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एजुकेशन न्यूज़

कोरोना में अपनों को खोने वालों को दूर रहकर भी दे सकते हैं 'जादू की झप्‍पी'

मानसी मिश्रा
  • नई द‍िल्‍ली,
  • 03 मई 2021,
  • अपडेटेड 2:17 PM IST
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कोरोना की इस दूसरी लहर के दौरान हर क‍िसी को ऐसे हालात से दो-चार होना पड़ रहा है. जब क‍िसी साथी या अपने करीबी का कोई अपना साथ छोड़कर चला जाता है. ऐसे में हमारे पास शब्‍द नहीं होते हैं कि हम उन्‍हें कैसे समझाएं. ऐसे में हमारे शब्‍द कहीं खो जाते हैं. लेकिन आपको ऐसे हालात में जरूरी होता है कि आप अपनों का भावनात्‍मक रूप से साथ जरूर दें. आइए जानते हैं कि मनोचिकित्‍सक इस बारे में क्‍या सलाह दे रहे हैं.

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IHBAS के सीनियर कंसल्‍टेंट मनोचिकित्‍सक डॉ ओमप्रकाश कहते हैं क‍ि जब किसी के जाने के बाद अचानक दुख का पहाड़ टूटता है तो उस पर उसकी प्रतिक्र‍िया अलग अलग होती है. लेकिन अगर वो आपका नजदीकी है और आप उसका साथ देना चाहते हैं तो आपका तरीका एक ही होना चाहिए, वो है कि आप उसे साथ दें, अपनी नजदीकी महसूस कराएं और उसे रोने के लिए कंधा दें और वक्‍त का तकाजा देखकर उनको भावनात्‍मक रूप से संभालें.

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एक साथी के रूप में आपको बहुत सोच-समझकर रिऐक्‍ट करना होगा. ऐसे में आपकी भूमिका उन्‍हें कंपनी देना, सुनना और उनकी भावनाओं को समझें.. अपनाएं ये टिप्‍स-

बोलो कम, सुनो ज्‍यादा- 
दुखों से निपटने का सबसे अच्‍छा मनोवैज्ञानिक तरीका ये है क‍ि उन्हें सलाह दें कि दुखों से निपटने के लिए अपनी खुद की काउंसिलिंग करें. आप बस उन्हें अपनी भावनाओं को समझने और पहचानने में मदद करें. उन्हें एक शेड्यूल विकसित करने में मदद करें. याद रखें कि आपकी जिम्‍मेदारी उसके साथ होना है, न कि जबरन दर्द को दूर करना. मन में जान लें कि ये असंभव है. आपका काम उनका समर्थन करना है, न कि उन्हें ठीक करने की कोशिश करने में लग जाना. 

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भावनाओं को पूरी तरह समझें
आप सामने वाले को ये अहसास दिलाएं क‍ि हम पूरी तरह से उनकी भावनाओं को समझ रहे हैं. साथ ही उन्‍हें ये भरोसा दिलाएं क‍ि ऐसी भावनाएं स्वाभाविक हैं. उनके भीतर उमड़ रही दुख की भावनाओें के बारे में उन्‍हें ये भी अहसास कराएं कि ये सब स्‍वाभाविक है.

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आप उन्‍हें भी ये भी एहसास दिलाएं कि‍ जो लोग दुख का अनुभव करते हैं, उनका खास फोकस समस्या को हल करने पर होता है. वो भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं. जो लोग सहज शोक का अनुभव करते हैं उनके पास गहन भावनात्मक अनुभव होते हैं, लेकिन कई लोगों में डिप्रेशन और सुसाइड  के बारे में भी विचार आते हैं.

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आज जब लोग ऑक्‍सीजन और आईसीयू बेड के लिए इधर-उधर मारे मारे फिर रहे हैं, कई लोग ऐसे भी हैं जब लोगों को इलाज न मिल पाने के कारण अपनों को खोना पड़ रहा है. ऐसे में लोगों पर खुद को दोष देते हैं, वो क्रोध, निराशा और चिंता में डूबने लगते हैं. वो बार बार खुद को दोष देते हैं, ऐसे में आप उन्‍हें इस तरह के अपराध बोध से बाहर न‍िकालने की कोश‍िश करें.

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उनसे सवाल जरूर पूछें 

दुख में डूबे लोगों से विस्‍तार से बात करें. उनसे हां या न में सवाल न पूछकर खुलकर बात करें. उन्हें अपनी भावनाओं के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करें और उन विषयों का पता लगाएं, जिनमें वे रुचि रखते हैं. यह स्पष्ट करें कि आप जानना चाहते हैं कि वे क्या महसूस करते हैं, लेकिन उनकी भावनाओं की वैधता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं. आप उनसे क्‍यों के रूप में सवाल के बजाय ये पूछें कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं? उनसे पूछें कि क्या आपको सबसे ज्यादा परेशान करता है? उनसे ये पूछने के बजाय "आप ऐसा क्यों महसूस करते हैं?" पूछें "क्या आप मुझे कोई दूसरा उदाहरण देकर समझा सकते हैं?"

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जब आप उनकी समस्याओं के मूल में जाने की कोशिश कर रहे हों, तो आपको जो उन्होंने बताया है, उसके एक संक्षिप्त सारांश पर बात करें. जब वो आपको बताएं क‍ि “मैं हर रात उसके बारे में सोचता रहता/ सोचती रहती हूं." "काम करने में थकावट या मन नहीं लगता." "कुछ  स्पष्ट रूप से नहीं सोच पा रहे." "मैं अधिक से अधिक नर्वस और उदास हो रहा हूं क्योंकि मैं दिन के दौरान काम नहीं कर सकता." उन्‍हें आप समझाएं क‍ि कैसे तुम्हारे दुख से नींद की समस्याएं पैदा हो रही हैं, ये तुम्हारे जीवन को बाधित करती हैं.

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