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बाबाओं के दरबार में क्यों भाग जाते हैं भूत-प्रेत? आस्था कहें या अंधविश्वास... ये है इसका मनोविज्ञान

बीते कुछ दिनों से बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री मीडिया में छाए हुए हैं. एक संस्था महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के आरोपों में घ‍िरे धीरेंद्र शास्त्री के दिव्य दरबार की भी खूब चर्चा है. इन दरबारों के कई वायरल वीडियो में भक्तों के भीतर भूत-प्रेत होने के दावे किए गए हैं. इस तरह के धार्मिक दरबारों या धार्मिक मान्यता के स्थानों में भूत-प्रेत भगाने की मान्यता कैसे काम करती है, इसके पीछे का पूरा मनोवैज्ञानिक कॉन्सेप्ट समझ‍िए. 

प्रतीकात्मक फोटो (Credit: Shri Bageshwar Dham Sarkar / YouTube) प्रतीकात्मक फोटो (Credit: Shri Bageshwar Dham Sarkar / YouTube)
मानसी मिश्रा
  • नई दिल्ली ,
  • 23 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:24 PM IST

सिर्फ बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के दिव्य दरबार में ही नहीं बल्क‍ि देश में कई मंदिर-दरगाहें हैं जहां तथाकथ‍ित रूप से भूत या प्रेतों से सताये लोग पहुंचते हैं. इन जगहों पर पहुंचे लोगों की हरकतें वाकई सामान्य लोगों से अलग होती हैं. कई पीड़‍ित खुद को ही चोट पहुंचा रहे होते हैं. यहां के प्रचलित दृश्यों में महिलाओं का बाल खोलकर सिर पटकना, अजीबोगरीब आवाजें निकालना, पुरुषों का भूत-प्रेतों से बात करना ये सब दृश्य भारत के कई धार्मिक स्थानों या बाबा-ओझाओं या मौलवियों के यहां दिख जाते हैं. 

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भारतीय समाज का एक बड़ा तबका भूत-प्रेत, जादू-टोना जैसी बाधाओं पर यकीन करता है. इन स्थानों की मान्यता ऐसे ही नहीं बढ़ी है, बल्क‍ि यहां इस तरह के दावे किए जाते हैं कि कई लोग यहां आकर ठीक हुए हैं. मनोविज्ञान में इसे कई अध्ययनों के जरिये बताया गया है. 

हम यहां आपको नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फार्मेशन की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में साल 2020 में हुई एक ताजा स्टडी के बारे में बताते हैं. देश के जाने-माने मेडिकल प्रोफेशनल्स ने फेथ हीलिंग पर यह स्टडी की है. वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि फेथ हीलिंग का अर्थ है विश्वास की ताकत से किसी को मानसिक शारीरिक रूप से स्वस्थ करना. जैसे मनोचिकित्सा में दवाओं के साथ साथ काउंसिलिंग भी मददगार होती है, इसी तरह फेथ हीलिंग भी मानसिक रूप से परेशान लोगों के लिए चिकित्सा के साथ साथ मददगार साबित होती है. 

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डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि हमारे देश में जहां लोगों में मानसिक रोगों या मानसिक विकारों के प्रत‍ि जागरूकता की कमी है, इसलिए कई बार मानसिक विकार या किसी मानसिक रोग से ग्रस्त मरीज के लक्षणों को भूत प्रेत बाधा के तौर पर देखा जाता है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की मान्यताएं ज्यादा होती हैं. कई रिपोर्ट बताती हैं कि किस तरह लोगों में मास हिस्टीरिया के केस देखे जाते हैं. 

