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एजुकेशन न्यूज़

बयान-FIR-गिरफ्तारी-सबूत... जानिए क्या होता है रेप केस में पुलिस का रोल

aajtak.in
  • 30 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 3:21 PM IST
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दुष्कर्म की घटनाओं में पीड़ा से गुजर रहे परिवार के पास सिर्फ और सिर्फ एक ही आसरा होता है जो उन्हें राहत दे सकता है, और वो है न्याय. न्याय की इस पूरी प्रक्र‍िया की मुख्य सूत्रधार होती है पुलिस. जो मुजरिमों को सलाखों के पीछे पहुंचाने से लेकर उन्हें सजा दिलाने तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. आइए जानें दुष्कर्म के मामलों में आख‍िर पुलिस का प्रोटोकॉल क्या होता है, किस तरह वो न्याय दिलाने की मुख्य कड़ी माने जाते हैं. 

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यूपी एसटीएफ के डिप्टी एसपी विनोद सिरोही ने aajtak.in से बातचीत में रेप मामलों में पुलिस के रोल के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि रेप का कोई मामला थाने में आने पर सबसे पहले महिला पुलिस अध‍िकारी परिजनों की उपस्थ‍ित‍ि में पीड़‍िता की श‍िकायत पर एफआईआर दर्ज करती हैं. ये पूछताछ एकदम अकेले कमरे में होती है जहां कोई नहीं जा सकता. 

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दूसरी परिस्थित‍ि में जब गंभीर मामला आता है, जहां पीड़‍िता को अस्पताल ले जाया जाता है. ऐसे में उसका सबसे पहले मेडिकल होता है, फिर पुलिस पीड़‍िता या परिजनों के बयान के आधार पर बयान लेती है. उसके बाद पीड़‍िता का मजिस्ट्रेट के सामने 164 का बयान होता है, जिसके आधार पर तफ्तीश शुरू होती है. 

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उन्होंने बताया कि पुलिस मुकदमा पीड़‍िता या उसके परिजनों के बयान पर आधार पर दर्ज करती है. मामले में जांच के लिए पुलिस की टीम के साथ फॉरेंसिक की टीम लगाई जाती है जो घटनास्थल की जांच करने और सबूत जुटाने के साथ ही आरोपी को गिरफ्तार करके पूछताछ करती है. पुलिस इस दौरान घटनास्थल से कपड़े, सीमेन मैच कराने के लिए अन्य चीजें जो सबूत बन सकें, सब जुटाती है. 

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पुलिस आरोपी की पहचान करके उसको गिरफ्तार करके उसका सैंपल लेती है. फिर केस दर्ज होने के बाद पुलिस सबूत जुटाने के लिए जांच शुरू कर देती है. इसमें अगर कोई गवाह है तो उसे जांच में शामिल करते हैं, लेकिन ज्यादातर रेप के मामलों में इसमें कोई गवाह नहीं होता है. इसलिए इसमें पुलिस घटना के सबूत इकट्ठे करती है. 

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अगर इकट्ठा किए गए सैंपल आरोपी से मैच कर जाते हैं, तो केस पक्का हो जाता है. विनोद सिरोही कहते हैं कि पुलिस प्रोटोकॉल के अनुसार एफआईआर लिखने से लेकर 164 बयान कराने और मेड‍िकल कराने तक की पूरी प्रक्र‍िया को जल्द से जल्द करने होते हैं. एफआईआर लिखने को लेकर भी यही नियम है कि पीड़‍िता द्वारा बताए घटनाक्रम के आधार पर रेप की करीब 5 से 6 धाराओं में से जो भी मैच करती हैं, उस पर मुकदमा कायम करते हैं. 

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पुलिस का काम ये भी है कि वो रेप की शिकायत दर्ज कराने आई महिला को इस बात की सूचना दे कि एफआईआर दर्ज कराने के लिए उसे एक वकील मुहैया कराया जाएगा. उसे वकील खोजने नहीं जाना होगा. ये पुलिस का काम है कि वो उसे वकील से मिलवाए. किसी भी सवाल का जवाब देने से पहले वकील उपलब्ध कराने की मांग की जा सकती है. वकीलों की एक लिस्ट जो ऐसे मामलों में महिलाओं की मदद करती है, हर पुलिस स्टेशन में उपलब्ध होती है. 

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पुलिस से रेप जैसे मामलों में अत‍िसंवेदनशील होने की उम्मीद की जाती है ताकि पीड़‍िता को हर हाल में न्याय मिल सके. रेप का श‍िकार युवती जब मानसिक रूप से टूट चुकी होती है, ऐसे में उसे बार बार वही घटना बताना और झकझोर देता है, ऐसे में पुलिस की जिम्मेदारी होती है कि वो पीड़िता और उसके परिजनों से विनम्र रवैया अपनाएं. साथ ही पुलिस यदि ऐसे मामलों में सख्ती बरतती है तो अराजक तत्वों में एक सख्त संदेश भी जाता है. 

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