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एजुकेशन न्यूज़

आपका टीन-एज बच्चा तनाव में तो नहीं? ऐसे पहचानें, जानिए- कब लेनी है डॉक्टर से मदद

मानसी मिश्रा
  • नई द‍िल्ली ,
  • 10 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 9:48 AM IST
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कोरोना काल में किशोरों की लाइफस्टाइल पूरी तरह बदल गई है. इस माहौल ने उनमें मानसिक बदलाव भी किए हैं. कुछ किशोर व्यवहार में बहुत आक्रामक हो गए हैं, कुछ युवाओं के व्यवहार गंभीर ओसीडी (अब्सेसिव कंपलसिव डिस्आर्डर) का असर दिख रहा है क्योंकि उन्हें बाहर आने-जाने की मनाही है. घर पर भी नियमित दिनचर्या नहीं है, इसलिए मोबाइल स्क्रीन पर औसतन बिताए जाने वाले समय की अवधि बढ़ रही है. स्क्रीन टाइम बढ़ने से एकाग्रता और ध्यान की कमी आदि समस्या भी बढ़ी है. आइए जानें कि किशोरों में तनाव की समस्या कैसे पहचान सकते हैं. 

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पुर्नवास और किशोर मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉ. नीरजा अग्रवाल किशोर और युवाओं के भावनात्मक और व्यवहारिक स्वास्थ्य पर लघु और दीर्घकालीन अध्ययन कर चुकी हैं. डॉ नीरजा कहती हैं कि यह समय सभी के लिए मुश्किल रहा है. हम सभी शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदी का सामना कर रहे हैं. किशोर भी इस समस्या से अछूते नही हैं. परिस्थितियों के साथ सामंजस्य करना उनके लिए भी मुश्किल हो रहा है, इसका असर उनकी नियमित दिनचर्या पर पड़ रहा है.  जैसे कि या तो वो बहुत अधिक खा रहे हैं या बिल्कुल भी नहीं.

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डॉ नीरजा कहती हैं कि कुछ युवाओं के व्यवहार में गंभीर ओसीडी (अब्सेसिव कंपलसिव डिस्आर्डर) का असर दिख रहा है क्योंकि उन्हें बाहर आने जाने की मनाही है. घर पर भी नियमित दिनचर्या नहीं है, इसलिए मोबाइल स्क्रीन पर औसतन बिताए जाने वाले समय की अवधि बढ़ रही है. स्क्रीन टाइम बढ़ने से एकाग्रता और ध्यान की कमी आदि समस्या भी बढ़ी हैं. जिन परिवारों में किसी अपने प्रियजन को खोया उनमें यह दिक्कत अधिक बढ़ गई और ऐसी स्थिति से उपजे तनाव का मुकाबला करना अधिक मुश्किल हो जाता है. 

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कैसे करें पहचान 
मनोवैज्ञानिक परीक्षण या मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किसी भी व्यक्ति की मानसिक, व्यवहारिक और भावनात्मक स्थिति का मूल्यांकन है. किशोर अक्सर अपनी भावनाओं को बताने में इसलिए हिचकते हैं कि कहीं कोई उनके बारे में राय न बना लें, अपना निर्णय न थोप दे. इसलिए मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन में बच्चे के माता पिता के साथ ही उनके करीबी मित्रों से भी बात की जाती है. किशोर के व्यवहार से अक्सर इस बात का पता लगाना मुश्किल होता है कि वह तनाव की किसी गंभीर स्थिति से गुजर रहे हैं या फिर यह उनका साधारण टीन एज ग्रुप के बदलाव का व्यवहार है.

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किशोर भावनात्मक अनुभवों को अधिक तीव्रता से स्वीकार करते हैं और मजबूती से भावनात्मक स्थिति पर प्रतिक्रिया भी देते हैं. कम ही समय में उनके मन में कई तरह की भावनाओं का उद्गम होता रहता है. बावजूद इसके कुछ विशेष तरह लक्षणों से किशोरों के तनाव की पहचान की जा सकती है, जैसे कि बना वजह का गुस्सा या चिड़चिड़ापन, आक्रामक और हिंसात्मक व्यवहार, सामाजिक दूरी बनाना, बहुत अधिक नकारात्मकता, किसी भी शौक या चीज में रूचि नही लेना, किसी भी तरह की नियमित दिनचर्या को फॉलो नहीं करना, बहुत अधिक खाना या बिल्कुल भी नहीं खाना, खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करना और अधिक गंभीर स्थिति में आत्महत्या का प्रयास करना आदि. 

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परिजन या केयर गि‍वर टीनेजर में इस तरह के किसी भी बदलाव को ध्यानपूर्वक नोटिस करना होगा. यदि इस तरह के बदलाव दो साल से अधिक हों तो किसी विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लेनी चाहिए. अभिभावकों को यह समझना होगा कि किशोर इस समय सबसे अधिक मुश्किल समय से गुजर रहे हैं. कोविड की वजह से लगाई गईं पाबंदियों के कारण बच्चे बाहर की गतिविधियों में भाग नहीं ले पा रहे हैं, लंबे समय से स्कूल और कॉलेज बंद हैं तो बच्चे कैंपस लाइफ और दोस्तों को मिस कर रहे हैं, जिनसे अक्सर वो अपने मन की बातें साझा करते थे. इसलिए किशोरों की समस्याओं को धैर्यपूर्वक समझें, यह जानने की जरूरत है कि किशोरों की उर्जा को पारिवारिक कार्यक्रम और ऐसी रचनात्मक कार्यों में लगाए जिससे वह खुद को उदासीन न महसूस करें. इस समय उनका दोस्त बनें, उनकी सराहना करें, कार्य के लिए प्रोत्साहित करें. 
 

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माता पिता को भी अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करने की कोशिश करनी चाहिए. ये भी कोशिश करें कि दिनभर में उनका स्क्रीन टाइम कम हो, लेकिन इस बात का निर्णय भी बच्चों से बात करने के बाद ही लें. अभिभावकों को बच्चों के स्क्रीन टाइम के लिए कठोर नहीं होना चाहिए क्योंकि इंटरनेट आजकल मनोरंजन, शिक्षा और दोस्तों से जुड़े रहने के लिए जरूरी हो गया है. बावजूद इसके जरूरत से अधिक स्क्रीन टाइम कई तरह की समस्या को जन्म देता है.  मोबाइल की जगह परिवार को एक साथ अधिक समय बिताने पर जोर देना चाहिए. बच्चों के इंटरेस्ट के विषयों पर चर्चा करने और एक साथ कई गेम खेलने से परिवार को मजबूत करने का यह सबसे बेहतर अवसर हो सकता है. महामारी के इस समय में एक अच्छे अभिभावक बनकर मिसाल पैदा की जा सकती है.

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एम्स के साइक्रायट्रिक विभाग के प्रोफेसर और केन्द्रीय मेंटल हेल्थ ऑथोरिटी के सदस्य डॉ. राजेश सागर कहते हैं कि बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। किसी भी तरह का तनाव या चिंता उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा और दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ सकता है. महामारी ने किशोरों की सामान्य दिनचर्या को पूरी तरह बदल दिया है. उनके स्कूल बंद हैं, पढ़ाई अब क्लास की जगह ऑनलाइन हो रहे है, दोस्तों के साथ उनका मिलना जुलना बिल्कुल बंद या सीमित हो गया है. इसके साथ ही ऐसे भी कुछ बच्चे हैं जिन्होंने कोविड संक्रमण के कारण अपने अभिभावक या प्रियजनों को खो दिया है.

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