बीते साल दिसंबर 2022 में एक ऐसा ही मामला चंपावत उत्तराखंड के स्कूल में आया था, जहां एक स्कूल की करीब 29 छात्राएं और करीब 4  छात्र बेहोश हो गए. समाचार एजेंसी IANS के हवाले से छपी खबर के अनुसार, 9वीं से लेकर 12वीं तक की छात्राएं अजीब तरह से चीखने-चिल्लाने लगीं, फिर एक एक करके बेहोश होने लगीं. लोग इसे दैवीय प्रकोप कह रहे थे तो वहीं श‍िक्षा विभाग ने जांच में पाया कि ये मास हिस्टीरिया का केस है.

प्रतीकात्मक फोटो (Credit: Shri Bageshwar Dham Sarkar / YouTube)

इसमें लोगों में अजीब तरह की हरकतें जैसे बाल नोचना, हाथ पांव पटकना, रोना-चिल्लाना, भागने की कोश‍िश करना, गुस्सा जैसे तमाम लक्षण दिखते हैं. डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि ऐसे मामलों में मनोचिकित्सक को ही मरीज को दिखाना चाहिए, लेकिन लोग इन मामलों में पीर-फकीर, ओझा, तांत्र‍िक से लेकर दैव स्थानों पर जाते हैं. वहां इन्हें आराम भी मिलता है. इसके साथ ही लोगों को ये विश्वास भी हो जाता है कि ये सिद्ध जगहे हैं, जबकि ऐसे मामलों में मनोवैज्ञानिक द्वारा काउंसलिंग भी मददगार होती है. 

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फेथ हीलिंग पर NCBI की स्टडी क्यों की गई 

फेथ हीलिंग चिकित्सा पद्धति के बजाय विश्वास और आस्था के अभ्यास के माध्यम से बीमारियों का इलाज करने की एक विधि है. इस स्टडी के जरिये विभिन्न प्रथाओं और प्रक्रियाओं का उपयोग करने वाले फेथ हीलर्स के साथ स्वास्थ्य सेवा के लिए मिलकर एक अप्रोच तलाशने की कोश‍िश की गई. 

इस अध्ययन में कई गांवों को शामिल किया गया. इसमें लोगों से मिले आंकड़ों के अलावा फेथ हीलर्स का इंटरव्यू भी शामिल था, जिसमें उनसे अलग अलग तरह के सवाल पूछे गए. 

कौन से लोग इन स्थलों पर ज्यादा जाते हैं

स्टडी में आए रिजल्ट से पता चला कि सुपर नेचुरल शक्त‍ियों पर विश्वास करने वाले लोगों में ज्यादातर वो ग्रामीण थे जो बेरोजगार थे या जिनके घरों में समस्या थी. हीलर्स इनका इलाज ताबीज या किसी निश्चय या प्रण जैसे तरीकों से करते हैं. 

फेथ हीलिंग बहुत पुराना माध्यम है 

डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि फेथ हीलिंग को कई साइको सोमैटिक लक्षणों वाले मरीजों के इलाज के लिए सबसे प्राचीन जरिया माना जाता रहा है. इसमें आमतौर पर देवी-देवताओं के दर पर मत्था टेकना या अनुष्ठान और प्रार्थना के माध्यम से किया जाता था, लेकिन इसकी आड़ में शोषण का चलन धीरे धीरे आया. हर धर्म की अपनी फेथ हीलिंग पद्धतियां हैं. मसलन आप अगर ईसाई धर्म का उदाहरण लें तो इसमें कन्फेशन करने की जो प्रक्र‍िया है, वो पूरी तरह से गिल्ट से बाहर आने और तनाव से निकलने में मदद करती है. अगर कोई धर्म गुरु ऐसा दावा करता है कि वो गंभीर शारीरिक मानस‍िक रोग को दूर कर देगा तो ये गलत है. न ही किसी तरह की दिव्यांगता को चमत्कार के जरिये ठीक किया जा सकता है. 

