग्रेजों और जमीदारों के अत्याचारों का विरोध किया. इसी दौरान तेलंगा खड़िया के सामने पस्त अंग्रेज और जमींदार लोग एक हो गए. उन्हीं में से अंग्रेजों के एक वफादार जमींदार ने 23 अप्रैल 1880 को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी.
आज भी दिया जाता है भगवान का दर्जा
तेलंगा खड़िया के वंशज आज भी उन्हें भगवान का दर्जा देते हैं और उनकी पूजा करते हैं. मुरगू गांव में उनकी मूर्ति स्थापित की गई है. कहा यह भी जाता है कि लोकगीतों में तेलंगा खड़िया की वीरगाथा गाई जाती है.
आज आर्थिक तंगी से जूझ रहा शहीद का परिवार
शहीद तेलंगा खड़िया का परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. मंजर यह है कि इलाज के लिए जमीन तक गिरवी रखनी पड़ रही है. तेलंगा खड़िया के परपोते जोगिया ने अपनी पत्नी के इलाज के लिए 75 हजार रुपये में अपनी एक एकड़ जमीन गिरवी रखी है. दोनों बुजुर्ग हैं लेकिन वृद्धावस्था पेंशन पाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं. जोगिया का बेटा विकास पढ़ाई के बजाए मजदूरी कर रहा है. शाम को जो मजदूरी मिलती है उसे परिवार के खाने और बाकी मां के इलाज में लगा रहा है. जोगिया ने कहा कि हमें आज भी गर्व होता है कि हम तेलंगा खड़िया के वंशज हैं. गुमला से 18 किमी दूर घाघरा गांव में शहीद के वंशज अंग्रेजों के जमाने से रहते आ रहे हैं. घाघरा गांव में 16 परिवार हैं. जिसमें कुछ परिवारों को शहीद आवास मिला है लेकिन ज्यादातर घर अधूरे हैं.