भारत में लगातार कोयले से बिजली के उत्पादन बंद होने को लेकर बड़ा सवाल उठ रहा है. कहा जा रहा है कि कोयला खत्म हो रहा है, इसके बाद बिजली उत्पादन ठप हो रहा है. वहीं देश में परमाणु ऊर्जा बिजली का पांचवां सबसे बड़ा जनरेटर है. पूरी दुनिया की बात करें तो साल 2020 में न्यूक्लियर प्लांट से बिजली उत्पादन 3.9 फीसद कम हुआ है. जानिए भारत की न्यूक्लियर पावर कितनी है, यहां न्यूक्लियर पावर प्लांट कितनी बिजली बना रहे हैं.
भारत सरकार लगातार न्यूक्लियर पावर को बढ़ाने की बात कह रही है. देश में बड़े पैमाने पर स्वदेशी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम भी चलाए गए. आजादी के कुछ ही समय बाद होमी जे भाभा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को परमाणु ऊर्जा में निवेश करने के लिए राजी किया. 1948 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम ने "परमाणु ऊर्जा के विकास और नियंत्रण और उससे जुड़े उद्देश्यों के लिए" प्रदान करने के लिए भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग बनाया.
भारत के न्यूक्लियर पावर की बात करें तो देश में 23 संचालित परमाणु रिएक्टर और सात परमाणु रिएक्टर निर्माणाधीन हैं. कोयला, गैस, जलविद्युत और पवन ऊर्जा के बाद परमाणु ऊर्जा देश में बिजली बनाने का पांचवां सबसे बड़ा स्रोत है. अपने हथियार कार्यक्रम के कारण, भारत परमाणु अप्रसार संधि से बाहर है. इसके कारण, देश को ज्यादातर परमाणु संयंत्रों और भौतिक व्यापार से बाहर रखा गया था और इसने 2009 तक असैनिक परमाणु ऊर्जा के विकास में बाधा उत्पन्न की.
6 सितंबर, 2008 को 48 देशों के परमाणु न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (NSG) द्वारा छूट दिए जाने के बाद भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी और अन्य देशों से ईंधन तक पहुंच की अनुमति दी गई थी. पहले के व्यापार प्रतिबंधों के साथ-साथ स्वदेशी यूरेनियम की कमी ने भारत को अपने थोरियम भंडार का दोहन करने के लिए विशिष्ट रूप से परमाणु ईंधन चक्र विकसित करने के लिए प्रेरित किया है.
ये हैं भारत के न्यूक्लियर रीसर्च सेंटर्स
एटॉमिक एनर्जी कमीशन ऑफ इंडिया, मुंबई
एटॉमिक मिनरल्स डायरेक्टोरेट फॉर एक्स्प्लोरेशन एंड रीसर्च, हैदराबाद
भाभा एटॉमिक रीसर्च सेंटर, मुंबई
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रीसर्च, धनबाद
इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद
हाई एल्टीट्यूड रीसर्च लैब्रोरेट्री, गुलमर्ग
इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रीसर्च, कलपक्कम
इंडियन रेयर अर्थस, मुंबई
नेशनल केमिकल लैबोरेट्री, पुणे
न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्प्लेक्स, हैदराबाद
नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज, तिरुअनंतपुरम
सेंट्रल मेकेनिकल इंजीनियरिंग रीसर्च इंस्टीट्यूट, दुर्गापुर
फिजिकल रीसर्च लैबोरेट्री, अहमदाबाद
साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फीजिक्स, कोलकाता
यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, सिंहभूम
वैरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रान सेंटर, कोलकाता
रेडियो एस्ट्रोनॉमी सेंटर, ऊटी
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रीसर्च, मुंबई
अगर कोयले से बिजली के उत्पादन के बारे में बात करें तो भारत की कुल बिजली मांग का करीब 70 फीसदी कोयले से बिजली बनाकर ही पूरा किया जाता है. भारत में कोयले की कुल खपत का तीन-चौथाई हिस्सा बिजली उत्पादन पर खर्च होता है. देश में कुल 135 थर्मल पावर प्लांट्स हैं जहां कोयले से बिजली का उत्पादन होता है. बिजली के उत्पादन के लिए कोयले की मात्रा 1.5 मिलियन टन 40 दिन के लिए स्टोर करके रखा जाता है क्योंकि कोयला घटने पर बिजली प्लांट बंद हो जाएगा और घरों में बिजली कट हो जाएगी.
आसान भाषा में कोयले से बिजली उत्पादन के तरीके को इस तरह समझ सकते हैं. बता दें कि कोयले से चलने वाले बिजली घरों को थर्मल पावर प्लांट कहते हैं. इसमें कोयला पीसने के बाद इसे फर्नेस (furnace) में जलाया जाता है जिसके ऊपर बोइलर होता है जहां पानी भरा होता है. यहां कोयला जितना अच्छा होगा उसमें उतनी ज्यादा उष्ण ऊर्जा पैदा होगी इसलिए कोयले को एकदम पाउडर बना दिया जाता है. यहां पानी भाप बनकर बहुत ही मोटे पाइप से निकलकर टर्बाइन में जाता है या फिर ऐसा भी होता है कि फर्नेस में ही मोटे मोटे पाइप घूमते हैं जिनमें पानी बहता रहता है.
बता दें कि भारत में बिजली उत्पादन के लिए कोयले की खपत दिन-ब दिन बढ़ रही है. ऊर्जा उत्पादन के दूसरे सोर्स से कहीं ज्यादा यहां चुनौतियां बढ़ी हैं. ऊर्जा मंत्रालय के एक आंकड़े के अनुसार, 2019 में अगस्त-सितंबर महीने में बिजली की कुल खपत 10 हजार 660 करोड़ यूनिट प्रति महीना थी जो 2021 में बढ़कर 12 हजार 420 करोड़ यूनिट प्रति महीने तक पहुंच गई है. बिजली की इसी जरूरत को पूरा करने के लिए 2021 के अगस्त-सितंबर महीने में कोयले की खपत 2019 के मुकाबले 18 प्रतिशत तक बढ़ी है.