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फेथ हीलर्स और मंदिर के डॉक्टर भारत में मानसिक बीमारी को ठीक करने का प्रयास करने के लिए अब तक का सबसे सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीका हैं. इसकी वजह साल 2010 के आंकड़ों की बात की जाए तो देश की 1.2 अरब की पूरी आबादी की सेवा करने के लिए केवल 37 मानसिक चिकित्सा संस्थान हैं. शारीरिक रोगों के लिए लोग आसानी से डॉक्टर के पास चले जाते हैं लेकिन जागरूकता की कमी के चलते लोग मानसिक रोगों के लक्षणों को नहीं समझ पाते. वो उन्हें भूत प्रेत समझते हैं. डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि मनोचिकित्सा को दरकिनार करके कभी भी फेथ हीलिंग रोगियों को पूरी तरह ठीक नहीं करती. 

भूत-प्रेत, जादू टोना के पीछे जिम्मेदार हो सकते हैं ये मनोरोग 

ऐसे कई मनोरोग हैं जिसमें पीड़‍ित मरीज को दूसरे आभासी व्यक्त‍ि या किसी छाया का आभास होता है. वो आभासी लोगों से बात करने से लेकर तमाम तरह के ऐसे लक्षण देते हैं जिसे लोगों ने भूत प्रेत होने का लक्षण मान लिया है. असल में ये किसी न किसी मानसिक रोग की वजह से होता है. यहां कुछ मानसिक रोग दिए जा रहे हैं जिसमें मरीज को ऐसे लक्षण आते हैं. 

सेजोफ्रेनिया 

एनसीबीआई के डेटा के अनुसार सेजोफ्रेनिया के भर्ती 62 फीसदी मरीजों के आसपास के लोग इसके पीछे किसी जादू टोने या भूत प्रेत बाधा से जोड़कर देखते हैं. करीब 26 प्रतिशत मरीज इसे भूत-प्रेत समझते हैं. किसी बुरी आत्मा का साया मानने वाले 28.8 प्रतिशत लोग होते हैं. देखा जाए तो ज्यादातर यानी दो तिहाई मरीजों के परिजन इस बीमारी को टोना-टोटका, भूत/प्रेत आत्मा, दूसरी आत्मा का प्रवेश, दैवीय क्रोध, ग्रहों/नक्षत्रों के ज्योतिषीय प्रभावों, असंतुष्ट या बुरी आत्माओं का पीछा करना या अतीत के बुरे कर्मों के कारण हो सकती है. 

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डिसोसिएट‍िव डिसऑर्डर 

ये ऐसा मानसिक विकार है जिसमें मरीज कभी दो तो कभी दो से ज्यादा पर्सनैलिटी जीता है. उसे उसके विचारों, पहचान और आसपास की चीजों में वास्तविकता और अवास्तविकता में भेद करना मुश्क‍िल होता है. 

डिल्यूजनल डिसऑर्डर 

ये एक तरह का ऐसा मतिभ्रम है ज‍िसमें कुछ लोगों को लगता है कि उनकी किसी परम सत्ता या किसी अलौकिक शक्ति से सीधे बात होती है. इसका एक प्रकार होता है जिसमें पीड़‍ित अंधविश्वास में आसानी से डूब जाता है. वो कई तरह के अनुष्ठानों से अंधविश्वास को बढ़ावा देता है, ऐसे लोगों को आसपास के लोग किसी बाधा से ग्रस्त समझ लेते हैं. 

साइकोसोमैटिक इलनेस

ऐसा विकार जिससे पीड़‍ित व्यक्त‍ि अलग तरह की समस्याएं बताता है जिसका निदान डॉक्टर नहीं कर पाते. मसलन मरीज कह सकता है कि उसकी एक आंख से दिख नहीं रहा, या फिर उसे पेट में भीषण दर्द है. इसे भी कई बार झाड़-फूंक के जरिये ठीक किया जाता है. क्योंकि ऐसे लोगों को किसी तांत्रिक, मौलवी या गॉडमैन के पास जाने पर मानसिक शांति मिलती है और पेट दर्द ठीक हो जाता है. 

 

 

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